तहसील मे डयूटी,10 साल से स्कूल का रास्ता नही देखा,बन गए उत्कृष्ट शिक्षक..व्यवस्था की जय हो !!

BHASKAR MISHRA
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teacherबिलासपुर।आज महान शिक्षाविद् पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्ण की जयंती है। आज के दिन को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के ही दिन शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है। देश की व्यवस्था थोड़ी ढीली है…इसलिए कुछ ऐसे भी शिक्षक सम्मानित हो जाते हैं जिनका योगदान शिक्षा के क्षेत्र में कम अन्य क्षेत्रों में अधिक होता है। अधिकारियों की नजर में ऐसे शिक्षकों का योगदान अतुलनीय होता है।
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                                 कबीर दास जी ने कहा है कि सात समुन्दर मसि करें..लेखनी सब वनराई…धरती को कागज करूं..हरि गुण लिखा ना जाए। कबीर की इस चौपाई को शिक्षा विभाग पर भी फिट किया जा सकता है। मतलब शिक्षा विभाग की जितनी तारीफ की जाए कम है। मस्तूरी ब्लाक के हिर्री मीडिल स्कूल गणित टीचर को शिक्षा विभाग की अनुशंसा पर मुख्यमंत्री के हाथों उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मान का एलान हुआ है। घोषणा के बाद हिर्री स्कूल शिक्षकों में खुशी की वजाय गम ज्यादा है। आक्रोश भी है। लेकिन शिक्षक कर भी क्या सकते हैं।चर्चा है कि रामेश्वर राठौर ने दस साल से स्कूल नहीं देखा..चाक नहीं उठाया…ब्लैक बोर्ड कब व्हाइट बोर्ड में बदल गया इसकी भी जानकारी नहीं है। अधिकारी पसंद शिक्षकों को उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मान मेहनत करने वाले शिक्षकों का मनोबल तोड़ने वाला है।

दस साल से स्कूल नहीं गया

                  रामेश्वर राठौर की नियुक्ति मस्तूरी शिक्षा खण्ड के हिर्री मीडिल स्कूल में गणित के शिक्षक रूप में हैं। उनकी प्रतिभा का लभा पिछले दस साल से स्कूल के बच्चों को नहीं मिला है। रामेश्वर राठौर क्लर्किकल काम में निपुण हैं। यही कारण है कि पिछले दस साल से मस्तूरी तहसील में बाबूगिरी कर रहे हैं।बीएलओ का काम करते हैं। लोगों से उनका अच्छा सम्पर्क  है…लेकिन स्कूल से कोई मतलब नहीं है । दस सालों में उन्होने स्कूल का मुंह नहीं देखा। जबकि प्रदेश में गणित के शिक्षकों की बहुत कमी है। बावजूद इसके दस सालों से राठौर की प्रतिभा का बच्चों को कोई फायदा नहीं मिला है।

                                          स्कूल के ही एक शिक्षक ने बताया कि रामेश्वर राठौर से भी योग्य शिक्षक हैं…बैक सपोर्ट नहीं होने के कारण योग्य शिक्षक अवार्ड पाने में पीछे रह जाते हैं। राठौर पिछले दस साल से ना तो ब्लैक बोर्ड देखा और ना ही चाक उठाया। स्कूल का तो उन्होने मुंह भी नहीं देखा है। ऐसी सूरत में उन्हें उत्कृष्ट शिक्षक का सम्मान दिया जाना अन्य शिक्षको का अपमान है। जो शिक्षक बच्चों में शिक्षा की ज्योति लगातार जला रहे हैं। उन्हें विभाग के अधिकारियों ने ना केवल उपेक्षित किया बल्कि अपमानित भी किया गया है।

हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं

teacher.                       मस्तूरी तहसीलदार पी.के.गुप्ता ने बताया कि रामेश्वर राठौर तहसील में काम कर रहे हैं। सब कुछ व्यवस्था के तहत है। उन्हें क्यों अवार्ड दिया जा रहा है। अवार्ड के लिए चयन किसने किया। इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है। प्रश्न करने पर तहसीलदार पी.के गुप्ता ने झल्लाते हुए मोबाइल डिस्कनेक्ट कर दिया।

पता लगाएंगे कौन है रामेश्वर राठौर

                 मस्तूरी एसडीएम राठौर ने कहा कि हमारे यहां अटैचमैन्ट का प्रावधान नहीं है। रामेश्वर राठौर कौन है पता लगाएंगे। तहसील कार्यालय में कब से हैं अधिकारी जानकारी मांगेंगे।  रामेश्वर राठौर दस साल से तहसील में हैं इसकी जानकारी फिलहाल उन्हें नहीं है। उनका सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के रूप में चयन होना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। चयन करने का काम शिक्षा विभाग का है। क्यों हुआ..कैसे हुआ…गलत हुआ…या सही हुआ…इसका जवाब हमारे पास नहीं है।

टेक्निकली अच्छा शिक्षक

                                जिला शिक्षा अधिकारी हेमन्त उपाध्याय ने बताया कि रामेश्वर राठौर टेक्निकली अच्छे शिक्षक हैं। मैथ्स के अच्छे जानकार है। यह सच है कि स्कूल को उनकी सेवाएं अभी नहीं मिल रही हैं। राठौर के योगदान को ध्यान में रखते हुए उनका नाम उत्कृष्ट शिक्षकों की सूची में राज्य शासन को भेजा गया था। उनका चुनाव हुआ है। अच्छी बात है। बीईओ सराफ ने उनके योगदान और प्रतिभा को ध्यान में रखकर नाम सजेस्ट किया था।

                                  इधर नाखुश ना केवल हिर्री स्कूल के शिक्षक बल्कि मस्तूरी के अन्य शिक्षकों का कहना है कि पिछले दस साल से राठौर ने स्कूल का रास्ता नहीं देखा। अधिकारियों की जी हुजूरी कर सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का तमगा हासिल कर लिया। मेहनत करने वाले शिक्षकों के मनोबल पर गलत प्रभाव पड़ेगा। चापलूसी और जोड़ तोड़ से ही अवार्ड मिल सकता है तो पढ़ाने की जरूरत क्या है। इससे तो अच्छा होता कि हमें भी कहीं अटैच कर दिया जाए। कम से कम शिक्षक दिवस का अवार्ड तो मिल जाएगा। कुछ शिक्षकों ने बताया कि अवार्ड देने की परंपरा को ही खत्म कर दिया जाए। ऐसा करने से कम से कम मेहनत करने वाले शिक्षक अपमानित तो नहीं होंगे।

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