पढ़ें..NTPC सीपत की पिंग-पोंग नीति.. आर-पार के मूड में पीड़ित भूविस्थापित ..बताया प्रबंधन प्रशासन में मिली भगत

BHASKAR MISHRA
8 Min Read

बिलासपुर—किसी मुद्दे को लटका कर लम्बे समय तक टालने..और सामने वालों को मैदान छोड़ने के मजबूर करने को लेकर चीन में एक विशेष प्रकार की पालिसी या नीति का उपयोग किया जाता है। दुनिया इस पॉलिसी को पिंगपोंग की नीति कहती है। बिलासपुर में पिछले करीब डेढ़ दशक से सीपत स्थित एनटीपीसी भी इसी नीति को अपना रखा है। इसके चलते अब भूविस्थापितों का मनोबल धीरे धीरे टूटने लगा है। यदा कदा जब भू-विस्थापित शर्तों के अनुसार जमीन अधिग्रहण के बदल जब नौकरी की मांग करता है। ठीक उसी समय चालक एनटीपीसी प्रबंधन टेबल टेनिस की तरह गेंद को प्रशासन के पाले में डालकर पल्ला झाड़ लेता है। फिलहाल भू विस्थापित अब एनटीपीसी की पिंगपोंग पालिसी परिचित हो चुके हैं। क्योंकि एक बार फिर भू विस्थापितों ने गड़े मुर्दे उठाने का फैसला कर लिया है। साथ प्रशासन के खिलाफ भी आर पार के लिए मूड तैयार कर लिया है।

Join Our WhatsApp Group Join Now

एनटीपीसी सीपत प्लान्ट..मतलब विस्थापितों से धोखा

            सीपत में एनटीपीसी सुपर क्रिटिकल पावर प्लान्ट खुलने के एलान के बाद जिला और प्रदेश में लोगों ने स्वागत किया। प्लान्ट खुलने के समय शासन ने एलान किया कि भूविस्थापितों को मुआवजा के साथ नौकरी दी जाएगी। लेकिन हुआ ऐसा नहीं..। कुछ लोगो को नौकरियां तो मिली..लेकिन इनके या तो अप्रोच अच्छे थे। या फिर प्रबंधन को झुकाने के लिए ऐसे लोगों के पास कोई ना कोई तोड़ जरूर था। बाद में कुछ ऐसा हुआ कि एनटीपीसी प्रबंधन ने पिंगपोंग नीति का सहारा लेकर भूविस्थापितों को हवा में लटकना शुरू कर दिया। कभी स्थानीय प्रशासन का सहारा लेकर तो कभी नियमों का हवाला देकर। और हुआ वही..कमजोर भू-विस्थापित एडियां रकड़ते रहे। कभी स्थानीय प्रशासन के पाले में फरियाद लेकर पहुंचे तो कभी प्रबंधन के दरवाजे पर नाक रकड़ते रहे। यदि इस दौरान किसी को छोटी मोटी नौकरी मिल भी गयी तो..वह इसलिए ताकि बताने को हो जाए कि प्रक्रिया के तहत नौकरियां दी गयी है। बाकी समय के साथ भर्तियां की जाएंगी।   नतीजन आज भी करीब पचास प्रतिशत विस्थापित किसान जमीन गवांकर खाली पेट जंग लड़ने को मजबूर है। और एनटीपीसी प्रबंधन अपनी चाल पर चाल चलने से बाज नहीं आ रहा है।

                       जानकारी हो कि पिछले साल यानि  मार्च 2020 में तात्कालीन कलेक्टर ने प्रबंधन को दो टूक कहा कि एक महीने के अन्दर विस्थापितों को जमीन के बदले नौकरी दी जाए। तात्कालीन एनटीपीसी प्रबंधक पूजा कुमारी ने आश्वासन भी दिया कि सभी विस्थापितों को एक महीने के अन्दर यथासंभव योग्यता के अनुसार नौकरी पर रख लिया जाएगा। इसके अलावा प्रशासन की मदद से सभी को योग्यतानुसार प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। मजेदार बात है कि आज एक साल गुजरने के बाद भी एनटीपीसी प्रबंधन का एक महीना पूरा नहीं हुआ। और प्रशासन की तो बात ही निराली है। उसे भी अपने नागरिकों के हितों की परवाह नहीं है। यही कारण है कि एक बार फिर भू विस्थापितों ने एनटीपीसी और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ नौकरी के लिए फायनल जंग का फैसला किया है।

एनटीपीसी और प्रशासन में मजबूत गढजोड़

              नाम नहीं छापने की सूरत मे भू-विस्थापित किसान ने बताया कि उनका नाबालिग लड़का अब बालिग हो चुका है। बावजूद इसके हमें अभी तक जमीन के बदले नौकरी नहीं मिली है। एनटीपीसी और स्थानीय प्रशासन के बीच मजबूत गठजोड है। शायद इसी गठजोड़ के कारण ही विस्थापित किसानों को करी ब 12 साल बाद भी जमीन के बदले नौकरी के लिए भटकना पड़ रहा है।

 खून  के आंसू बहा रहे किसान…एनटीपीसी की मनमानी..प्रशासन की मौन स्वीकृति

                विस्थापित किसान ने बताया कि दरअसल एनटीपीसी को नौकरी देना ही नहीं है। जमीन अधिग्रहण के बाद प्रबंधन ने कुशल और अकुशल मिलाकर कुल 692 नौकरियां देने का एलान किया था। अभी तक मात्र 390 नौकरिया ही मिली है। इसके लिए भी कई बार आंदोलन करना पड़ा है। इसके अलावा कलेक्टर के साथ बैठक दर बैठक हुई। बावजूद इसके बाकी पदों को आज नहीं भरा गया है। इससे जाहिर होता है कि इसमे स्थानीय प्रशासन और एनटीपीसी के बीच कुछ दाल पक रही है। यही कारण है कि आज कल नौकरी के लिए प्रक्रिया पूरी करने के नाम 12 साल से लोगों को खून के आंसू रोने को मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि नौकरियां बाहरी लोगों को दी जा रही है। और प्रशासन के मौन को समझा जा सकता है। यही कारण है कि एनटीपीसी प्रबंधन के दादागिरी को समझा जा सकता है।

एनटीपीसी नहीं मानता प्रशासन का दबाव

                  कुछ विस्थापितों ने बताया कि एनटीपीसी प्रबंधन प्रशासन पर हमेशा भारी रहा है। साल 2008 से आज तक बैठक में प्रशासन का आदेश निश्चित रूप से विस्थापितों के पक्ष में रहता है। लेकिन बाद में पता चलता है कि एनटीपीसी ने निर्देशों को मिनिट में शामिल नहीं किया। यदि किया भी तो उसे भी बड़ी चतुराई से प्रशासन के पाले में डाल दिया। और प्रशासन तब से लेकर आज अपने ही आदेश को प्रबंधन के दबाव में लिंगाराम बनाकर रखा। विस्थापित किसान ने बताया कि दबाव का मतलब सभी को मालूम है।  

आरक्षण का बहाना बना जंंजाल

            एनटीपीसी से पीडित विस्थापित किसान ने बताया कि जमीन अधिग्रहण के समय शासन ने एलान किया था कि सभी 692 लोगों को जमीन के बदले नौकरी योग्यतानुसार दी जाएगी। योग्यता मे वर्गवार पद को शामिल किया गया था। जब जमीन विस्थापितों ने नौकरी के लिए दबाव बनाया तो..प्रबंधन ने अपनी चाल चलना शुरू कर दिया। स्थानीय प्रशासन के कान मंत्र फूंक दिया कि भर्तियों में आरक्षण नियमों का पालन किया जाना है। यह जानते हुए भी जिनकी जमीन एनटीपीसी ने अधिग्रहण किया है..उनमें ज्यादातर सामान्य वर्ग के किसान है। दबाव में आकर प्रशासन ने 692 कुल पदों में 154 एससी वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया। जाहिर सी बात है कि इस पद को कभी भरा नहीं जाएगा।यानि एनटीपीसी की पिंगपोंग नीति कामयाब होती नजर आ रही है। और पीडित कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में फुटबाल की तरह उछाले जा रहे हैं।

         क्रमशः  आगे पढ़ें…एनटीपीसी में नौकरी नहीं देने को लेकर क्या क्या हो रहा खेल 

close