मरवाही विधानसभा चुनावः दोनों तरफ लगी आग..सरपंच संघ ने किया डॉ.ध्रुव का विरोध..गंभीर के खिलाफ भाजपा में हलचल..पंचायतों को मनाने पहुंचे अटल

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर/ जीपीएम—–पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद प्रदेश के एक मात्र विधानसभा क्षेत्र मरवाही में चुनावी मौसम पूरे शबाब पर है। 3 नवम्बर को होने वाले मतदान के लिए तीनो ही पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। जन सम्पर्क अभियान महीनों पहले से ही शुरू हो गया है। पार्टियों के बड़े-बड़े  नेता मतदाताओं के सीधे संपर्क कर रहे है और अलग अलग मुद्दों के साथ लुभा भी रहे हैं। कांग्रेस ने जहाँ विकास को मुद्दा बनाया है तो भाजपा नेता मरवाही को अपना स्वभाविक सीट मानते हैं। वही कानून के बवंडर में घिरे अमित जोगी मरवाही विधानसभा को परिवार का होना बता रहे हैं। कुल मिलाकर इसके उलट भी प्रतिक्रियाएं एक दूसरे पार्टी के खिलाफ नेताओ और जनता के बीच से आ रही है। बहरहाल उपचुनाव को तीनों ही दल अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर जीत के लिए रणनीति बनाकर काम कर रहे हैं।
 
प्रत्याशी का एलान
 
          मजेदार बात है कि लोप्रियता में काफी पीछे चल रही भारतीय जनता पार्टी किसी भी सूरत में विपक्षी दलों और खासकर सरकार को वॉक ओवर देने के मूड़ में नही है। यही कारण है कि भाजपा ने समय से पहले ही दूसरे दल के प्रत्याशी के इंतजार किए बिना प्रत्याशी घोषित करने में आगे निकल गयी है। मतलब भाजपा ने एक दिन पहले ही डॉ गंभीर सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है
 
ध्रव पर गंभीरता से विचार
                      बावजूद इसके सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने अभी अपने पते नही खोले है। फिर भी संभावना जाहिर की जा रही है कि कांग्रेस मरवाही खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ के.के.धुव्र को मैदान उतार सकती है। वैसे कांग्रेस में उम्मीदवारों में अजीत सिंह श्याम और प्रमोद परस्ते का नाम गंभीरता के साथ लिया जा रहा है। लेकिन अन्दर खाने की खबर  है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं की पहली पसंद डॉ.के.के.ध्रुव ही हैं।सभी लोग जानते हैं कि डॉ.के.के.ध्रुव बलौदा बाजार के रहने वाले है। जोगी के आशीर्वाद पर्यन्त पिछले 15 सालों से मरवाही बीएमओ बनकर क्षेत्र में काबिज हैं।
 
जिला सरपंच ने खोला धुर्व के खिलाफ मोर्चा..मनाने पहुंचे अटल
 
                  यही कारण है कि डॉ.के.के. ध्रुव के नाम की सुगबुगाहट के बीच कार्यकर्ता के अलावा आम आदिवासी समाज और जनता में विरोध भी शुरू हो गया है। एक दिन पहले यानि रविवार को  जिला सरपंच संघ ने डॉ.कृष्ण कुमार ध्रुव को बाहरी होने को लेकर विरोध किया है। स्थानीय व्यक्ति को प्रत्याशी बनाये जाने की मांग की मांग को लेकर जिला सरपंच संघ ने कांग्रेस के वहिष्कार का एलान किया है। खबर मिलते ही पार्टी नेताओं के होश उड़ गए है। जिला सरपंच संघ ने कांग्रेस को दो टूक फरमान जारी किया है कि यदि पार्टी ने विरोध को गंभीरता से नहीं लिया तो संघ अपने प्रत्याशी को मैदान में उतार सकती है। अभी भी कांग्रेस पार्टी के सामने जीत सिंह श्याम या प्रमोद परस्ते के अलावा स्थानीय प्रत्याशी पर विचार करने का समय है।
 
गंभीर के खिलाफ गंभीर विरोध
 
              इदर कुछ ऐसी ही सूरत भाजपा में भी है। बेशक डॉ.गंभीर सिंह स्थानीय हैं..लेकिन उनकी छवि भी बाहरी की ही है। क्योंकि साल 1994 से डॉ. गंभीर सिंह मरवाही क्षेत्र से बाहर के हो गए है। उनका क्षेत्र से रिश्ता केवल घर तक ही है। 1994 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर डॉ.गंभीर भोापल में पांच साल की शिक्षा को पूरी किया। इसके बाद पीजी करने ग्वालियर मेडकल कालेज में दाखिला लिया। पीजी करने के बाद उन्होने सालों तक भारतीय रेलवे में भुूसावल में रहकर चिकित्सक के पद पर काम किया। इसके बाद रायपुर मेडिकल कालेज में सेवाएं दी। इस समय रायपुर मेडिकल साइंस कालेज में सेवा दे रहे है। रायपुर में ही घर है। जिला के कुछ दावेदार भाजपा नेताओं ने बताया कि हम जीवन भर दरी उठाएं..मैदानी दौर करें..जनता की गाली खाएं और टिकट कोई बाहरी ले जाए..इसे किसी भी सूरत में बर्दास्त नहीं करेंगे। डॉक्टर गंभीर को टिकट सिर्फ इसलिए दिया जाना उचित है कि वह मरवाही में जन्म लिए हैं..तो..हो सकता है कि यह तर्क  भाजपा के बड़े नेताओं के लिए ठीक है..लेकिन हम और हमारी जनता के लिए बर्दास्त के काबिल नहीं है। कुल मिलाकर यहां भी बाहरी और स्थानीय लोगों की लड़ाई है। स्थानीय कार्यकर्ता यहां भी प्रत्याशी बदलने की मांग करते हुए समीरा पैकरा और अर्चना पोर्ते को मैदान में उतारने की मांग कर रहे है। बताया जा रहा है कि यदि पार्टी ने टिकट वापस नहीं लिया तो आदिवासी जनता को विरोध में मत देने की मांग करेंगे
 
 आदिवासियों की वोट गणित
    
                जैसा की सबको मालूम है कि मरवाही आदिवासी बहुल विधासभा है। यहां करीब 70 प्रतिशत आबादी आदिवासी मतदाताओं की है। इसमें गोंड आदिवासी समाज का वोट प्रतिशत करीब 30 प्रतिशत है। जबकि 40 प्रतिशत वोट कंवर समाज का है। बताते चलें कि अजीत जोगी खुद को कंवर समाज से बताते रहे हैं।
 
किसकों होगा फायदा
 
               अन्दर की खबर की माने तो कंवर समाज का बहुत बड़ा वर्ग आज भी जोगी परिवार के साथ है। यदि कांग्रेस ने ध्रुव को मैदान में उतारा तो गोंड समाज का बहुत वर्ग वर्ग जोगी की खिलाफत करने वाले कंवर समाज के साथ जोगी खेमें या भाजपा खेमें में जा सकते है। यदि जिला सरपंच संघ को गंभीरता से नहीं लिया गया तो एक बार फिर आदिवासी समाज जोगी के पक्ष में मतदान कर सकता है। वहीं भाजपा में अन्दरूनी कलह का फायदा जोगी को मिलता दिखाई दे रहा है। यह फायदा कांग्रेस को इसलिए नहीं मिलता नजर आ रहा है क्योंकि वहां भी आदिवासी समाज बाहरी बनाम स्थानीय को लेकर उलझा हुआ है।

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