लॉकडाउन नियम के उल्लंघन करने पर पुलिस दर्ज नही कर सकती FIR

Chief Editor
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बिलासपुर।छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पुलिस को धारा 188 (महामारी एक्ट) के अंतर्गत एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने राजनांदगांव की एक डॉक्टर के खिलाफ जिला पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को शून्य कर दिया है।घटना राजनांदगांव स्थित अम्बागढ़ चौकी से सम्बंधित है । बीते 07/06/2020 को शहर की एक डॉक्टर बेटी जो दिल्ली में रहकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही थी वह अपने गृहग्राम राजनांदगांव लौटी। डॉक्टर बेटी 2019 से दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी तथा मार्च में कोविड-19 के कारण अचानक लगे लॉक डाउन से फस गयी थी। जब जून में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इ-पास की सुविधा शुरू की गयी तब वह विधिवत इ-पास लेकर दिनांक-07/06/2020 अपने गृहग्राम लौटी।

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अपने घर पहुँचने के पश्चात उसने अन्य राज्य से आने की सुचना सामुदायिक स्वास्थ केंद्र, अम्बागढ़ चौकी एवं मुख्य स्वास्थ अधिकार को दिनांक-10/06/2020 को दी। कलेक्टर के आदेश की जानकारी के अभाव में मुख्य नगर पालिका अधिकारी को यह जानकारी नही दी जा सकी तथा बाद में डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव निकल गयी।

मुख्य नगर पालिका अधिकारी के द्वारा कलेक्टर के आदेश का उल्लंघन करने के अपराध में डॉक्टर के खिलाफ अन्य राज्य से आने के पश्चात सुचना न देने और कोरोना फ़ैलाने के अपराध में अम्बागढ़ चौकी में FIR दर्ज कराई गयी। डॉक्टर ने इस FIR में खिलाफ उच्च न्यायालय में केस दायर किया। डॉक्टर के अधिवक्ता शाल्विक तिवारी द्वारा न्यायालय के तर्क प्रस्तुत किया गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता के धारा 195(1)(a) के अंतर्गत भारतीय दंड सहिंता के धारा 188 के तहत FIR दर्ज नही किया जा सकता तथा संबंधित अधिकारी केवल सक्षम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकता है । इसके अलावा ई-पास जारी होना स्वयं में यह पुष्टि करता है कि सरकार को अन्य राज्य से आ रहे यात्री की पूर्ण जानकारी है।

उच्च न्यायालय में जस्टिस संजय के अग्रवाल की एकल पीठ द्वारा मामले को संज्ञान में लेते हुए आदेश दिया गया कि भारतीय दंड सहिंता की धारा 188 के अंतर्गत किये गए अपराध के लिए दंड प्रक्रिया सहिंता की धारा 154 के अंतर्गत कोई प्रथम सूचना प्रतिवेदन पंजीबद्ध नही किया जा सकता एवं निर्देश दिए कि डॉक्टर अपूर्वा घीया के विरुद्ध दर्ज प्रथम सूचना प्रतिवेदन खारिज किया जाए ।

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