दिल्ली।देश भर में कोरोना वायरस का कहर बरकरार है. सबसे ज्यादा मामले इस वक्त केरल से सामने आ रहे हैं. राज्य इस समय कोरोना ही नहीं बल्कि निपाह वायरस से भी जूझ रहा है. भले ही दोनों ही वायरस नेचर में एक जैसे हों लेकिन, दोनों अपने-अपने तरीके से काफी अलग हैं. कोझिकोड जिले से कुछ दूरी मावूर में 12 साल के बच्चे की निपाह वायरस से मौत होने के बाद प्रशासन अलर्ट हो गया है.विश्व स्वास्य संगठन (WHO) के मुताबिक निपाह वायरस (NiV) एक खतरनाक वायरस है. यह जानवरों और इंसानों में एक गंभीर बीमारी को जन्म देता है. चौंकाने वाली बात यह है कि हाल में वायरस के एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंचने की पुष्टि हुई है. ऐसे में केरल पर कोरोना के खतरे के बीच निपाह का भी खतरा मंडरा रहा है, जोकि प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है.
निपाह एक जूनोटिक वायरस है
निपाह वायरस (Nipah Virus) को एक जूनोटिक संक्रमण (एक ऐसा संक्रामक जो प्रजातियों के बीच, जानवरों से इंसानों में या इंसानों से जानवरों में होती है). 1999 में इस वायरस को अलग कर दिया गया और इसकी पहचान की गई. इस बीमारी का नाम मलेशिया के एक गांव सुंगई निपाह के नाम पर रखा गया था.
निपाह वायरस सुअर, कुत्ते, बकरी, बिल्ली, घोड़े और भेड़ से भी हो सकते हैं. माना जाता है कि वायरस नेचर में “फ्लाइंग फॉक्स” द्वारा बनाए रखा जाता है, जो संक्रमण के कोई लक्षण नहीं दिखाता है. दूसरी ओर, चीन के वुहान में पहले मामले का पता चलने के बीस महीने बाद भी, SARS COV-2 की स्रोत का पता नहीं चल पाया है. शुरुआत में यह माना जाता था कि यह वुहान में एक बाजार से मिला था. यह “मेड-इन-लैब”, “मेड-इन-चाइना” वायरस था या नहीं, इस पर बहस अभी भी जारी है.
निपाह का नहीं है कोई इलाज
कोरोना की तरह ही निपाह वायरस का कोई इलाज नहीं है. इन दोनों के खिलाफ ही अभी तक कोई एंटीवायरल दवा नहीं बनी है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने कहा कि वर्तमान में, निपाह वायरस ((NiV)) के लिए कोई लाइसेंस प्राप्त इलाज उपलब्ध नहीं है. सीडीसी ने कहा कि “इम्यूनोथेराप्यूटिक इलाज (मोनोक्लोनल एंटीबॉडी थेरेपी) हैं जो वर्तमान में एनआईवी संक्रमण के उपचार के लिए की जाती है.
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के राज्य को पत्र के अनुसार भारत इलाज उद्देश्यों के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के उपयोग की खोज कर रहा है. वहीं, कोरोना वायरस की बात करें तो अक्टूबर 2020 में, खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने इसके इलाज के लिए एंटीवायरल दवा रेमेडिसविर को मंजूरी दी थी लेकिन, यह एक पुनर्निर्मित दवा है और आज तक किसी भी एंटीवायरल दवा को वायरस के इलाज के लिए लाइसेंस नहीं मिला है.
बीमारी के लक्षण
निपाह वायरस से संक्रमित रोगी 24 से 48 घंटे में मरीज को कोमा में पहुंचा सकता है. संक्रमण के शुरुआती दोर में मरीज को सांस लेने में दिक्कत आती है. कुछ मरीजों में न्यूरो से जुड़ी दिक्कतें भी होती है.वर्ष 1998-99 में केरल में यह बीमारी तेजी से फैली थी. उस वक्त इस वायरस की चपेट में 265 लोग आए थे. अस्पतालों में भर्ती हुए इनमें से करीब 40 फीसद मरीज ऐसे थे, जिन्हें गंभीर नर्वस बीमारी हुई थी और ये बच नहीं पाए थे.
आम तौर पर यह वायरस इंसानों में इंफेक्शन की चपेट में आने वाली चमगादड़ों, सूअरों या फिर दूसरे इंसानों से फैलता है. मलेशिया और सिंगापुर में इसके सूअरों के जरिए फैलने की जानकारी मिली थी, जबकि भारत और बांग्लादेश में इंसान से इंसान का संपर्क होने पर इसकी चपेट में आने का खतरा ज्यादा रहता है.
RT-PCR की मदद से पता लगता है
आरटी-पीसीआर (RT-PCR) का इस्तेमाल कोरोना और निपाह वायरस का पता लगाने के लिए किया जाता है. सबसे पसंदीदा और सबसे सेंसिटिव डाइग्नोस पीसीआर (पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन) है. हालांकि, आरटी-पीसीआर (RT-PCR) के जरिए जल्द पता लग सकता है तो ज्यादातर इसी को इस्तेमाल किया जाता है.