NEWS&VIEWS: साहब जी. ! ट्रेनों की “स्टापेज बहाली” पर जश्न मनाएं….या बेबसी पर आँसू बहाएं…?

Shri Mi
10 Min Read

( गिरिजेय ) “भारतीय रेल के नक्शे में सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाले बिलासपुर रेलवे जोन और रेल डिवीजन के लिए बड़ी उपलब्धि है कि 4 रेलगाड़ियों के छोटे स्टेशनों में स्टॉपेज की मंजूरी मिल गई है। तारीफ की बात है कि रेल यात्रियों को यह सौगात बिलासपुर के सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव की ओर से लिखी गई चार चिट्ठियों के बाद मिली है। ये चिट्ठियां पिछले करीब डेढ़ – दो साल के दौरान लिखी गई।

Join Our WhatsApp Group Join Now

जिस तरह किसी नई ट्रेन को चलाने वाहवाही के लिए होड़ लगती है, उसी तरह पहले से चल रही ट्रेनों के स्टॉपेज पर ख़ुशी और श्रेय का माहौल नज़र आ रहा है।लेकिन लोग इस पर ख़ुशी मनाएं … या अपने नुमाइँदों की लाचारी- बेबसी पर आँसू बहाएं, यह समझ नहीं आ रहा है। चूँकि हकीकत यह है कि बिलासपुर से कटनी और हावड़ा – नागपुर रेल लाइन पर अभी भी कई गाड़ियां ऐसी हैं, जिनका स्टॉपेज नहीं होने की वजह से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लोग काम पर नहीं जा पा रहे हैं, बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुई है और सामान्य यात्रियों के आने – जाने पर असर पड़ा है।”

हाल ही में जब यह खबर आई कि रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने बिलासपुर रेलखंड में चार ट्रेनों के स्टॉपेज को मंजूरी दी है। उसके बाद लोगों से बातचीत के दौरान कुछ इस तरह की प्रतिक्रियेँ सामने आई है। खबर यह है कि नर्मदा एक्सप्रेस और रीवा एक्सप्रेस अब करगीरोड स्टेशन पर रुकेगी। नर्मदा एक्सप्रेस बेलगहना स्टेशन पर रुकेगी और इसी तरह टाटानगर – इतवारी पैसेंजर का बिल्हा में स्टॉपेज होगा।

“उपलब्धियों” से भरा यह समाचार जारी करते हुए जानकारी दी गई कि बिलासपुर सांसद अरुण साव ने इन ट्रेनों के स्टॉपेज के लिए पिछले करीब डेढ़ साल के दौरान 4 चिट्ठियां लिखी। समाचार में इन चिट्ठियों की तारीख भी बाकायदा दर्ज की गई है। साथ ही बताया गया है कि रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने इन चिट्ठियों को “गंभीरता” से लेते हुए चार ट्रेनों के स्टॉपेज की मंजूरी दी। इससे मुसाफिरों को भारी राहत मिलेगी।

अरुण साव छत्तीसगढ़ के प्रभावशाली सांसद है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी हैं। उनकी मांग और चिट्ठियों को डेढ़ साल बाद इतनी “गंभीरता” से लिया गया और यात्रियों को राहत दी गई। यह खबर कुछ इस अंदाज में सामने आई है, जैसे हमारे जनप्रतिनिधि की मांग पर कोई नई ट्रेन चलाई गई हो।

गौर करने की बात यह भी है कि यह उस इलाके की खबर हैं, जहां का रेलवे जोन और रेल डिवीजन भारतीय रेल के नक्शे में कमाऊ पूत की तरह पहचाने जाते हैं।जिस इलाक़े के लोगों ने जनआंदोलन के ज़रिए रेल्वे का ज़ोनल हेडक्वार्टर हासिल किया हो … जहाँ के नुमाइंदों ने पहले पता नहीं कितनी नई रेलगाड़ियां शुरू कराने में कामयाब़ी हासिल की हो….।

वहां के लोग अब किसके पास जाकर यह सवाल पूछें कि डेढ़ साल में चार –चार चिट्ठियां लिखने के बाद अगर रेल मंत्री चार ट्रेनों के स्टापेज की मंज़ूरी दे रहे हैं, तो यह ख़ब़र पाकर यहां के लोग खुशियां मनाएं … या आज़ के हालात पर आंसू बहाएं…. ? क्या यह इतनी बड़ी ख़ुशख़ब़री है… जैसे किसी नई ट्रेन की सौगात मिल गई हो..।जो रेलगाड़ियां दशकों से चल रही हैं….। छोटे-छोटे स्टेशनों पर जिनका स्टापेज बरसों से हैं…. और जहाँ से लोग पता नहीं कब से ट्रेनों पर आना – जाना कर रहे हैं….. ।

क्या उनके लिए वाक़ई यह सौगात है कि उनके स्टेशन पर फ़िर से रेलगाड़ी रुकेगी… ? यह तो कुछ वैसा ही हुआ ,जैसे किसी के हाथ से कुछ छीनकर पहले तो उसे रोने दिया जाए,फ़िर कुछ दिन बाद छीनी हुई चीज़ का कुछ हिस्सा हाथ में थमाकर उसे हंसने के लिए कहा जाए। हो सकता है कि आने वाले समय में यह भी ख़ब़र आए कि जिन चार स्टेशनों पर ट्रेनों के स्टापेज की मंज़ूरी दी गई है, वहां पर एक जलसा आयोजित कर “स्टापेज ब़हाली ” का जश्न भी मनाया जा रहा है।

दूसरी तरफ तस्वीर यह है कि कोरोना काल में कई गाड़ियां बंद की गई थी। एक समय में सारी ट्रेनें बंद थी। फिर स्थिति सामान्य होते होते धीरे-धीरे कुछ ट्रेनें शुरू की गई। लेकिन उनका स्टापेज कम कर दिया गया । जिन स्टेशनों पर बरसों से ट्रेनें रुकती थीं, वहां के लोग बेबसी से देख रहे हैं कि रेलगाड़ी आती है और बिना रुके धड़धड़ाते हुए निकल जाती है। पैसेंजर ट्रेनें तो पैसेंजर के लिए ही होती हैं और हर एक स्टेशन पर रुकती रहीं हैं।

बिलासपुर के आसपास ही घुटकू,करगीरोड, बेलगहना, ख़ोंगसरा, ख़ोडरी, भनवारंटंक,बिल्हा,चकरभाठा,दगौरी,हथबंद, सिलियारी,जयरामनगर,गतौरा जैसे कई स्टेशनों के लोग बता देंगे कि किस तरह उनकी पिछली कई पीढ़ियां पैसेंजर ट्रेनों में सफ़र करती रही हैं। लेकिन अब उनका यह हक़ छिन गया है। समय के साथ कदम मिलाते हुए आगे बढ़ने में जिन रेलगाड़ियों से उन्हे बरसों तक सहारा मिलता रहा, अब वही गाड़ियां बिना रुके उनके सामने से निकल जाती हैं। काम की तलाश में शहर जाने और वापस घर लौटने की सहूलियत छिन गई है।

ट्रेन के ज़रिए आना-जाना कर स्कूल – कॉलेज में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं के पास अब यह साधन नहीं हैं। समय पर इलाज कराने के लिए ट्रेन के भरोसे शहर जाने वाले लोगों के लिए बरसों पुराना साधन अब नहीं रहा।मासिक सीज़न टिकट ( एम.एस.टी.) बनवाकर कम ख़र्चे में रोज़ अपने काम के लिए सफ़र करने वाले लोगों के पास अब यह सहूलियत नहीं है।

इस बारे में लोगों से बात करेंगे तो ऐसी कितनी ही समस्याएं सामने आती हैं। ऐसा नहीं है कि लोग इस बारे में ख़ामोश बैठे हैं। बल्कि इस समस्या को लेकर ज्ञापन – आवेदन का सिलसिला पिछले काफ़ी समय से चल रहा है। फ़िर भी कोई समाधान नहीं होने के बावज़ूद संघर्ष ज़ारी है। बिल्हा में ही स्टेशन के सामने सत्याग्रह पिछले करीब़ 65 दिन से लगातार ज़ारी है। इस बारे में प्रकाश बिंदल बताते हैं कि कोरोना से पहले बिल्हा स्टेशन में आठ एक्सप्रेस ट्रेनों का स्टापेज था ।

लेकिन अभी एक भी एक्सप्रेस नहीं रुक रही है। बिल्हा स्टेशन से डोलोमाइट,चांवल,खाद , सीमेंट आदि के लदान के ज़रिए रेल्वे को अच्छी आमदनी होती है। इसी तरह यूटीएस और पीआरएस के ज़रिए टिकट की ब़िक्री भी न्यूनतम पैरामीटर से कई गुना अधिक है। फ़िर भी ट्रेनों का स्टापेज़ नहीं होने पर नागरिक सत्याग्रह कर रहे हैं। प्रकाश बिंदल ने यह भी बताया कि बिल्हा में 8 प्राइवेट स्कूल, कॉलेज और आईटीआई है। जहां पर बाहर के बच्चे भी पढ़ने आते रहे हैं। लेकिन ट्रेन की सहूलियत नहीं मिलने से सैकड़ों बच्चों की पढ़ाई बंद हो गई है।

बिल्हा के कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ सिंधी साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष नानक रेलवानी ने भी बताया कि उद्यमी – व्यापारी – कारोबारी से लेकर सामान्य कामगार तक सभी रेलगाड़ी के जरिए आना जाना करते हैं। स्टापेज भी बंद है और एमएसटी की सुविधा भी शुरू नहीं हो रही है। 6 सौ रुपए महीने यानी बीस रुपए प्रतिदिन के हिसाब़ से एमएसटी बनवाकर लोग रायपुर तक आना-जाना कर लेते थे । लेकिन अभी कई गुना अधिक खर्च करना पड़ रहा है। पुरानी व्यवस्था तत्काल ब़हाल की जानी चाहिए।

जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी बताते हैं कि कोटा, बेलगहना, जयरामनगर , बिल्हा जैसे कई स्थानों के लोगों के साथ वे पिछले काफ़ी समय से इस मुहिम में शामिल हैं। ट्रेनों के स्टापेज की ब़हाली के लिए सांसद अरुण साव के बंगले का घेराव कर चुके हैं। केन्द्रीय मंत्री फ़ग्गन सिंह कुलस्ते, स्मृति इरानी के सामने भी प्रदर्शन कर चुके है और काले झण्डे भी दिखा चुके हैं। लेकिन कोई भी आम लोगों का दर्द नहीं समझ रहा है। उन्होने बताया कि बेलगहना में लगने वाले रात्रिकालीन बाज़ार का पूरा कारोब़ार ही इस वज़ह से ठप्प हो गया है। ऐसे कई उदाहरण है। यह दुर्भाग्यजनक है कि हमारे जनप्रतिनिधि कई चिट्ठियां लिखते हैं। तब जाकर दो ट्रेनों का स्टापेज शुरू करने की ख़बर सामने आती है। लोगों से छीनी गई सुविधा का थोड़ा सा हिस्सा लम्बे इंतज़ार के बाद वापस देकर वाहवाही लूटने की कोशिश बताती है कि केन्द्र सरकार को आम लोगों की तकलीफ़ों से कितना मतलब है।

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close