बिलासपुर।करगीरोड कोटा के कोटसागरपारा में शुक्रवार की सुबह हाईटेंशन बिजली तार की चपेट में आने से 63 साल के राजेन्द्र शर्मा की मौत हो गई। वे सिंचाई विभाग के रिटायर कर्मचारी थे। वे सुबह-सुबह मार्निंग वॉक पर निकले थे और रास्ते पर टूटा हुआ तार पड़ा देखकर उसे रास्ते से किनारे लगाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हे नहीं मालूम था कि इस तार पर बिजली मौत बनकर दौड़ रही है। जिसने उन्हे अपनी चपेट में ले लिया । बिजली के तेज झटके से राजेन्द्र शर्मा दूर छिटककर सड़क किनारे के नाले में जा गिरे और उनकी मौत हो गई।खबर सिर्फ इतनी ही नहीं है। मौके पर हालात चीख-चीख कर बता रहे हैं कि राजेन्द्र शर्मा की असमय मौत की कहानी से रेल्वे की स्लीपर बनाने वाली आर. आर पाटिल कम्पनी का भी रिश्ता है। जिसकी आपराधिक लापरवाही न केवल राजेन्द्र शर्मा की मौत का कारण बनी, बल्कि कोटा के पहाड़ों और वहां की प्राकृतिक संपदाओँ को भी खोखला कर रही है। हादसे के बाद आर आऱ पाटिल कम्पनी पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और गुस्साए लोगों ने सड़क जाम कर दिया। मौके पर पुलिस पहुंची । लोग सड़क पर लाश ऱखकर मुआवजे की मांग कर रहे थे।आखिर आर आर पाटिल कम्पनी ने उनके परिवार को एक लाख का मुआवजा दिया तब जाकर चक्काजाम खत्म हुआ।
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लेकिन यह कम्पनी जिस अदाज में अपना कारोबार चला रही है और कोटा के प्राकृतिक संसाधनों का बेजा दोहन कर रही है, उससे पर्यावरण के लिहाज से यह कम्पनी लाखों लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रही है । और चाहे जितना भी मुआवजा लिया जाए इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती।मौके पर कम्पनी का पूरा काम ही अवैध नजर आता है। बताया गया कि कम्पनी वहां अपनी पन्द्रहवीं फैक्ट्री लगा रही है, जिस जगह पर राजेन्द्र शर्मा की मौत हुई है।इसके लिए बड़े पहाड़ को खोदा जा रहा है और जमीन बराबर की जा रही है।लोगों ने बताया कि करीब 250 पेड़ काट डाले गए हैं।रेल्वे के स्लीपर रखने के लिए यहां पर प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। सीजीवाल ने जानने की कोशिश की कि यह सब किसकी अनुमति से किया जा रहा है …?क्या इसके लिए पर्यावरण विभाग- एनजीटी की अनुमति ली गई है और क्या इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन किया गया है ? इस पर पहले तो कम्पनी के ब्रांच मैनेजर जलालुद्दीन ने कहा कि सारा काम नियम के अनुसार किया जा रहा है। लेकिन जब कागज दिखाने के लिए कहा गया तो बगलें झांकने लगे।
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हालात देखकर लगता है कि कम्पनी को ना किसी का डर है ना भय है……… और बेखौफ होकर अपने मनमाने तरीके से अपना काम किए जा रही है। आज भी वहां पर कई ट्रक और जेसीबी मशीनों से काम चल रहा है। पहाड़ काटकर समतल जमीन बनाई जा रही है। पहाड़ की मुरुम- गिट्टी से ठौर पर ही वे अपना प्लेटफार्म बना रहे हैं। सबकुछ उन्हे जहां-का-तहां मिल रहा है। जिसे देखकर लगता है जैसे छत्तीसगढ़ के जल-जंगल-जमीन पर ऐसे ही लोगों का अधिकार है.।……….जो जहां पा रहे हैं वहां अपने तरीके से उसका दोहन कर रहे हैं। बदले में रोजगार का लालच दे दिया जाता है। लेकिन राजेन्द्र शर्मा जैसे बेकसूर लोगों की मौत ही बदले में मिलती है। और इसके बाद अंतिम संस्कार में शामिल होने के अलावा हम और कुछ नहीं कर सकते …………।