इस संदर्भ में हम प्रदेश की जनता की भावना को इन पंक्तियों में अभिव्यक्त करना चाहेंगे:
“नरवा सुखागे, गरवा भूखागे,
घुरवा बेचागे, बारी बर्बाद होगे,
अब किसान के करजा नई होवे माफ
लोकसभा में कांग्रेस होगे साफ”
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नतीजे आने के पहले ही बिना किसी ठोस प्रमाण के ये कहना कि EVM में धाँधली हुई है से हम बिलकुल वास्ता नहीं रख सकते क्योंकि अगर धाँधली होती तो मात्र पाँच महीने पहले उसी EVM के द्वाराछत्तीसगढ़ की जनता उनकी पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश नहीं देती।“एक्जिट पोल इग्ज़ैक्ट पोल नहीं होता है” लेकिन छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने ये प्रमाणित कर दिया कि भूपेश सरकार द्वारा लोक सभा चुनावों में EVM और एग्ज़िट पोल को प्रभावित करने के बिना प्रमाण के लगाए आरोप पूरी तरह सेग़लत थे। उन्होंने केवल प्रदेश की पब्लिक के मूड को प्रतिबिंबित करने का काम किया है। इसके लिए हम प्रदेश की प्रेस को शुभकामनाएँ देते हैं। इसी तारतम्य में हम भूपेश बघेल के अपनी पार्टी की हार का टीकरा EVM पर फोड़ने केअसफल और कायराना प्रयास की कड़ी निंदा करते हैं।
बदलाव की बात करने वाली भूपेश सरकार बदले की राह पर निकल पड़ी है और ऐसी सरकार को प्रदेशहित में बदलने का समय आ गया है। इस से ज़्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है कि मुख्यमंत्री स्वयं अपने गृह लोक सभा को नहीं बचा पाए। आज का नतीजा कांग्रेस के लिए ’वेक-अप कॉल’ है। अभी भी सरकार का चार साल से अधिक का कार्यकाल शेष है। ऐसे में ‘कोर्स करेक्शन’- ग़लतियों को सुधारने और राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन- की आवश्यकता है। इसपर कांग्रेस को गंभीरता से विचार करना चाहिए।विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को मिले ऐतिहासिक जनादेश के पीछे उनके द्वारा हमारे नेता आदरणीय श्री अजीत जोगी जी के शपथ पत्र की नक़ल करके अपने ‘जनघोषणा पत्र’ में किसानों को पूर्ण कर्ज़ माफ़ी, बिजली बिल हाफ़, प्रदेश मेंआउटसोर्सिंग बंद, संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण करने और ₹ 2500 समर्थन मूल देकर ख़रीफ़ और रबी फ़सल की धान ख़रीदने का वादा प्रमुख आधार बने। लेकिन पाँच महीने में ये प्रमाणित हो चुका है कि नक़ल करने में भी अकलकी ज़रूरत होती है।
भूपेश सरकार की समीक्षा: भूपेश सरकार ने ख़रीफ़ फ़सल की धान को ₹ 2500 में ख़रीदने और किसानों द्वारा सहकारिता और ग्रामीण बैंकों से खाद, बीज और कीटनाशक के विरुद्ध अल्पक़ालीन ऋणों की माफ़ी करने की घोषणा करके बेहदअच्छी शुरुआत करी थी किंतु आज के नतीजों से स्पष्ट है की दुर्भावना तथा दूरदृष्टि और प्रशासनिक कौशल के अभाव में उसके क़दम लड़खड़ाने लगे हैं। जितनी तेज़ी से जनता ने इस सरकार को अपनी नज़रों में बैठाया था, उस से ज़्यादा तेज़ीसे उसे अपनी नज़रों से गिरा भी दिया है। पाँच महीने में 9 बार क़र्ज़ा लेने के बाद आज पूरे प्रदेश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है। सम्पूर्ण शराबबंदी लागू करने के बजाए शराब माफ़िया के प्रभाव में आकर भूपेश सरकार ने शराब की दरों, शराबकी क़िस्मों की संख्या और शराब दुकानों में संचालित काउंटरों को बढ़ाने के जनविरोधी निर्णय लिए हैं। बिजली बिल हाफ़ करने के बजाय बिजली सप्लाई हाफ़ हो चुका है। विगत विधानसभा सत्र में पारित बजट में जो लगभग 50,000 नौकरियां स्वीकृत की गई थी, उसमें भी सरकार ने यह शर्त रख दी कि “छत्तीसगढ़ का मूल निवासी होना अनिवार्य नहीं है।” संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण का वादा निभाना तो दूर, विगत चार महीनों से उन्हें भूपेश सरकार तनखा तकनहीं दे पाई है। राशन दुकानों में प्रशासनिक लापरवाही के कारण तीन महीने से चना और दाल मिलना बंद हो चुका है। अधोसंरचना विकास से जुड़े कार्य जैसे सड़क, पुल-पुलिया, कूप और बाँधों के निर्माण कार्यों पर पैसा न होने के कारण पूरीतरह से रोक लगा दी गई है। जिस दिन सरकार ने बस्तर में टाटा-विस्थापितों की ज़मीनें वापस करने का निर्णय लिया, उसी दिन सरकार ने हाथियों के लिए संरक्षित कोरबा-रायगढ़ स्थित हसदेव-अरण्य और लेमरू के जंगलों में 30 कोयलाखदानों को स्वीकृति देकर, एक विशेष औद्योगिक घराने को लाभ पहुँचाने की दृष्टि से, वहाँ के लाखों वनवासियों को बेघर करने का फ़तवा भी जारी कर दिया है।