संस्कृत हमारा अभिमान..हमारा गौरव भी..डॉ.पुष्पा दीक्षित ने कहा.संस्कृत के बल पर ही बनेंगे विश्वगुरू

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—शासकीय बिलासा कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय संस्कृत विभाग ने “वर्तमान संदर्भ में संस्कृत की उपादेयता” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि और वक्ता राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त, पाणिनीय शोध संस्थान की संचालिका डॉ.पुष्पा दीक्षित शामिल हुई। विदुषी डॉ. पुष्पा दीक्षित ने संस्कृत की उपादेयता पर प्रकाश डाला। साथ ही अंग्रेजी शिक्षा पद्धति की सीमाओं को रेखांकित भी किया। उन्होने कहा कि सामाजिक सहचर्य और  संवेदनशील व्यक्तित्व निर्माण में संस्कृत की महती भूमिका रही है। जो आज भी प्रासंगिक है और आने वाले समय में भी इसके प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है।
 
              डॉ. पुष्पा दीक्षित ने बताया कि प्राचीनकाल में संस्कृत जनसामान्य की भाषा हुआ करती थी। समय के साथ खासकर ब्रिटिश शिक्षानीति के आने से संस्कृत सीमित वर्ग की भाषा बन गयी। विदुषी ने अपने सारगर्भित संबोधन में बताया कि “संस्कृत हमारा सम्मान है, हमारा गौरव है. संस्कृत के बल पर हम विश्वगुरु की उपाधि प्राप्त कर सकते हैं और करेंगे। यही हमारा मूलमंत्र भी है।
 
         महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. ज्योतिरानी सिंह ने संस्कृत के क्षेत्र में डॉ दीक्षित के अतुलनीय योगदान को सबके सामने रखा। साथ ही देश विदेश में संस्कृत का ध्वजावाहक बताया।
 
            संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. सीमा पाण्डेय ने स्वागत भाषण में मजबूती के साथ अपनी बातों को रख। उन्होने बताया कि संस्कृत हमेशा से प्रासंगिक रहा है। आधुनिक समाज में संस्कृत भाषा की प्रासंगिकता को इंकार किया जाना नामुमकिन है। सच तो यह है कि संस्कृत ही कम्प्यूटर की असली भाषा है। आज नहीं तो कल इसका प्रयोग किया ही जाएगा। पश्चिम के विद्वानों ने बहुत पहले ही इस बात को विश्व पटल पर मजबूती के साथ कई बार रखा है।
 
                        कार्यक्रम में शामिल अतिथि प्राध्यापक दीपक शर्मा ने सफल आयोजन के लिए सभी को साधुवाद दिया। उन्होने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन हमेशा होना चाहिए। 
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