लुतरा शरीफ पर विशेष..पढ़ें..कहां..पैदा हुए बाबा इंसान अली..अरब से उनका क्या रिश्ता..बाबा ताज ने उन्हें क्या कहा..और गले लगाकर क्या बताया

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—(रियाज अशरफी)—छत्तीसगढ़ की धरती पर लुतरा शरीफ देहात से शायद ही कोई अपरिचित हो। अपरिचित होने का सवाल ही नहीं उठता है। क्योंकि पुरा हिंदुस्तान हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह के कारामात से परिचित जो है। जंगल के बीच  बसे इस छोटे से गांव की फ़िजाओं में एक अलग ही खुश्बू है । चारो ओर खुशहाली और शादमानी की महक है । यह सब इसलिए है क्योंकि यहां शहंशाहे छत्तीसगढ़,ताजदारे विलायत हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह का मुकद्दस दरगाह है। जिनके फैजान के नूरी किरणों से 60 वर्षो से सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नही हिंदुस्तान का चप्पा-चप्पा महक रहा है। 
 
            बाबा इंसान अली के दरबार में हर जाति धर्म के लोगों का हिंदुस्तान के कोने-कोने से  आना होता है। लोग फरियाद करते हैं। और मुस्करा कर लौटते भी हैं। क्योंकि यहां से आज तक कोई भी खाली झोली नहीं गया है। छत्तीसगढ़ के शहंशाह का फैजान हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई के अलावा अन्य मजहब और मिल्लत के मानने वालों पर जारी है।
             
बाबा इंसान अली का सफरनामा
 
            सूफी-संत हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह की पैदाईस 175 वर्ष पहले सन 1845 में ग्राम बछौद के सैय्यद मरदान अली के घर मे दादी अम्मा बेगम बी साहिबा के गोद मे हुई। बाबा इंसान अली शाह तीन बहन भाई में सबसे छोटे थे। दो बड़ी बहनें इज्जत बी व उम्मीद बी थी।  बचपन से करामाती बाबा अपने में ही लीन रहते थे।  एक रईस खानदान से ताल्लुक रखने के बाद ही सादगी ही उनका श्रंगार था। बाबा की शादी खम्हरिया के मालगुजार जनाब मोहियुद्दीन खान की बेटी उमेद बी से हुई। शादी के बाद बाबा इंसान अली की एक बेटी हुई। मात्र 6 माह में इन्तेकाल हो गया। सके बाद कोई औलाद नही हुआ। इसके बाद पूरी जिंदगी लोगो के भलाई में खर्च कर दिया। जिन्दगी भर तमाम लोगों की मुराद पूरी करने वाले बाबा ने 28 सितंबर सन 1960 रविवार को मुस्कुराते हुए रात 9:35 बजे हमेशा के लिए आंखों से ओझल हो गए। अब अपने आस्ताने में आराम करते हुए दूर दराज से पहुँचे हुए मुसीबतजदो की परेशानी दूर कर रहे है।
 
राजा भोसले के  सिपहसालार रहे
 
       हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह के परदादा सैय्यद हैदर अली शाह  अरब से पैग़म्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब की बशारत के बाद हिंदुस्तान पहुंचे। सबसे पहले ख़्वाजा गरीब नवाज के दरबार अजमेर शरीफ में ठहरे। दिल्ली पहुचकर ख्वाजा बख्तियार काकी और निजामुद्दीन औलिया के दरबार मे हाजरी दिए।  कलियर शरीफ,बरेली शरीफ,देवा शरीफ होते हुए किछौछा शरीफ पहुचकर हजरत सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी के दरबार में कुछ दिन ठहरे। इसके बाद सीधा छत्तीसगढ़ रुख किया। इलाहबाद,कटनी होते हुए बिलासपुर पहुचे। रतनपुर आये और हजरत सैय्यद मुशा शहीद के दरगाह में रुकने का फैसला किया। तात्कालीन समय छत्तीसगढ़ में राजा भोसले की सल्तनत थी। एक दिन सैय्यद हैदर अली राजा भोसले से मिले। राजा ने प्रभावित होकर फौज का सिपहसालार बना दिया।  कुछ सालों बाद सैय्यद हैदर अली शाह का लश्कर से ट्रांसफर  बछौद हुआ। और हमेशा के लिए परिवार के साथ यहीं बस गए।
                
बाबा ताजुद्दीन से पहचान
 
     हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह फक्कड़ मिजाज के थे। खान-पान की कोई सूद-बुद नही होती थी। कपड़ो का कोई ख्याल नही रहता था। अपने आप से बातें करते रहते।  गाली गलौच करना,पागलों जैसी हरकत करना,अचानक किसी को मार देना ,मुह बनाते बीड़ी-सिगरेट पीना। सब तो जैसे उनकी आदतों शुमार हो गया था। एक दिन रायपुर के हजरत मोहसिने मिल्लत हजरत सैय्यद हामिद अली लुतरा शरीफ पहुंचे। वह बाबा इंसान अली के व्यक्तित्व से वाकिफ थे। उन्हें पता था कि वह आम इंसान नही है। अल्लाह के खास बंदों में से एक हैं। उन्होने बाबा इंसान अली को नागपुर के बाबा ताजुद्दीन के दरबार मे जाने को कहा। फिर क्या था बाबा इंसान अली शाह को जंजीर और रस्सियों में जकड़कर 1923 में परिजनों ने नागपुर स्थित बाबा ताजुद्दीन औलिया के दरबार पेश किया।  बाबा ताजुद्दीन बाबा इंसान अली को देखते ही मचल गए। उन्होने कहा ” अरे ये क्या…. फौरन इनकी रस्सियां और जंजीरे खोल दो।  जिन्हें पागल,दीवाना समझ रहे हो ..कोई आम इंसान नही है। खुदा का करीबी बन्दा है। बाबा इंसान अली को बड़ा भाई कहते हुए बाबा ताज ने गले से लगा लिया। इसके बाद ही लोगों ने बाबा इंसान अली के अंदर छिपे राज को जाना और पहचाना।
 
कुछ अनोखी करामात
 
        हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह जन्म से ही करिश्माई व्यक्तित्व के धनी थे। वैसे तो उनके सैकड़ों करामात है लेकिन कुछ मशहूर करामात जिन्हें यहां बताया जा सकता है। बाबा शुध्द छत्तीसगढ़ी बोलते थे। एक बार हजरत सैय्यद हामिद अली शाह रायपुर से लुतरा शरीफ आए। उन्होने देखा कि बाबाब रात में खुदा के याद में लीन हैं ।उनके सीने से एक नूर चमक रहा था।  नूर से मदीना शरीफ के गुम्बद खजरा नजर आ रहे था। पूरा कमरा खुशबुओं से भरा हुआ था। बाबा इंसान अली ने जब सैय्यद हामिद अली शाह को देखा तो फरमाया।
 
             उन्होेने कहा कि तैं हर मोला काय देखत हावस ये हर वो जगह ये जिंहा ले आदमी मन कयामत तक ले फ़ैज़ पावत रही। एक बार बाबा सरकार राधे श्याम नाम के ड्राइव्हर के जीप में बैठकर बिलासपुर से लुतरा शरीफ आ रहे थे। सीपत के पास जीप का डीजल खत्म हो गया।  बाबा ने तेज आवाज में बोले “तै काबर जीप ला रोक देहे रे” वाहन चालक ने डरते हुए कहा कि डीजल खत्म हो गया है। बाबा ने कहा “एखरे बर तैं मोला अपन गाड़ी म बैठाए हावस का रे” ।बाबा ने जलाल में आते हुए कहा कि टीपा म पानी ला के टँकी मा डाल दे”। चालक ने डरते हुए ऐसा ही किया और गाड़ी चालू हो गयी। बाबा ने लुतरा शरीफ में उतरकर कहा कि “तैं हर टँकी मा झांक के देखबे झन” इसके बाद कई दिनों तक उसी पानी से जीप चलती रही। एक दिन चालक राधेश्याम टंकी में खोलकर देख लिया।  उस दिन से फिर गाड़ी बन्द हो गई । और  डीजल डलवाकर चलाना पड़ा।
 
मौसी की बनवाई मस्जिद में 14 साल पढ़ाये नमाज
 
       आसपास के गांव के मुसलमानों के नमाज पढ़ने के लिए हजरत बाबा सैय्यद इंसान अली शाह की मौसी सिंगुल की गौटनींन ने ग्राम खम्हरिया में 170 वर्ष पूर्व मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद आज भी है। गुड़,चुना और बेल के गारे से बनी आलीशान मस्जिद बिलासपुर जिला के सबसे पुरानी मस्जिद है। बाबा इंसान अली शाह ने 14 वर्षो तक नमाज पढ़ाया है।  लोगो को सही रास्ता चलने की शिक्षा देते हुए दिन का काम किया यह मस्जिद आज भी पूर्व की तरह ही खूबसूरत है। ऐसा लगता है कि अभी अभी ही इसकी तामीर की गई है। मस्जिद को देखने दूरदराज से लोग आते है। मस्जिद के आंगन में बाबा सरकार के नानी जान की दरगाह है।
       
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