हसदेव अरण्य को काटकर कोयला निकालना अनावश्यक,सुदीप श्रीवास्तव ने कहा-राजस्थान को MP से लेना चाहिए कोयला

Shri Mi
2 Min Read

बिलासपुर-हसदेव अरण्य जंगलों में कोयला खनन के खिलाफ 2012 से एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने आज बिलासपुर के नागरिकों द्वारा जंगल की कटाई के विरोध निकाली गई रैली को सही कदम ठहराया। उन्होंने ब्यौरा देते हुये बताया कि देश में घने जंगलों के बाहर पर्याप्त कोयला उपलब्ध है अतः हसदेव जैसे घने जंगल जो हाथियों का रहवास और बांगों बांध का जल ग्रहण क्षेत्र है उसे उजाड़ना पूरी तरह अनावश्यक है। अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने भारत सरकार के आंकड़ो के आधार पर निम्न जानकारी दी।

Join Our WhatsApp Group Join Now

देश में कोयले का कुल ज्ञात भण्डार – 3.20 लाख मिलियन टन
इस कोयले में से उत्पादन योग्य कोयला- 2.50 लाख मिलियन टन
घने जंगल के नीचे स्थित कोयला भण्डार- लगभग 40 हजार मिलियन टन
घने जंगल के बाहर उत्पादन योग्य कोयला-2.10 लाख मिलियन टन
देश की वर्तमान कोयला मांग- 1000 मिलियन टन वार्षिक
देश की 2050 में कोयला मांग – 2000 मिलियन टन वार्षिक
देश को 2070 तक की कोयला मांग- 1.00 लाख मिलियन टन

अर्थात भारत घने जंगलो के नीचे स्थित कोयला भण्डार को खनन किये बगैर अपनी वर्तमान और भविष्य की सभी आवश्यकता पूरा कर सकता है। 2050 के बाद पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते के कारण कोयले की मांग घटती जायेगी। 2070 के बाद कोयले का युग ही समाप्ति की ओर बढ़ेगा। इस स्थिति में हसदेव अरण्य जैसे घने जंगल जो कि कार्बनडाई आक्साइड शोषित करते है, उन्हें काटकर कोयला जलाना दोगुना नुकसान देह है। इससे मानव हाथी संघर्ष और खदान की मिट्टी बहने से हसदेव बांगो बांध की क्षमता भी कम होती जायेगी।

जहा तक राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के कोयले की आवश्कता का प्रश्न है, उसे मध्यप्रदेश में सोहागपुर कोलफील्ड में स्थित कोल ब्लाॅको में से कोयला लेना चाहिये। ऐसा करने से उसे कोल परिवहन की लागत में 300 से 400 रूपये प्रति टन की बचत होगी। गौरतलब है कि सोहागपुर कोलफील्ड के बहुत सारे कोल ब्लाॅक जंगल विहीन है।

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close