बिलासपुर—मोपका हल्का 29 स्थित सरकारी और पट्टा की जमीन पर नियमों से छेड़छाड़ और लाखों की राजस्व चोरी का नया मामला फिर सामने आया है। मामले में अधिवक्ता प्रकाश सिंह की शिकायत पर कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर ने एसडीएम पुलक भट्टाचार्च को जांच का आदेश दिया है। शिकायत के अनुसार प्रकरण में डायवर्टेड जमीन को कृषि भूमि बताकार पंजीयन और नामांतरण का खेल डायवर्सन शाखा में खेला गया है। बहरहाल टीम का गठन कर एसडीएम ने जांच शुरू कर दिया है।अधिवक्ता प्रकाश सिंह ने मोपका हल्का 29 नम्बर स्थित पट्टे की जमीन को लेकर कलेक्टर से शिकायत की है। शिकायत में बताया गया है कि खसरा नम्बर 992/9 की जमीन शासन ने विक्रेता को अहस्तांतरित पट्टा के रूप में दिया है। बावजूद इसके नियमों से छेड़छाड़ कर जमीन मालिक ने कृषि भूमि का डायवर्सन कराया। जबकि ऐसा किया जाना राजस्व नियमों के खिलाफ है।
ना ही कलेक्टर से अनुमति ही लिया गया है। फिर भी जमीन मालिक ने कमिश्नर कार्यालय से बैंक ऋण लिए जाने की मांग को लेकर गलत तरीके से अहस्तांरित शब्द भी हटवा लिया। शिकायत में बताया गया है कि विमला ने चार एकड़ जमीन 6 टुकड़ों में बेचा। पूरी प्रक्रिया में ना केवल राजस्व नियमों का खुला उल्लंघन हुआ। बल्कि केन्द्र और राज्य शासन को लाखों रूपयों का नुकसान भी हुआ है।
शिकायत कर्ता के अनुसार शासकीय पट्टा जमीन का मद परिवर्तन बिना कलेक्टर के आदेश से संभव नही है। ना ही पट्टे से अहस्तांतरण शब्द को ही हटाया जा सकता है। बावजूद इसके पहले कृषि जमीन को डायवर्टेड किया गया। इसके बाद नियम विरूद्ध अहस्तांतरित शब्द को भी हटाया गया। शिकायत में जिक्र है कि विमला ने चार एकड़ पट्टा की जमीन को बिना कलेक्टर अनुमति मद परिवर्तन किया। इसके बाद जमीन को कृषि योग्य बताकर डायवर्टेड कर 6 टुकड़ों में बेचा गया। यह जानते हुए भी कि कृषि जमीन पर रजिस्ट्री शुल्क बहुत कम होता है। इस तरह से शाशन को लाखों रूपयों का नुकसान हुआ है।
प्रकरण में डायवर्सन शाखी की भूमिका संदिग्ध बताया जा रही है। जबकि तात्कालीन तहसीलदार ने उसी तारीख को अन्य अलग अलग जमीनों का नामांतरण किया। लेकिन खसरा नम्बर 992/9 का नामांतरण नहीं किया। ना ही नामांतरण पंजी पर किसी प्रकार का सील सिक्का लगा है। हस्ताक्षर तो है लेकिन किसने किया इसकी जानकारी किसी को नहीं है। जाहिर सी बात है कि नामांतरण के समय डायवर्सन शाखा के अधिकारी और पटवारियों ने जमीन माफियों के साथ मिलकर कूटरचना को अंजाम दिया है।सीजी वाल को हासिल दस्तावेज के अनुसार रजिस्ट्री के समय जमीन को कृषि योग्य बताया गया है। जबकि नामांतरण पंजी में जमीन डायवर्टेड है। मजेदार बात है कि दोनों दस्तावेंजों में एक ही हस्ताक्षर है। लेकिन ना तो सील लगा है और ना ही सिक्का…। यदि कुछ लगा है तो डायवर्सन विभाग का भ्रष्टारचार का सिक्का।