नई दिल्ली-कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन की पहचान के लिए जिस जीनोम सिक्वेंसिंग की आजकल काफी चर्चा हो रही है, वो बहुत खर्चीली है। मीडिया रेपोर्ट्स के अनुसार जीनोम सिक्वेंसिंग करने वाली मशीन में एक बार में 96 सैंपल को प्रोसेस किया जा सकता है और इस पर करीब 12 से 15 लाख का खर्च आता है यानी एक सैंपल पर करीब 12 से 15 हजार का खर्च आता है। हालांकि, उन्होंने बताया कि ‘मशीन में एक बार मे 96 से कम सैंपल भी प्रोसेस किए जा सकते हैं लेकिन खर्च उतना ही आता है, जितना पूरे 96 सैंपल के लिए आता है। इसलिए अधिक खर्च को देखते हुए आम तौर पर 96 सैंपल जमा होने के बाद ही जीनोम सिक्वेंसिंग की जाती है। कभी-कभी किसी वजह से टेस्ट रिपीट भी करना पड़ता है। ऐसे में कॉस्ट और बढ़ जाती है।’ अब तक अस्पताल अपने खर्च पर सैंपल की सिक्वेंसिंग के जरिये सैंपल के वेरिएंट की पहचान का काम कर रहा था लेकिन काफी अधिक खर्च के कारण बजट की समस्या आ गयी। इसलिये, IGIMS अस्पताल ने अब राज्य सरकार को पत्र लिखकर इसके लिये अलग से बजट उपलब्ध कराने की मांग की है।
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जीनोम सिक्वेंसिंग की मशीन भी काफी महंगी है। जीनोम सिक्वेंसिंग करने वाली मशीन की कीमत डेढ़ करोड़ के आसपास है। इसके साथ ही कुछ अन्य मशीनें भी होती हैं, जिनका इस्तेमाल वायरस के वेरिएंट को पहचानने की प्रक्रिया में होता है। सीक्वेंसिंग के पहले और भी स्टेप्स किए जाते हैं, जैसे- DNA को निकालना, आरएनए से डीएनए में कन्वर्ट करना, जीनोम के फ्रेक्शन करके लाइब्रेरी प्रिपरेशन करना। इस सभी प्रोसेस के लिये अलग-अलग मशीनें है। फिर सबको इकठ्ठा करके डीप फ्रीज में डाल दिया जाता है और फिर एक साथ रन किया जाता है। रिपोर्ट आने में करीब 10 दिन का समय लग जाता है। इसके बाद डाटा एनालिसिस किया जाता है, जो मशीन से जुड़े एक सर्वर में कलेक्ट होता है।
डेल्टा से अलग ओमिक्रॉन वेंरिएंट में क्या दिखा
सीनियर साइंटिस्ट डॉ अभय कुमार ने बताया कि जीनोम सिक्वेंसिंग से ये पता चला है कि डेल्टा वेरिएंट से अलग ओमिक्रॉन वेरिएंट में इसके स्पाइक प्रोटींस में बहुत ज्यादा म्युटेशन दिखाई दे रहा है, इसलिए साइंटिस्ट थोड़े चिंतित है कि इतने सारे म्यूटेशन से पता नहीं क्या असर होगा। दूसरी बात ये है कि जो क्लासिकल कोविड वायरस है यानी जो वुहान वायरस था, उससे म्यूटेशन होकर ही अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा जैसे सारे वायरस आए हैं। अब यह आया है। इसके स्पाइक प्रोटीन पर सबसे ज्यादा वेरिएशंस हैं और चूंकि इस स्पाइक प्रोटीन के अगेंस्ट में ही हमारी अधिकतर वैक्सीन बनी हुई हैं इसलिए यह हमारे लिए चिंता की बात है कि हमारी वैक्सीन कितनी कारगर होंगी।