(गिरिज़ेय़)मंत्रियों के प्रभार जिले में फेरबदल के साथ ही छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार ने अपने कार्यकाल के उत्तरार्ध यानी अगले ढाई साल की शुरुआत कर दी है। हालांकि यह एक तरह से प्रशासनिक फेरबदल का एक हिस्सा है। लेकिन मौजूदा हालात में इसे सियासी नजरिए से भी देखा जा रहा है। जिसके हिसाब से कई मंत्रियों का कद छोटा कर दिया गया है और वही नेताओं के बीच तालमेल बनाने की कोशिश भी दिख़ाई दे रही है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद जिलों में मंत्रियों के प्रभार में पहली बार फेरबदल किया गया है। जिसमें पूरी तरह से उलटफेर दिखाई दे रहा है। सीधे तौर पर तो यह एक प्रशासनिक प्रक्रिया है। लेकिन सियासत में हर एक इवेंट को सियासी किलोबाट पर नापतौल कर देख़ने का रिवाज़ रहा है।
उस हिसाब से देखा जाए तो भूपेश बघेल सरकार ने अपने बचे हुए ढाई साल के कार्यकाल के लिए एक तरह से प्रशासनिक कस़ावट़ का संदेश दिया है । छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के सीएम के मामले में जितनी अटकलबाज़ियां हाल के दिनों चलती रहीं हैं, उनकी हवा तो पहले ही निक़ल गई है। हाल के दिनों में कई जिला कलेक्टरों के तबादले के साथ की गई प्रशासनिक सर्ज़री के बाद अब प्रभारी मंत्रियों को बदलकर सरकार ने यह साफ़ मैसेज़ दिया है कि अब बिना किसी अटकलबाज़ी के पूरे विश्वास के साथ सरकार का कामकाज़ चलेगा। इस फेरबदल का एक सीधा मतलब यह भी है कि भूपेश सरकार बस्तर इलाके में सरकार को आम लोगों के बीच पहुंचाने के लिहाज से स्थानीय मंत्री कवासी लखमा को बस्तर ,दंतेवाड़ा, बीजापुर , कोंडागांव और नारायणपुर का प्रभार सौंपा गया है। माना जा रहा है कि इसके पहले जो मंत्री इन जिलों के प्रभार में थे, वे दूरी की वजह से दौरा भी कम पर कर पाते थे और दिलचस्पी कम होने की वजह से संपर्क भी कम होता था। अब माना जा रहा है कि स्थानीय मंत्री कवासी लखमा को प्रभार सौंपने के बाद उनका संपर्क भी बढ़ेगा और सरकार को आम लोगों तक पहुंचाने में मदद भी मिलेगी।
सियासी नजरिए से यह भी देखा जा रहा है कि इस फेरबदल में कई मंत्रियों के कद घटा दिए गए हैं । प्रदेश सरकार के मंत्री त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव का यह बयान भी गौरतलब है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पहले उनके प्रभार में 12 विधानसभा सीटें थी । अब 5 विधानसभा सीटें रह गई है। वे यह भी कहते हैं कि वे खिलाड़ी भावना से काम करेंगे। अब यह सवाल भी घुमड़ रहा है कि बिलासपुर जिले में प्रभारी मंत्री बदले जाने के क्या मायने हैं….? प्रदेश में सरकार बनने के बाद से गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू बिलासपुर के प्रभारी मंत्री रहे। अब उनकी जगह राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल को बिलासपुर जिले का प्रभारी बनाया गया है। कांग्रेसी हलकों में इस बात की चर्चा है कि ताम्रध्वज साहू वरिष्ठ और उम्रदराज़ होने की वज़ह से बिलासपुर जिले का दौरा कम कर पाते थे। अब उनकी जगह जयसिंह अग्रवाल नए प्रभारी बने हैं। जो कोरबा जिले के हैं और रायपुर से कोरबा के बीच आते – जाते बिलासपुर के साथ उनका नियमित संपर्क रहता है। हालांकि बिलासपुर जिले में कांग्रेस की राजनीति जिस तरह विवादों से घिरी रही है ,उसे देख कर भी माना जा रहा है कि जिले के प्रभारी बनाए गए जयसिंह अग्रवाल के सामने चुनौतियां कम नहीं है। बिलासपुर में कांग्रेस की राज़नीति में ख़ेमेबाजी पूरे प्रदेश में चर्चित रही है। यहां एक तरफ प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष अटल श्रीवास्तव का खेमा है । वहीं दूसरी तरफ विधायक शैलेश पांडे की अपनी टीम है। जिनके बीच हर मौके पर रस्साकशी की झलक लोगों को मिलती रहती है। शहर का बिलासपुर शहर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दौरे के समय कांग्रेसियों के बीच आपसी लड़ाई की भी चर्चा हमेशा की जाती है। इसके अलावा हाल के दिनों में जमीन को लेकर चल रहे विवाद की वजह से भी बिलासपुर के कांग्रेसियों का झगड़ा राजधानी में भी चर्चा का विषय बनता रहा है। चुनाव से पहले सत्ता और संगठन को साधने के लिए जय सिंह अग्रवाल को ज़िम्मेदारी दी गई है । अब देखना यह है कि वे बिलासपुर शहर में पहले से ही आमने – सामने खड़े कांग्रेस के दो ख़ेमों के बीच की तालमेल करा पाते हैं, या दो ख़ेमों को एक करते – करते अपना ही एक ख़ेमा खड़ा कर लेंगे…. ? अहम् सवाल यह भी है कि जय सिंह अग्रवाल बिलासपुर कांग्रेस को ठीक कर देंगे या ख़ुद ही ठीक हो ज़ाएंगे……?
इन सवालों के बीच नए समीकरणों के अँदर बिलासपुर में भी डॉ. चरण दास महंत के खेमे को नई ताक़त मिलने के भी आसार दिखाई दे रहे हैं । डॉ. महंत के साथ पिछले काफ़ी समय से जुड़े कांग्रेसियों का उत्साह इस ओर ही इशारा कर रहा है। दरअसल प्रदेश की राजनीति में जयसिंह अग्रवाल की गिनती डॉ चरणदास महंत के नज़दीकियों में होती रही है। जयसिंह अग्रवाल के पास गौरेला -पेंड्रा -मरवाही का जिला पहले ही से था । अब बिलासपुर के साथ जांजगीर-चांपा जिला भी उन्हें दे दिया गया है। जाहिर सी बात है कि पेंड्रा -गौरेला -मरवाही से लेकर बिलासपुर होते हुए जांजगीर -चांपा के इलाके में डॉ. महंत की राजनीति का प्रभाव क्षेत्र रहा है। ऐसे में जयसिंह अग्रवाल को यह इलाका देकर डॉ महंत के साथ भी तालमेल बिठाने की कोशिश की गई है। गौरेला -पेंड्रा -मरवाही जिला बनने के बाद जयसिंह अग्रवाल को इस जिले का प्रभार दिया गया था। जहां उन्होंने मरवाही विधानसभा सीट के चुनाव के दौरान जीत हासिल करने में जो भूमिका निभाई उससे भी उनके नंबर बढ़े । गौर करने वाली दिलचस्प बात यह भी है कि मरवाही से लेकर बिलासपुर और जांजगीर -चांपा तक के हिस्से की राजनीति में अजीत जोगी का भी असर रहा है। हालांकि मरवाही इलाके में जोगी खेमे को मात देने में कामयाबी हासिल करने के बाद कांग्रेस के अंदर जयसिंह अग्रवाल अपनी उपयोगिता साब़ित कर चुके हैं । लेकिन बिलासपुर और जांजगीर चांपा में जोगी की पार्टी से निकल कर कांग्रेस में शामिल हुए नेताओं के साथ वे किस तरह का तालमेल कर पाते हैं ,यह आने वाले समय में दिलचस्पी के साथ देखा जाएगा । एक दिलचस्प वाक्या और भी है कि हाल ही में बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने बिलासपुर को भू माफियाओं की राजधानी बताया था। इसके ठीक बाद राजस्व मंत्री को बिलासपुर जिले का प्रभार देकर कांग्रेस सरकार ने एक नया संदेश तो दे दिया है। लेकिन आने वाले समय में बीजेपी फिर कभी ऐसा आरोप न लगा सके ऐसे हालात बनाना जयसिंह अग्रवाल के लिए भी कम चुनौतीपूर्ण नजर नहीं आता ।
बहरहाल भूपेश सरकार ने मंत्रियों के प्रभार में फेरबदल कर एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं और यह मैसेज देने की कोशिश की है कि अब चुनावी मोड की शुरुआत करते हुए नए अंदाज में कामकाज होगा। पार्टी की इस सोच का कैसा असर होगा यह जानने के लिए आने वाले वक्त का इंतजार करना ही बेहतर होगा।।