तस्वीरों में देखिए.. एक कंपोजिट बिल्डिंग – जहां ‘गाय-गरुवा’ के ‘आंदोलन’ से हर समय जाम रहती है सड़क

Chief Editor
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सूरजपुर । जिला मुख्यालय के नए कंपोजिट बिल्डिंग के सामने और जिला पंचायत भवन के ठीक सामने रोजाना कुछ मवेशियों का झुंड खड़ा रहता है। ऐसा लगता है कि ये गाय – गरुवा पशुधन छत्तीसगढ़ की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी में अपने हक का न्याय मांगने के लिए प्रमुख कार्यालय के सामने खड़ा हुआ है …! लगता है कि उसे न्याय नही मिल पा रहा है। मजबूरन बेजुबान जानवर सुरजपुर की मुख्य सड़कों पर आंदोलन की मुद्रा में बीच सड़क को घेर कर रास्ता जाम कर रहा है । जिसकी वजह से अम्बिकापुर- अनूपपुर- मनेंद्रगढ़ की नेशनल हाइवे की टोल रोड का उपयोग करने वाले इस आंदोलन से अव्यवस्था का शिकार होते रहते है।

             
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सूरजपुर जिला मुख्यालय के नए संयुक्त कार्यलय के भवन में जिला कलेक्टर सहित तमाम आला अधिकारियों के कार्यालय के चारो दिशाओं में सिर्फ 5 से 10 किलोमीटर की परिधि में छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गुरुवा, घुरवा, बाड़ी के तहत गोठान बने हुए हैं। जिनमे से तीन गोठान तो आदर्श गोठान है। इसमे से दो गोठान तो तारीफ के काबिल है । जिसमे एक गौठान में प्रदेश के मुखिया भी आ चुके है।

बसदेई के अलावा रिहंद नदी के किनारे बसा केशवपुर का गोठान और कृष्णापुर का गौठान सर्व सुविधाओं से पूर्ण आदर्श गौठान है।यहाँ कमियां ढूढ़ना टेढ़ा काम है। बस कमी है तो इस गोठान में गाय गरुवा शाम होते दिखाई नही देते है।जिसकी वजह से इनके गोबर गौठान में नही मिलते है। क्योकि मवेशियों ने तो जिला मुख्यालय की सड़को को शाम होते ही अपना आशियाना समझ रखा है।इन मवेशियों की एक खास पहचान यह भी है कि इनमें से अधिकांश के मालिकों कोई अता पता नही है। क्योंकि इन पशुओं के कानों में पशुधन विकास विभाग के टैग भी नही दिखाई देते है।

जिले मुख्यालय के नए संयुक्त कार्यलय के शानदार भवन की पार्किग की एक तस्वीर यह भी दिखाई देती है कि यह गोबर से पटा हुआ है।लगता है कि हक मांगने खड़े इन गाय गुरुवा का इस पार्किग स्थल से कोई पुराना नाता है।हो सकता है इसी वजह से ये इस कार्यालय के मुख्य द्वार के सामने डेरा जमाए हुए हो..! या फिर राज्य सरकार के गौठान से गोधन न्याय योजना में योगदान देने के लिए खुद को शामिल करने के लिए कह रहा हो ..! जिले के मुखिया की कुर्सी पर बैठा प्रमुख अधिकारी इन बेजुबान पशुओं के आंदोलन को कैसे नजर अंदाज कर बैठा यह समझ से परे है। वह भी उस दौर में जब गोधन के मॉडल की चर्चा पूरे देश हो रही है।

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