अलविदा बसंत शर्मा ……ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना…

Shri Mi
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(रुद्र अवस्थी)बसंत ऐसा नाम है जो जब भी आता है.अपनी यादें छोड़ जाता है। ऋतुराज बसंत भी हर बार आता है और यादों की ऐसी गठरी छोड़ जाता है जिसके सहारे लोग फिर आने वाले साल में बसंत का इंतजार करते हैं…..। बसंत शर्मा का नाम भी ऐसा ही है। इस इंसान के अंदर एक साथ इतनी खूबियां थी कि उन्हें हर कोई याद रखना चाहेगा। और यह भी कहेगा कि ऋतुराज बसंत की तरह ओ जाने वाले हो सके तो फिर लौट के आना ….. ।ऋतुराज बसंत की तरह सदाबहार फूलों से लदे मौसम जैसा खुशबूदार ..….और पतझड़ को भुला देने की काबिलियत रखने वाला मिजाज…..। अपने बसंत शर्मा भी ऐसे ही थे …… ।

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उनके चेहरे की मुस्कान सदाबहार थी….। चेहरे पर अपनापन – प्रेम भाव की खुशबू हमेशा महसूस होती थी और जाने कितने लोगों की मदद करने और उनकी तकलीफ का पतझड़ दूर करने का माद्दा उनके अंदर था। ऐसी शख्सियत जो असीम संभावनाओं से भरी थी और हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती थी….. ऐसी शख्सियत का इस तरह जाना हर किसी को रुला गया। सबसे तकलीफ की बात यह है कि अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में बिलासपुर शहर की राजनीति करते हुए और एक अच्छे कॉलेज के संचालक के रूप में पता नहीं कितने लोगों के लिए मददगार साबित हुए बसंत शर्मा ने कितने ही लोगों को अस्पतालों तक पहुंचाया होगा और उनका इलाज होने के बाद सकुशल घर तक भी पहुंचाया होगा।

लेकिन कोरोना के इस क्रूर दौर में ऐसे शख्स को भी वक्त पर अस्पताल में जगह नहीं मिल सकी और वे अपने घर वापस नहीं लौट सके। कोरोना का यह दौर बहुत बेरहम है। इतना बेरहम है कि हर दिन की शुरुआत में ही कोई न कोई ऐसा शोक संदेश दे जाता है जिसे सुनकर रूह कांप उठती है। और लगता है कि अपने ही जिस्म का एक हिस्सा हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चला गया। रविवार की सुबह भी ऐसी ही दुखद खबर लेकर आई। खबर थी कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और डीएलएस कॉलेज के चेयरमैन बसंत शर्मा नहीं रहे। बिलासपुर ही नहीं छत्तीसगढ़ में जिसने भी यह खबर सुनी वह अवाक रह गया।

हंसमुख मिलनसार और यारों के यार की तरह मिलने – जुलने वाले बेहतरीन इंसान तो थे ही उनके अंदर असीम संभावनाएं छिपी हुई थी। एक आदमी के अंदर इतनी खूबियां थी कि वह हर जगह फिट नजर आते थे। सियासत की दुनिया में रहकर उन्होंने भी जद्दोजहद की और जिन पदों तक भी पहुंचे वहां ईमानदारी से काम किया। सियासत की इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिन्हें काबिलियत के मुताबिक मुकाम हासिल नहीं हो सकता। बसंत शर्मा को भी इस फेहरिस्त में रखा जा सकता है ।

लेकिन जब से वे राजनीति में सक्रिय हुए तब से अपनी अंतिम सांस तक उन्होंने अपने हिस्से की जिम्मेदारी को ईमानदारी से पूरा किया । उनके व्यक्तित्व की एक बड़ी खूबी यह थी कि वह भले ही कांग्रेस की विचारधारा से जुड़कर राजनीति करते रहे। लेकिन पार्टी के सभी खेमों के साथ ही विरोधी दल के नेताओं के साथ भी उनके दोस्ताना रिश्ते हमेशा रहे। उन्होंने कभी भी राजनीति को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल नहीं किया। उनकी सक्रियता हमेशा बनी रहे। उनका अंदाज ऐसा था कि वे होठों पर मुस्कान के साथ ही कड़वी बातें कहने से भी नहीं हिचकते थे। राजनीति में रहते हुए कई बार उनसे लंबी बात करने का मौका मिला। वह हमेशा काबिल लोगों को आगे बढ़ाने के पक्षधर नजर आते थे।

कई बार उनके कॉलेज में भी जाने का मौका मिला था। उच्च शिक्षा को लेकर उनका एक सपना भी था और वह बेहतर उच्च शिक्षा को लेकर हमेशा सोचते रहे। इसके साथ ही सामाजिक संस्थाओं से जुड़ कर भी उन्होंने समाज की सेवा में अग्रणी भूमिका निभाई। समाज के भीतर शिक्षा ,स्वास्थ्य, उद्योग ,व्यवसाय आदि क्षेत्रों के कामकाज को लेकर भी उनका जुड़ाव था। पिछले साल के आखिरी दिनों की बात होगी हमारे पत्रकार साथी संजय दीक्षित के पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर कुछ मित्र उन्हें श्रद्धांजलि देने इकट्ठे हुए थे । उस समय बसंत शर्मा के साथ लंबी बातचीत हुई थी। छत्तीसगढ़ की संस्कृति और यहां के मनीषियों को लेकर उन्होंने अपनी सोच सामने रखी तो सभी को लगा कि वे इस दिशा में किस तरह के मौलिक विचार रखते हैं। राजनीति से जुड़े तमाम लोग ऐसे सौम्य – सरल और निश्चल व्यक्ति को आने वाले समय में किसी बड़ी जिम्मेदारी के काबिल मानते थे ।करीब साढे तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता करते हुए अगर लोगों के व्यक्तित्व के बारे में कोई बात लिखने का वक्त आता है, तो यह बात बसंत शर्मा जैसे व्यक्ति के लिए जरूर लिखने का मन करता है कि सार्वजनिक दुनिया में बेहतरीन लोगों को तैयार करने में काफी वक्त लगता है।

इसमें उस शख्स की भी अपनी मेहनत ,अपनी सोच – समझ होती है और उस शख्स को बनाने में समाज की भी हिस्सेदारी होती है। ऐसे लोग समाज के लिए अहम भी हो जाते हैं। लेकिन एकाएक ऐसे शख्स का हमेशा के लिए साथ छोड़ जाना किसी बड़े आघात की तरह है।

बसंत शर्मा के असमय निधन की खबर के साथ जो जानकारियां सामने आ रही हैं ।उससे भी बड़ा आघात लगा है। दुखद खबर यह है कि बसंत शर्मा के परिवार के भी कुछ लोग कोरोना से पीड़ित रहे हैं। कुछ समय पहले उनके डीडीएसपी भाई की भी कोरोना से मौत हो गई थी। हाल ही में कुछ और परिवार जन भी कोरोना से ग्रसित है। जाहिर सी बात है कि परिवार जन की सेवा और उनके इंतजाम को लेकर सक्रिय रहने की वजह से ही बसंत शर्मा भी कोरोना की चपेट में आ गए होंगे। लेकिन सामने आ रही जानकारी के मुताबिक उन्हें भी समय पर इलाज नहीं मिल। सका असीम संभावनाएं लिए एक शख्स शहर के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत से संघर्ष करता रहा।

उनके परिजन बसंत शर्मा को अपोलो अस्पताल में दाखिल कराने के लिए नीचे से ऊपर तक छोटे से बड़े नेता तक गुहार लगाते रहे। हालांकि बड़े नेताओं की दखलंदाजी के बाद ही उन्हें अपोलो में दाखिला मिल सका था। लेकिन तब तक बहुत समय बीत चुका था और उनके फेफड़े में संक्रमण इतना फैल चुका था कि उन्हें ठीक नहीं किया जा सका। और एक भला इंसान हमेशा के लिए दुनिया से उठ गया। जो लोग अब तक कोरोना महामारी को हल्के में लेते रहे हैं और इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की दिक्कतों को भी अनदेखा करते रहे हैं ….उनके लिए बसंत शर्मा जाते-जाते यह सबक जरूर छोड़ गए हैं कि हालात बेकाबू और गंभीर है। ऐसे में लोगों की जिंदगी बचाने के लिए सिर्फ वाहवाही लूटने की बजाए जमीन पर उतर कर भी कुछ करना पड़ेगा। नहीं तो आज यह सोच कर मन कांप उठता है कि कोरोना का कहर इसी तरह जारी रहा तो कितने बसंत शर्मा …… हमारा साथ छोड़कर चले जाएंगे। बसंत शर्मा अलविदा। ऋतुराज बसंत की तरह ……… ओ जाने वाले हो सके तो फिर लौट के आना।।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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