श्रीरामकथाः धर्मस्थापना के लिए राम ने किया युद्ध..पहले आराध्य को पूजा…संत प्रवर ने बताया..सीता..नारी शक्ति की पहचान..राम ने पिरोया अखंडता का मोती

BHASKAR MISHRA
7 Min Read
बिलासपुर– लालबहादुर शास्त्री मैदान में श्रीरामकथा के आठवें दिन लंका से युद्ध प्रसंग पेश करने से पहले संत प्रवर विजय कौशल ने उपस्थित जनसैलाब को महाशिवरात्रि की बधाई दी। विजय कौशल ने बताया कि भगवान ने सज्जनों की पीड़ा को हरने और नारी शक्ति को सम्मान दिलाने के लिए ही श्रीलंका के खिलाफ युद्ध का जयघोष किया। इसके पहले प्रभु श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर अपने अराध्य भावनभभूत शंकर का वंदन किया। आशीर्वाद हासिल करने के बाद युद्ध का श्रीणेश किया। विजय कौशल महाराज ने श्रद्धालुों को हनुमान सीता संवाद, लंका दहन, अंगद संवाद सुनाकर झूमने को मजबूर भी किया।
अपने अपने हिस्सा का मांगा आशीर्वाद
लालबहादुर शास्त्री मैदान में आठवें दिन श्रीरामकथा शुरू होने से पहले संतप्रवर विजय कौशल महाराज ने व्यासपीठ से पूरे प्रदेश को महाशिवरात्रि पर्व  की शुभकामनाएं दी। कथा के मुख्य सूत्रकार पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल और आयोजन समिति के सदस्यों ने रामकथा के बीच महाशिवरात्रि पर्व का आना प्रदेश के लिए शुभ संकेत बताया। भाटापारा से पहुंचे स्थानीय विधायक सत्यनारायण शर्मा,  बिलासपुर के मेयर रामशरण यादव, जिला सहकारी बैंक के चेयरमैन  प्रमोद नायक, वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक अग्रवाल समेत विभिन्न समाज प्रमुखो ने महाराज विजय कौशल का अभिनंदन किया। सभी ने जनता के लिए आशीर्वाद मांगा।
युद्ध के बाद फूटती है संस्कार की कोपलें
संत विजय कौशल ने बताया कि युद्ध हमेशा विनाश कारी होता है। युद्ध का दूसरा नाम जनसंहार है। लेकिन धर्मस्थापना यानि संस्कारित समाज को गढ़ना के लिए ना चाहकर भी युद्ध करनार पड़ता है। युद्ध के स्वरूप अलग अलग हो सकते हैं। क्योंकि इसके बाद ही नए सिरे से स्वच्छ समाज और संस्कार की कोपलें फूटती हैं।
नागफाश का किया सम्मान
महाराज ने बताया  कि अशोक वाटिका में माता सीता की आज्ञा से हनुमान ने विकराल रूप धारण किया। फल फूल खाया। उपवहन उजाड़ा और  विरोध करने वाले राक्षसों का संहार भी किया। रावण पुत्र अक्षय कुमार को परमधाम पहुंचाया। मेघनाद के साथ भयंकर युद्ध कर भागने को मजबूर किया। बुध्दि के देवता हनुमान ने ब्रम्हास्त्र का सम्मान करते हुए मेघनाद करते हुए खुद को ना केवल नागफाश में बंधने को मजबूर किया। बल्कि मुर्छित होते समय भी मेघनाद की सेना का बहुत नुकसान पहुंचा। रावण के सामने पहुंचकर हनुमान ने समझाया कि राम सामान्य राजा नहीं..वह मानव रूप में भगवान के अवतार हैं। बावजूद इसके रावण की बुद्धि ने काम नहीं किया। और पूंछ में आग लगाने का आदेश कर लंका पतन का रास्ता तैयार किया।
लंका का दहन
संत प्रवर ने बताया कि दुनिया में पूंछ और मुछ की लड़ाई हमेशा से रही। जहां मूंझ से अहंकार को बोध होता है। तो पूंछ से सम्मान का अहसास होता है। हनुमान की पूछ दुनिया के कोने कोने में है । उन पर भगवान राम की असीम कृपा थी और है। हनुमान ने रामकृपा पाकर लंका दहन करते समय  एक एक घर को जलाया। लेकिन भगवान के भक्त विभिषण की कुटिया को आंच तक नहीं आने दिया। लंका दहन के बाद आज्ञाकारी हनुमान ने माता सीता से चूड़ामणि  निशानी लिया। समुद्र को लांघ कर भगवान के पास पहुंचे। अशोका वाटिका की मार्मिक चित्रण कर राम को युद्ध के लिए मजबूर किया। हनुमान ने माता सीता का संदेश भी दिया कि यदि तीस दिन के भीतर राम नहीं लेकर गए तो प्राण छोड़ देंगी।
राम ने किया युद्ध का जयघोष
हनुमान से अशोक वाटिका की सारी बातें सुनने के बाद राम ने लंका पर चढ़ाई का जयघोष किया। नल नील के सहयोग से विशाल समुद्र के सीने पर पुल तैयार किया गया। लेकिन युद्ध से पहले श्रीराम ने शिवलिंग स्थापित भगवान शंकर का वंदन किया। आज्ञा लेने के बाद श्रीलंका पर चढ़ाई का आदेश दिया।
विभिषण का आगमन
कथा प्रसंग के दौरान संत प्रवर ने विभिषण की रामशरण में आने की रोचक कथा को श्रद्धालुओं से साझा किया। उन्होने बताया कि दुष्ठ व्यक्तियों के नाम और आचरण दोनो ही पीडा देने वाले होते हैं। विभिषण के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्होने वानर सेना से बताया कि वह रावण का छोटा भाई है। इतना सुनते ही वानर सेना ने विभिषण का बुरा हाल कर दिया। लेकिन हनुमान कृपा से विभिषण को राम का सानिध्य मिला। 
लक्ष्मण को शक्ति, मेघनाद कुम्भकर्ण का वध
मेघनाद लक्ष्मण युद्द प्रसंग में महाराज ने बताया कि दुष्ट परेशान कर सकता है..लेकिन अंत दुष्ट का ही होगा। शक्ति लगने के बाद जब लक्ष्मण मुर्छित हुए तो हनुमान ने लंका से राजबैद्य सुषेण को घर समेत उठा लाया। आज्ञा मिलते ही रातो रात धौलागिरी से संजीवनी लाकर लक्ष्मण को बचाया। अन्त में लक्ष्मण ने मेघनाद का वध किया। भगवान राम ने कुम्भकर्ण का वध कर लंका को वीर हीन बनाया। और रावण की अमर यानि मंदार सेना को हनुमान ने अंतरिक्ष में हमेशा के लिए उछाल दिया। और रावण फिर युद्ध में अकेला पड़ गया। 
राष्ट्रीय एकता,अनेकता का संदेश
सेतुबंध प्रसंग के दौरान महाराज ने बताया कि रामेश्वरम तीर्थ देश की एकता और अखंडता का दिव्य सूत्र है। गंगोत्री से गंगा जल लाकर रामेश्वरम में अभिषेक करने वाले को भगवान श्री राम की प्राप्ति होती है। समाज को संस्कारित करने वाली जीवनशैली जरूरी है। महान संतों ने देश के पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण में देवत्व स्थलों की स्थापना का वंदनीय कार्य किया है। हमारी जाति परिवार भाषा अलग अलग हो सकती है। लेकिन भगवत प्राप्ति का रास्ता कर्मयोग से तैयार होता है। शास्त्र के अनुसार परंपराओं का पालन करना होगा । इसके लिए हमें घर छोड़कर भटकने की जरूरत नहीं है। उन्होने दोहराया कि परिवार ही दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ है। घर की जिम्मेदारियों को राम नाम के साथ पूरे मनोयोग से करेंगे तो फिर भगवान भी दर्शन देने से अपने को रोक नहीं पाएंगे।
दिग्गजों  किया दर्शन उतारी आरती
क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल प्रदेश संगठन मंत्री पवन सिंह प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी, विधायक रजनीश सिंह ,नंदन जैन भाजपा प्रदेश कोषाध्यक्षक्स सुरेंद्र पाटनी एनजीओ प्रकोष्ठ किरण देव सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय कुलपति अरुण नाथ बाजपेयी  और पदाधिकारियों ने राम दरबार पहुंचकर आरती के बाद आशीर्वाद लिया।
close