गृहसचिव,डीजीपी,आईजी,एसपी समेत आधा दर्जन पुलिस अधिकारियों को नोटिस..हाईकोर्ट ने पूछा..क्यों नहीं दिया दस्तावेज..15 दिनों में दस्तावेज समेत जवाब देने को कहा

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—बिना ड्यटी सात साल तक करीब 32 लाख से अधिक वेतन उठाने और षड़यंत्र पूर्वक विभाग के अधिकारियों को दोषी बनाए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की मांग पर हाईकोर्ट ने गृह सचिवालय समेत डीजीपी, आईजी, एसपी बिलासपुर के अलावा जांच अधिकारी तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा,आईसीयूडब्लू डीएसपी को नोटिस जारी किया है। साथ ही न्यायाधीश पार्थ प्रतीम साहू के कोर्ट ने जवाब मांगा है कि बताएं याचिका कर्ता की मांग के बाद भी दस्तावेज क्यों नहीं उपलब्ध कराया। बिना दस्तावेज दिए विभागीय जांच की एकतरफा कार्रवाई क्यों की गयी। हाईकोर्ट ने सभी अधिकारियों को पन्द्रह दिनों के भीतर जवाब देने के साथ ही याचिकाकर्ता को दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा है।

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  क्या है मामला

              मामला सिविल लाइन थाना और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है। आरक्षक जगमोहन पोर्ते साल 2013 में सिविल लाइन थाना में आरक्षक पद ज्वाइन किया। इसके बाद कहीं गायब हो गया। बावजूद इसके जगमोहन पोर्त का वेतन उसके खाते में जमा होता रहा। यह सिलसिला साल 2021 तक चला। इसी दौरान जानकारी मिली कि जगमोहन पोर्ते इस दुनिया में नहीं है। बावजूद इसके वेतन का आहरण किया जाता रहा। प्रारम्भिक तौर पर पुलिस कप्तान ने तत्काल जांच का आदेश दिया। साथ ही वेतन के रूप में किए करीब  32 लाख घोटाला का पता लगाने को कहा। 

                                   प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस कप्तान पारूल माथुर ने चार लोगों के खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया। एडिश्नल एसपी रोहित झा समेत आईसीयूडब्लू डीएसपी ने तत्कालीन वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव,आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल को जांच के लिए बुलाया। चारो ने जांच टीम से नोटिस मिलने के बाद  पुलिस कप्तान लिखित आवेदन दिया। याचिकाकर्ताओं ने ऐसे सभी दस्तावेज दिए जाने को कहा..जिस आधार पर दोषी ठहराया गया है। बावजूद इसके पुलिस अधीक्षक कार्यालय से कोई दस्तावेज नहीं दिया गया।

याचिकाकर्ताओं के साथ विभागीय षड़यंत्र

                              मामले में एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव समेत अन्य तीन याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में न्याय मांगा। याचिकाकर्ता सुधीर श्रीवास्तव की तरफ से अधिवक्ता पवन श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं के साथ सोची समझी रणनीति के तहत षडयंत्र किया गया है।

बिना ड्यूटी 32 लाख का भुगतान

               अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नियमानुसार सभी थाना प्रभारियों को हर महीने कर्मचारियों के वेतन निकालने या रोकने को लेकर जरूरी निर्देश पत्र भी दिया जाता है। लेकिन सिविल लाइन थाना ने कभी भी जगमोहन को लेकर एक भी पत्र नहीं दिया। इसलिए बिना बाधा के साल 2013 से साल 2020 तक जगमोहन पोर्ते का वेतन खाते में जमा किया गया। यकायक पुलिस प्रशासन ने एक आदेश जारी कर चारो याचिकाकर्ता को दोषी मानते हुए विभागीय जांच का आदेश दिया। जब याचिकाकर्ताओं ने विभागीय जांच के मद्देनजर जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने को कहा । लेकिन जांच अधिकारियों ने कोई नहीं जवाब दिया। और ना ही पुलिस कप्तान ने ही मामले को गंभीरता से लिया। जबकि याचिकाकर्ताओं ने इस बावत संभागीय पुलिस महानिरीक्षक को भी लिखित आवेदन कर दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने को लेकर आवेदन भी किया। 

                     याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट को बताया कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय की तरफ से कुछ लोगों ने षड़यंत्र कर बिना किसी ठोस कारणों के याचिकाकर्ताओं को परेशान किया है। यही कारण है कि दस्तावेज उलब्ध नहीं कराया गया।

पन्द्रह दिनों में जवाब पेश करने का आदेश

             मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधीश पार्थ प्रतीम के कोर्च ने गृह सचिव,डीजीपी छत्तीसगढ़,आईजी बिलासपुर,एसपी पी बिलासपुर, जांच अधिकारी एडिश्नल एसपी रोहित झा, आईसीयूडब्लू डीएसपी समेत अन्य लोगों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने सभी को पन्द्रह दिनो के अन्दर जवाब पेश करने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जिम्मेदार लोग बताएं कि मांग किए जाने के बाद भी याचिकाकर्ताओं को दस्तावेज क्यों नहीं दिया गया।

 याचिकाकर्ताओं के साथ षड़यंत्र

           अधिवक्ता ने बताया कि सुधीर श्रीवास्तव समेत अन्य याचिकाकर्ताओं के साथ विभागीय षड़यंत्र किया गया है। जिन बिन्दुओं पर जांच का आदेश दिया गया..मांग के बाद भी कार्यालय ने दस्तावेज नहीं दिया। उल्टा विभागीय जांच टीम बैठाकर परेशान किया जाने लगा। न्याय नहीं मिलने पर याचिककर्ताओं ने कोर्ट से न्याय की गुहार लगाई है।

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