(गिरिजेय) पूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती पर 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन शिक्षकों का सम्मान किया जा रहा है और उनकी अहमियत पर कसीदे पढे जा रहे हैं। यह दिन हर साल आता है और हर साल यही सिलसिला चलता है। इस रिवाज की रस्मअदायगी इस बार भी हो रही है। लेकिन कोई यह सोचने के लिए खाली नहीं है कि इस रस्मअदायगी से हम क्या हासिलल कर पाते हैं ? यह सवाल खासकर उस समय हमारे जेहन में उतरता है जब हम आज के शिक्षकों की हालत पर नजर डालते हैं। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि आज के दौर में बुनियादी शिक्षा का बोझ अपने सर पर उठाए सरकारी स्कूलों में करीब 80 फीसदी शिक्षक पंचायत या शिक्षक नगरीय निकाय ( शिक्षाकर्मी) हैं। इन गुरूजनों की हालत भी किसी से छिपी नहीं है। उनके हालात पर cgwall.com ने पड़ताल करने की कोशिश की है और जो तस्वीर हमारे सामने आई उसे हम सिलसिलेवार -किस्तवार पेश कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि व्यवस्था के जिम्मेदार लोग इस पर गौर कर कोई ऐसा कदम उठाएंगे जिससे हालात बदले और गुरूजनों को सही में सम्मान मिल सकेः । पेश है तीसरी किस्तः-
यहां पर बताना जरूरी है कि सरकारों का रवैया इतना उदासीन और गैरजिम्मेदाराना था कि इतने सालों से विद्यालयों में अपनी सेवा देने वाले शिक्षाकर्मियों के वर्तमान की चिन्ता तो उन्हें थी ही नहीं। बल्कि उनका भविष्य भी अधर में छोड़े रखा। केन्द्र सरकार के श्रम मंत्रालय के आदेशानुसार प्रत्येक ऐसा संस्थान जहां 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हो उनकी भविष्यनिधि की कटौती की जाएगी। यह आदेश निजी संस्थानों पर भी लागू होता है। जबकि छत्तीसगढ़ राज्य की लोककल्याणकारी सरकारों ने साल 2013 तक लगभग 20 सालों तक शिक्षाकर्मियों के वेतन से एक रूपए की भी कटौती नहीं की। शिक्षाकर्मी भविष्य निधि से तो दूर उनके नाम से भी अपरिचित रहे।
संवेदनहीनता और गैरजिम्मेदारी का इससे बड़ा उदाहरण शायद ही कहीं और कभी देखने को मिले। कुछ दिनों पहले कुछ शिक्षाकर्मी जब सेवानिवृत हुए तो उनके हाथ उस महीने के वेतन के अलावा कुछ नहीं लगा। जीवनभर अत्यन्त कम वेतन पाने वाला वह सेवानिवृत शिक्षाकर्मी जिसे पेन्शन भी नहीं मिलनी है साठ साल की उम्र में अब कैसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करेगा। निश्चित रूप से से सोचने वाली बात है।
लगातार शोषण से तंग आकर कुछ होशियार शिक्षाकर्मियों ने पढ़ाने के साथ कमाई के कुछ अन्य साधन विकसित करने की कोशिश की। कुछ ने व्यवसाय आरम्भ किए। जिसके कारण समय पर विद्यालय न आने और कर्तव्य का निर्वहन नहीं करने के आरोप उन पर लगते रहे। कुछ ने विद्यालय छोड़कर कार्यालयीन कार्यों में हाथ आजमाया। कार्यालयों में स्टॉफ की कमी के कारण उनकों इसमें सफलता भी मिली। धीरे-धीरे वे सिस्टम का हिस्सा बनते हुए अपने ही साथियों के शोषण के औजार बन गए।
लेकिन आम शिक्षाकर्मी जिसने ईमानदारी से अध्यापन को अपना रास्ता चुना…वो हमेशा शोषित रहा….। सरकार से, अपने नियमित साथियों से और कभी संगठन के नेताओं से।
संख्य़ा अधिक होने की वजह से संगठन में भी वैचारिक मतभेद होते रहे। कभी मातृ संगठन के गलत फैसलों की वजह से तो कभी पुराने नेताओं के आर्थिक विकास से प्रभावित होकर, तो कभी राजनीतिक और कार्यालयीन गलियारों में उनकी पूछ परख से प्रभावित होकर। या कभी अपने-अपने हितों को लेकर संगठन में विखराव होता रहा। इस तरह टूटते हुए शिक्षाकर्मियों के 13 पंजीकृत संगठन हो गए हैं। सरकार इनके विखराव का फायदा उठाती रही। कुछ अन्य शिक्षाकर्मियों के मन में भी नेतृत्व की भावना का विकास हुआ।
हालांकि आठ साल की सेवा पूर्ण करने लेने वाले शिक्षक का वेतन साल 2013 के बाद से सम्मान जनक की कोशिश की गयी है। लेकिन सेवा शर्तों, सुविधाओं और वेतनभत्तों में आज भी भारी अन्तर है। वर्ग तीन का शिक्षक सर्वाधिक शोषित है।
आज जहां गुणवत्ता शिक्षा की बात हो रही है। वहां इतने वर्षों से शिक्षा की गुणवत्ता को निरन्तर बढ़ाए रखने वाले शिक्षाकर्मियों के विषय में सरकार को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। इतने बड़े शिक्षा विभाग में नियमित शिक्षक अब 20 प्रतिशत ही रह गए हैं। ऐसे में राज्य में लम्बे समय से शिक्षा की ज्योति जलाए रखने वाले शिक्षाकर्मियों पर ही भविष्य की शिक्षा का भी भार रहेगा।
जरूरत है कि सरकार अब सकारात्मक पहल कर शिक्षाकर्मियों की जायज मांगों को स्वीकार करे। शिक्षाकर्मियों के अपने ही कार्यक्षेत्र में होने वाले दोयम दर्जे के व्यवहार से निजात दिलाते हुए शिक्षकों की गरिमा पुनः स्थापित करे।
शिक्षक पंचायत संवर्ग एव नियमित विभागीय शिक्षक को समान कार्य समान वेतन समान नियम का प्रावधान हो ।
नियमित शिक्षक एवं शीक्षक पं. संवर्ग को शासित करने वालो नियमो काफी असमानता है । जबकी दोनो एक ही प्रकृति के कार्य कर रहे है.।
इससे अच्छा आलेख शिक्षा कर्मियों पे ,मेरी जानकारी में नहीं लिखा गया। इसमे शिक्षा कर्मी की पूरी कहानी है ।और ये भी है कि राजनेताओ ने अपनी रोटी सेकने के लिए देश की शिक्षा व्यवस्था को कैसे बर्बाद किया उसकी जड़ में घुन लगाया ।
अब एक आलेख और अपेक्षित है कि कैसे नेताओ ने ऐसा किया और शिक्षाविदों ने इसे होने दिया और इसके भविष्य के दुष्परिणामों के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं ।
बहुत अच्छा लेख है।
शिक्षाकर्मियो की कहानी 1,2,3 शोषित कर्मचारियो की बेबसी को वयक्त करती कहानी है।ये कैसा लोकतंत्र है जहां शासन की लम्बे समय तक सेवा करने वाला वाला शिक्षाकर्मी ,संविदा शाला शिक्षक ,गुरूजी, अध्यापक, शिक्षा मित्र आदि शोषित कर्मचारियो का सेवानिवृत्ति के बाद बुढापा और भविष्य सुरक्षित नही है।इन कर्मचारियो के पास सेवानिवृत्ति के पश्चात दो ही उपाय है या तो आत्महत्या करे या याचक का जीवन गुजारे।
लोगों में शिक्षा की अलख जगाने वाले शिक्षकों के साथ
इस प्रकार हमारे गुरुजनों के साथ सौंतेला व्यवहार किया जाता है जो बहुत ही निंदनीय है,इसका पुरज़ोर विरोध होना चाहिए।
[6/19, 07:36] +91 96916 20960: *2013 में जो मिला जिस माहौल में मिला उसमे किसी कमी के लिए शिक्षाकर्मी किसी संगठन को नहीं सरकार को दोष देते हैं । आज अगर इस विसंगति के साथ हम सरकार को धन्यवाद देते हैं तो कमी के लिए हम जिम्मेदार माने जायेंगे आम शिक्षाकर्मियों की नजर में। कृपया इस पर विचार कर कोई रणनीति बनाये।*
[6/19, 08:40] चिट्ठीनसंदेश पितस्मृतिशेष: *मैं आपके बातों को पूर्णता समर्थन करता हूं धन्यवाद देना जश्न मनाना यह हमारे साथियों के बीच आपसी फूट डालना होगा इसलिए 8 साल से कम और वर्ग 3 वाले साथियों के लिए हमें संघर्ष का शंखनाद करना होगा*
@भूतलक्षी प्रभाव से सबके लिए समानुपातिक लागू हो संविलियन
@मृत और सेवानिवृत्त शिक्षकों को भी हो लाभ
@तभी संविलियन की जय
@आपकी राय जरूर दें@*
[6/19, 08:44] चिट्ठीनसंदेश पितस्मृतिशेष: *बिना संक्षेपिका आए किसी प्रकार के जश्न मनाना आभार प्रदर्शन करना संघ हित में नहीं है*
*मध्यप्रदेश के साथियों की तरह वेट एंड वॉच की नीति अपनाई और किसी प्रकार से जश्न मना मना*
आपने शिक्षाकर्मी की अंदर की दर्द को इस लेख के माध्यम से बहुत सुन्दर ढंग से समझाने का प्रयास किए हैं आपके विचार बहुत ही अच्छा है लेकिन सरकार को इसका समझ ही नही है…….