Shanidev Puja: वेद शास्त्रों में शनिदेव को को न्याय का देवता, कर्मफलदाता माना गया है, क्योंकि वह हर एक व्यक्ति को उनके कर्मों के हिसाब से शुभ या फिर अशुभ फल देते हैं।
माना जाता है कि जो जातक अपने जीवन में अच्छे कर्म करता है, तो फल अच्छे मिलते हैं और बुरे कर्म करने वाले को बुरे फल मिलते हैं।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिदेव सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है, क्योंकि इन्हें एक राशि से दूसरे राशि में जाने में करीब ढाई साल का वक्त लग जाता है। ऐसे में एक राशि को करीब सालों तक शनि की साढ़े साती और ढैय्या का सामना करना पड़ता है।
शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए विधिवत पूजा करने के साथ कुछ उपाय करना लाभकारी सिद्ध होता है। माना जाता है कि शनि देव की शुभ दृष्टि व्यक्ति को अपार सफलता के साथ धन-संपदा तक दिला सकती है। पंचांग के अनुसार, शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है।Shanidev Puja
आमतौर पर आपने देखा होगा कि शनिदेव की पूजा सूर्यास्त के बाद या फिर सूर्योदय से पहले की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर किस कारण ऐसा किया जाता है। जानिए कारण।
शास्त्रों के अनुसार, पश्चिम दिशा के स्वामी शनिदेव माने जाते हैं और वह इसी दिशा में विराजमान रहते हैं। वहीं, सूर्यदेव पूर्व दिशा से निकलते हैं। ऐसे में पूर्व दिशा की ओर शनिदेव की पीठ पड़ती है। जिसके कारण शनिदेव की पूजा सूर्योदय से पहले या फिर सूर्यास्त से के बाद की जाती है।Shanidev Puja
क्योंकि उस समय पश्चिम दिशा में सूर्य अस्त हो जाते हैें। सूर्यास्त के बाद शनिदेव की पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।वहीं दूसरी मान्यता की बात करें, तो शनि और सूर्य का संबंध पिता-पुत्र का है। लेकिन दोनों एक दूसरे से शत्रुता का भाव रखते हैं।
उदय होने से लेकर अस्त होने तक भगवान सूर्य का वर्चस्व होता है। ऐसे में शनिदेव की पूजा करने से वह रुष्ट हो जाते हैं। सूर्यास्त के बाद सूर्य का वर्चस्व नहीं रहता है।
इस कारण माना जाता है कि सूर्यास्त के बाद शनिदेव की पूजा करने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और सुख-शांति का वरदान देते हैं।आमतौर पर देवी-देवताओं की पूजा के लिए तांबे के बर्तन सबसे शुभ माने जाते हैं, लेकिन शनिदेव की पूजा करते समय तांबे का बर्तन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, तांबे का संबंध भगवान सूर्य से है और दोनों के बीच शत्रुता का भाव है। इसलिए तांबे के बर्तन के बजाय लोहे के बर्तनों का इस्तेमाल करके शनिदेव की पूजा की जाती है।