देखें VIDEOःस्कूटी की रफ्तार और स्कार्पियो स्पीड से सुरक्षा…लोकतंत्र की जीवंत सच्चाई

Chief Editor
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skn_file_indexबिलासपुर।“शहर से लगी एक  बस्ती…खेतों और पेड़ों के बीच का एक घर…जहां रहने वाला एक सामान्य सा शख्स सुबह रोज की तरह तैयार होता है..अपने जूते ठीक करता है…मोजे पहनता है…फिर घर की चौखट पार करने से पहले दीवार के आले पर रखी देवता की तस्वीर के सामने हाथ जोड़ता है..दिन अच्छा गुजरे इस उम्मीद के साथ घर से बाहर निकलता है…घर से बाहर आकर अपनी 60 हजार की स्कूटी स्टार्ट करता है और बिना किसी की ओर देखे अपनी मंजिल की ओर रवानगी दर्ज कर देता है…ठीक इसी समय सोलह लाख की एक गाड़ी स्कार्पियो उस स्कूटी के पीछे चलने लगती है….गाड़ी पर लगे सायरन और सर्च लाइट को देखकर दूर से ही समझा जा सकता है कि यह किसी की हिफाजत के लिए लगाई गई पुलिस की गाड़ी है, जिसमें एक-चार के हिसाब से पुलिस के जवान मौजूद रहते हैं…यह बड़ी सी गाड़ी चलती क्या है…स्कूटी के पीछे रेंगती है..और वह शख्स जहाँ भी जाता है, उसके पीछे इसी तरह रेंगती रहती है..और शाम के समय उस शख्स के घर वापस लौटने के बाद यह गाड़ी वापस लौट जाती है..।“
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यह किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है…बल्कि हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक सच्चाई है , जिससे शहर से लगे उस्लापुर के लोग रोजाना रू-ब-रू होते हैं….। यह कहानी है इन दिनों बहुचर्चित नाम संतकुमार नेताम की…।जो इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं…और खुद को राजनीतिज्ञ कहते हैं। कभी कभी जनसेवक की भूमिका में भी नजर आते  हैं। उन्होंने कभी नहीं बताया कि जिद्दी भी हैं। इसी जिद्दीपन ने संतकुमार को प्रदेश का चर्चित चेहरा बना दिया है। कितने चेहरे आए और गए।  लेकिन साल 2001 से आज तक पूर्व मुख्यमंत्री की जाति मामले को लेकर नेताम अंगद के पांव की तरह मैदान में जमे हुए हैं। । संतकुमार नेताम का रिश्ता शाखा से है लेकिन उनकी स्वीकार्यता सभी दलों में है। कई दल तो स्वागत में आंख बिछाकर बैठे हैं। बहरहाल इन दिनों संत कुछ अलग ही मामले को लेकर सुर्खियों में हैं।

पहले संतकुमार नेताम का ज्यादातर समय छत्तीसगढ भवन में गुजरता था। बीच बीच में दिल्ली रायपुर का भी दौरा हो जाता है। आज भी है लेकिन व्यस्तता अधिक होने के कारण छत्तीसगढ भवन में कम दिखाई देते हैं। इतना दावा तो किया ही जा सकता है कि संतकुमार नेताम का दूसरा घर छत्तीसगढ भवन है। खाली समय आज भी गुजारते हुए उन्हें देखा जा सकता है।
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आजकल संतकुमार नेताम घर से एक चार की सरकारी सुरक्षा में निकलते हैं। एक्टिवा की ही सवारी  करते हैं। साठ हजार की एक्टिवा जब फर्राटे भरती है तो 16 लाख रूपए के स्कार्पियो पर सवार जवान उनकी हिफाजत का फर्ज निभाते दिखाई देते है। एक्टिवा सवार की सुरक्षा में 16 लाख की स्कार्पियो और ड्रायवर के साथ सवार 1-4 सुरक्षा गार्ड अपनी ड्यूटी में मुस्तैद रहते हैं।संतकुमार की जिन्दगी इस समय बिलकुल पूरी तरह से वालीबुड फिल्मों की तरह हो गयी है। जान की सुरक्षा को लेकर उन्होने कई बार शासन – प्रशासन को चिट्ठी लिखी। दस दिन पहले हाईकोर्ट के कहने पर नेताम को 1-4 की सुरक्षा मिली है। लेकिन नेताम की दिनचर्या और रहन – सहन में रत्ती भर का भी बदलाव नहीं आया है। नेताम रोज की तरह सुबह 10 बजे उस्लापुर घर से हाईकोर्ट के लिए निकलते हैं। 16 लाख रूपयों की महंगी गाड़ी घर की गली से कुछ दूर मुख्य रास्ते में आकर खड़ी हो जाती है। गाड़ी में पांच जवान नेताम का इंतजार करते हैं।
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नेताम की स्कूटी स्टार्ट होते ही…बिना बताए फिल्मों की तरह गन वाले जवान स्कार्पियों में बैठकर स्कूटी की पीछे लग जाते हैं। नजारा अद्भुत होता है। स्कूटी के रूकते ही सुरक्षा में लगे स्कार्पियों सवार भी रूक जाते हैं। सड़क पर मिनट से लेकर घंटो तक किसी से नेताम की बातचीत होती है। जवान स्कार्पियों से उतरकर नेताम के दाएं बांये खड़े हो जाते हैं। दो एक जवान आकाश और पाताल को घूरते नजर आते हैं।1-4 के जवानों में से एक ने बताया कि ट्रैफिक में नेताम को पकड़ना या फालो करना मुश्किल हो जाता है। चौक चौराहों में वह “ बुलुक “ से कहीं से निकल जाते हैं। ट्रैफिक ओपन होने के बाद उन्हें पकड़ना मुश्किल हो जाता है। कभी कभी तो ऐसा होता है कि जब हम मंगला चौक की ट्राफिक से निकलते हैं तो वह महाराणा प्रताप चौक पार कर चुके होते हैं।

अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर कुछ नया करने का जज्बा रखने वाले इंजीनियर संतकुमार नेताम फिलहाल अपने सफर के इस नए मोड़ से गुजर रहे हैं। उनकी जिंदगी के सफर का यह हिस्सा दिलचस्प तो लगता है। लेकिन यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक मजबूत पहलू भी है। जो इस बात का अहसास कराता है कि जिंदगी की लड़ाई में जिसे सुरक्षा की जरूरत महसूस होती है , उसे पूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी। चाहे वह जिस हाल में भी हो…….।

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