हमार छ्त्तीसगढ़

कही-सुनी:मोहन मरकाम के नए तेवर

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(रवि भोई)प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने विधानसभा के अंदर अपनी ही सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप जड़कर सुर्ख़ियों में आ गए हैं। मोहन मरकाम के नए तेवर को सत्ता और संगठन में विस्फोट के रूप में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि मरकाम के नए रुख से सत्ता और संगठनके बीच चल रही अंदरूनी लड़ाई सार्वजनिक हो गई। विधानसभा चुनाव के आठ महीने पहले संगठन में बदलाव की खबरों और कांग्रेस के महाधिवेशन में अपनी उपेक्षा से व्यथित मरकाम विधानसभा में अपनी ही सरकार पर तलवार चला दिया। कहते हैं राजधानी स्तर पर सत्ता और संगठन पर टकराव तो है ही, अपने संभाग में पार्टी के एक नेता से उनका छत्तीस का आंकड़ा है। ये नेता राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी हैं। कहा जा रहा है मरकाम ने राष्ट्रीय स्तर के नेता के रिश्तेदारों पर निशाना साधकर वार तो उन्हीं पर ही किया है। समझने वाले तो समझ ही जाते हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय महाधिवेशन के दौरान एक पक्ष ने मरकाम जी के करीबी एक पदाधिकारी पर निशाना साधा था। अब देखते हैं कांग्रेस की नई लड़ाई आगे क्या रूप लेती है ? कहा जा रहा है कि मोहन मरकाम को इन दिनों प्रदेश के दो नेताओं का वरदहस्त है।

भाजपा में नया गठजोड़
छत्तीसगढ़ भाजपा में आदिवासी और ओबीसी नेताओं में गठजोड़ की खबर है। कहते है 15 मार्च के आंदोलन में यह गठजोड़ नजर भी आया। पीएम आवास को लेकर भूपेश सरकार को घेरने के आंदोलन में प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने तो मेहनत की ही, कुछ और आदिवासी और ओबीसी नेताओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। कहा जा रहा है अब तक के आंदोलनों में आगे रहने वाले नेता परदे में रहे। इस आंदोलन में अरुण साव छत्तीसगढ़ी में भाषण देकर नई छाप छोड़ी तो आंदोलन की सफलता के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी उनकी पीठ थपथपा दी । इस आंदोलन के बाद राज्य के आदिवासी नेताओं को वजन देने की बात भी चल पड़ी है। अभी भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों ही ओबीसी वर्ग से है। चर्चा है कि आने वाले समय में भाजपा के आदिवासी नेताओं में रामविचार नेताम, नंदकुमार साय, विक्रम उसेंडी और केदार कश्यप का कद बढ़ सकता है।

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साय के बाल की बलि पर सवाल ?
भाजपा नेता रामविचार नेताम ने सत्ता के लिए जोश-जोश में नंदकुमार साय का बाल दांव पर लगा दिया या फिर जानबूझकर ऐसा किया, यह चर्चा का विषय है। रामविचार नेताम और नंदकुमार साय दोनों ही भाजपा के आदिवासी नेता हैं और दोनों ही सरगुजा संभाग से ताल्लुक रखते हैं। दोनों ही राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी रह चुके हैं। रामविचार नेताम संगठन में तो नंदकुमार साय संवैधानिक पद पर रहे। नंदकुमार साय काफी सालों से लंबे बाल रख रहे हैं। कहते हैं सत्ता के लिए उनके बालों को दांव पर लगाए जाने से नंदकुमार साय खुश नहीं हैं। लोग भी कह रहे हैं नेताम जी ने अपना कुछ दांव पर लगाने की जगह साय जी के बाल पर चाल क्यों चली ? जोगी शासनकाल में दिलीपसिंह जूदेव ने तो अपने मूछों पर दांव लगाया था। रामविचार नेताम के दांव पर मंत्री अमरजीत भगत ने पलटवार कर दिया है , पर इस दांव से भाजपा के भीतर ही कोलाहल मचा है।

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ईडी के अगले कदम का इंतजार
कहा जा रहा है कि ईडी फिलहाल नेताओं पर सख्त कार्रवाई नहीं करेगी। नेताओं से पूछताछ कर जानकारियां इकट्ठी की जाएगी। चर्चा है कि जून-जुलाई में नेता निशाने पर आएंगे। तब कुछ नेताओं की गिरफ्तारी भी हो सकती है। खबर है कि तब तक ईडी अपनी जाँच को अफसरों के आसपास ही केंद्रित करके रखेगी। फ़रवरी में ईडी ने कांग्रेस के दो विधायक और कुछ नेताओं के यहां छापे की कार्रवाई कर कुछ जानकारियां जुटाई थी। इसके बाद मार्च में उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया। कहा जा रहा है कि ईडी को कृषि विभाग में खरीदी और सप्लाई में गड़बड़ी की शिकायत मिली है। शिकायत को अभी तक जाँच में नहीं लिया है। जाँच के बाद ही मामला आगे बढ़ेगा। चर्चा है कि ईडी के पास जाँच पड़ताल की लंबी सूची है। माना जा रहा है कि एक्शन की जगह ईडी एकाध महीने सबूत जुटाने और रणनीति बनाने में ज्यादा दिमाग लगा सकती है, पर लोगों को ईडी के अगले कदम का इंतजार है।

छोटे-बड़े जिले का खेल
कहते हैं एक जिले के पुलिस कप्तान साहब कमाऊ जिले में जाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जुगाड़ भी बैठा दिया था। लेकिन ईडी ने खेल बिगड़ दिया। ईडी के भय से उनकी सिफारिश करने वाला अदृश्य हो गया और उन्हें छोटे जिले से ही संतोष करना पड़ा। साहब पहले भी एकाध जिले की कप्तानी कर चुके हैं, ज्यादा दिन चल नहीं पाए। इस कारण अच्छा जिला चाहते थे। कहते हैं साहब छोटे जिले में भी अच्छा खेल कर रहे हैं। पड़ोसी राज्य से जुड़े जिले होने के कारण साहब की मुराद पूरी हो रही है।

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प्रशासनिक सर्जरी की हलचल
कहा जा रहा है विधानसभा सत्र निपटने के बाद छोटा-मोटा प्रशासनिक सर्जरी हो सकता है। इसमें एक-दो जिलों के कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ इधर से उधर हो सकते हैं। माना जा रहा है कि जून-जुलाई में 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस की सरकार जिलों में अफसरों की पोस्टिंग करेगी। कई अफसर अलग -अलग जिले में रहकर फील्ड में लंबा समय बिता चुके हैं। लंबे से फील्ड में तैनात अफसरों को सरकार इधर-उधर पदस्थ कर देगी, नहीं चुनाव आयोग का डंडा चल जाएगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक हैं। )


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