गुरूजी का मतलब शिक्षाकर्मियों को गाली,संजय ने कहा-भाषणबाजों ने कभी नहीं देखा जोड़ घटाने वालों का वेतन

BHASKAR MISHRA
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sanjay_schoolबिलासपुर—हडताल के दौरान शिक्षाकर्मियों के वेतन और मांग को लेकर प्रतिक्रिया देने वालों को संजय शर्मा ने जवाब के साथ सवाल किया है। शिक्षक मोर्चा संचालक के अनुसार जिन लोगों को शिक्षाकर्मियों का वेतन भारी लगता है। ऐसे लोग पहले शिक्षाकर्मी बनें फिर बीस साल बाद बताएं की वेतन भारी है या कम। क्योंकि बंद कमरे में बैठकर भाषणवाजी करना आसान है।संजय शर्मा ने शिक्षाकर्मियों की वेतन पर टिप्पणी करने वालों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि जब तक ऐसे लोग शिक्षाकर्मी नहीं बनेंगे तब तक उन्हें समझाना आसान नहीं होगा। शिक्षाकर्मियों को बीस-तीस हजार मासिक वेतन मिलता है। ऐसा कहने वाले मानसिक दरिद्रता के शिकार हैं। इस प्रकार के बयान से जाहिर होता है कि  समाज बौद्धिक दिवालियापन का शिकार हो गया है।जब शिक्षाकर्मियों का वेतन 500 और 1000 रुपया था। तब भी घर चलाना मुश्किल था। आज जब दस-पन्द्रह साल बाद 20-30 हजार वेतन मिलता है तब भी घर चलाना मुश्किल है। 8 साल से कम समय वाले शिक्षाकर्मियों का वेतन मात्र 12 से 16 हजार है। महीने में एक रुपया बचाना मुश्किल है।प्याज,आलू तीस रुपये किलो…दूध  चालीस रुपये, पेट्रोल सत्तर रुपये लीटर मिलता है।
cfa_index_1_jpgबीस हजार वेतन एक सामान्य सुख में कुंठाहीन जीवन यापन से ज्यादा कुछ नहीं है।शिक्षक के वेतन की तुलना इसी श्रेणी के अन्य कर्मचारियों से करते हैं तो कलेजा मुंह को आता है। जितने कम ज्ञान और प्रशिक्षण से बैंक कर्मचारियों का काम होता इतनी कम योग्यता में प्राय: संगठित क्षेत्र का और कोई काम नहीं हो सकता। जो लोग कैलकुलेटर, कंप्यूटर पर मौलिक अंकगणित-जोड़, घटाव, गुणा, भाग और  ब्याज-दर ब्याज निकालना जानते हैं। नोट पहचानना और गिनना जानते हैं.. ऐसे लोग बैंक की नौकरी आसानी से कर सकते हैं। यानी यदि आप पांचवीं कक्षा पास हैं, तो बैंक के किरानी होने की योग्यता रखते हैं। सबको मालूम है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पहले कई मैट्रिक फेल लोग बैंक के कर्मचारी थे।

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कहीं भी जाएं बैंक कर्मचारियों को चिकित्सा, मनोरंजन की सुविधाएं मिलेंगी। काम करने के लिए बिजली-कलम, कंप्यूटर, एसी,हीटर जनित कमरों की सुविधाएं बैंक वालों को मिलना ही है। क्या कभी शिक्षाकर्मियों को ऐसी सुविधाएं मिलती हैं। यहां तो  प्राथमिक शिक्षक को भवन-मकान की भी गारंटी नहीं है। जहां बैठ कर ठीक से पठन पाठन हो सके। अक्सर 20 से 50 बच्चों को एक साथ पढ़ाना होता है। एक कमरे में दो-दो, तीन-तीन कक्षाएं लगती हैं।वातानुकूलित एवं हीटर की बात तो दूर…स्कूलों में कुर्सी और पंखे भी नसीब नहीं हैं। पढ़ाने के बाद होमवर्क और टेस्ट की कापियां को जांचना होता है। घर को भी स्कूल बनाना पड़ता है। वह भी अपनी बिजली और कलम से। जब लोग कहते हैं कि शिक्षाकर्मियों को इतना वेतन मिलता है। क्या कभी अन्य विभागों के वेतन और काम भी ऐसे लोगों ने गौर किया है। घिन्न आती है ऐसे लोगों के असंवेदनशीलता पर।



संजय ने वेतन का तंज कसने वालों से सवाल किया है कि… क्या शिक्षाकर्मियों के परिवार के लोग बीमार नहीं होते। क्या उन्हें घर नहीं चाहिए? क्या उन्हें मोटरसाइकिल की जरूरत नहीं है। क्या उन्हें लंदन-पेरिस-सिंगापुर छोड़िए, तिरूपति और देवघर नहीं जाना चाहिए। क्यों आपके बच्चों को कठिन शब्दों का अर्थ अपनी डिक्शनरी खोल कर नहीं बताना चाहिए ? क्यों शिक्षक के पास एक लैपटॉप, कंप्यूटर या मोबाइल नहीं होना चाहिए ? क्यों उसके बच्चे यदि बेंगलुरु में लाखों की फीस देकर इंजीनियरिंग पढ़ें तो उन्हें ब्याजमुक्त ऋण नहीं मिलना चाहिए?



शिक्षाकर्मियों से नेशन बिल्डर, राष्ट्र-निर्माता की अपेक्षाएं तो हैं। लेिन उनके प्रति किसी के दिल और दिमाग में आदर नहीं है। हमारी उपेक्षा बढ़ती जा रही है। अपेक्षाएं अधिक, सुविधाएं कम  यदि मजबूत, प्रगतिशील, स्वस्थ और शिक्षित समाज बनाना है, तो शिक्षाकर्मियों को भी शिक्षकों के समान वेतन ,सुविधा और आदर मिलना चाहिए। अन्यथा लोग जुबान बंद रखें…कम से कम अपमान तो ना करें।लोग कहते हैं कि शिक्षक पढ़ाते नहीं…शिक्षक कहते हैं कि पढ़ने,पढ़ाने की सुविधा उपलब्ध नही है। कोई भी नैतिक वैधानिक या व्यावहारिक कारण नहीं है। शिक्षकों को क्यों अध्ययन अवकाश का अधिकार नहीं है… क्यों उसे पुस्तक यात्रा भत्ता नहीं दिया जाता…क्यों उसे घर पर होमवर्क जांचने के लिए अतिरिक्त कार्य भत्ता नहीं दिया जाता…। यह जानते हुए भी विकसित देशों में प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षकों को नागरिक कला-विज्ञान-व्यापार-राजनीति-दर्शन-धर्म सभी क्षेत्रों में ज्यादा सम्मान और वेतन हासिल है।

संजय ने बताया कि भारत में ‘गुरुजी’ शब्द अब अपमानसूचक शब्द के लिए प्रयोग किया जा रहा है। जिस काम को कोई करने वाला ना हो उस काम को करने के लिए गुरुजी हैं। पशुगणना, जनगणना, चुनाव करवाना,ओडीएफ़ का काम गुरूजी के हवाले कर दिया गया है। बावजूद इसके शिक्षाकर्मी अपना श्रेष्ठ दे रहे हैं। राज्यपाल,राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री शिक्षक गौरव अलंकरण तो यही प्रमाणित करता है।

 

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