बिलासपुर—-भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने प्रेस नोट जारी कर झीरम घाटी मामले में कांग्रेस सरकार पर जस्टिस मिश्रा न्यायिक आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाही की बजाय किनारा करने का आरोप लगाया है। अमर ने आरोप लगाया कि बिना पढ़े रिपोर्ट को दरकिनार कर जांच बढ़ाने और नया आयोग बनाए जाने पर सवाल किया है। अमर ने कहा सरकार के पास निर्णय क्षमता नहीं होने की भी बात कही हैं।
पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने प्रदेश सरकार पर झीरम मामले में सच छिपाने का आरोप लगाया है। अमर ने कहा कि सरकार में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। अमर ने प्रेस नोट जारी कर कहा है कि सरकार लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विपरीत काम कर रही है। प्रेस नोट में अग्रवाल ने कहा कि झीरम घाटी मामले की जांच रिपोर्ट पिछले दिनों राजभवन को पेश किया गया। लेकिन बिना पढ़े उसे विवादास्पद बना दिया गया। प्रदेश सरकार ने राज्यपाल की निष्ठा पर भी सवाल खड़ा किया है।
अमर ने बताया कि राजभवन से रिपोर्ट सरकार को जरूरी कार्यवाही के लिए भेजने से पहले सरकार ने बिना परीक्षण दो सदस्यीय आयोग बनाना और रिपोर्ट को नकार देना फिर मामले को आगे बढ़ा देने से सरकार की मंशा साफ नही है। दरअसल सरकार सच को टालना चाहती है।
अमर ने बताया कि झीरम घाटी घटना के समय केंद्र में यूपीए सरकार थी। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री ने एनआईए जांच बैठाई। 28 मई को उच्च न्यायालय के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एक सदस्य आयोग का गठन किया गया । तात्कालीन समय प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष भूपेश बघेल थे। उन्होंने शिगूफा छोड़ा कि सबूत उनकी जेब में है। मौका ए वारदात पर वर्तमान राज्य मंत्रिमंडल सदस्य भी मौजूद थे।
2013 से 21 तक पिछले सात वर्षों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सबूतों को न तो कभी राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सामने रखा। और न हीं कभी न्यायिक जांच आयोग के सामने पेश ही हुए। सवाल है कि आखिर जेब से झीरम घाटी के सबूत किस पाकिटमार ने उड़ा दिए।
अमर ने कहा कि जस्टिस प्रशांत मिश्रा आयोग की रिपोर्ट की वास्तविकता जाने बिना रिपोर्ट को एक सिरे से नकारना के मकसद सबको पता है। मामले में नया जांच आयोग का गठन करना, नए बिंदु जोड़ने से साफ जाहिर होता है कि सरकार की मंशा झीरम घाटी का सच सामने ना लाकर घटना का राजनीतिकरण करना है।
पूर्व मंत्री ने बताया कि दरअसल मुख्यमंत्री झीरम जांच के बहाने राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं। कांग्रेस का इतिहास रहा है कि जब भी कोई रिपोर्ट आती है और रिपोर्ट में कांग्रेस से संबंधित लोगों के शामिल होने का अंदेशा होता है तो रिपोर्ट को विवादित बना दिया जाता है। नई जांच करवाना ,मामलों को टालना, सच को सामने ना आने देना कांग्रेस की परिपाटी है।
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अंतर्विरोधों की सरकार चला रहे हैं। आए दिन सहकारी संघ के ढांचे पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं। उन्हें न तो केंद्रीय संस्थानों पर विश्वास है, न हीं केंद्रीय जांच एजेंसी पर। और न ही हालिया प्रस्तुत जांच रिपोर्ट पर। यह उनकी मानसिकता को जाहिर करता है। अगर मुख्यमंत्री के पास सबूत था तो सार्वजनिक करना चाहिए था। न कि लाभ लेने के लिए हथकंडे अपनाना चाहिए।
न्यायिक जांच आयोग ने रिपोर्ट सौंप दिया है। लेकिन मुख्यमंत्री पुराने किसी पत्र का हवाला देकर जबरदस्ती रिपोर्ट को अधूरी बता रहे हैं । जबकि रिपोर्ट के आधार पर त्वरित कार्यवाही किए जाने की आवश्यकता थी। लेकिन सरकार जस्टिस मिश्रा कमिशन की रिपोर्ट को लागू नहीं करना चाहती है। स्पष्ट है कि सरकार डरी, घबराई हुई है।क्योंकि सच सामने आने के बाद सरकार का दामन ही गंदा होगा। इसलिए दो सदस्यीय टीम का गठन कर प्रदेश सरकार जनता का ध्यान भटकाना चाहती है।