( गिरिजेय ) इतवार को एक खबर सुर्खियों में रही…. । जिसमें यह दिखाया गया कि बिलासपुर के प्रताप चौक पर एक नौजवान सरेआम चाकू दिखाकर नाचता रहा…..। हालांकि उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया गया। उसे मानसिक रोगी बताया गया। लेकिन हाल के दिनों में बिलासपुर में चर्चित चाकूबाजी की घटनाओं के बीच इस ख़बर को सिर्फ चार लाइनों में समेटकर खत्म मान लिया जाए तो शायद शहर में जो हो रहा है, उस पर से आँख़ मूंद लेने जैसी बात होगी…। अलबत्ता लगता तो यह है कि उस नौजवान ने सरेआम चाकू लहराकर नाचते- नाचते जाने -अनजाने एक तरह से बिलासपुर में इन दिनों चाकूबाजी को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच और कई सवाल भी लहरा दिए हैं…। जिसमें चाकूबाज़ी की घटनाओं, अपराधियों के हौसले, पुलिस की कार्रवाई … सबकुछ समेटकर देखा जा सकता है। और उस नौज़वान की तस्वीर ने इस ओर भी इशारा किया है कि शहर में घट रही वारदातों के मद्देनज़र पिछली और मौज़ूदा सरकार के बीच फ़र्क़ का अहसास क्यों हो रहा है। इस लिहाज़ से अब यह सोचने का भी वक़्त है कि आख़िर वारदातों में बढ़ोतरी के पीछे का सच क्या है….. क्या इसके साथ ड्रग्स का कोई कनेक्शन है…. और क्या मामूली घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है…?
अपना बिलासपुर शहर अभी ही नहीं अविभाजित मध्यप्रदेश के ज़माने से ही शांति का टापू माना जाता रहा है। लोग इस शहर के मीठे पानी के साथ ही यहां के अमन चैन पर भी नाज़ करते रहे..। यही वज़ह है कि बाहर से आने वाले लोगों को भी रहने –बसने के लिए बिलासपुर शहर पसंद आता रहा। आज़ के दौर में जब बहुत कुछ बदल रहा है, तब भी बिलासपुर की यह पहचान बनी हुई है। यही वज़ह है कि इस पहचान पर थोड़ी सी भी द़ाग नज़र आने पर शहरवासी बेचैन होने लगते हैं। हाल के दिनों में शहर में हुई चाक़ूबाज़ी की घटनाओं नें भी लोगों को बेचैन किया है। पिछले कुछ दिनों के भीतर शहर की इन घटनाओं ने जिस तरह मीडिया में ज़गह बनाई, उसे सभी देख रहे हैं। एक ऐसा वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें कार के सामने आने की मामूली सी बात पर एक शख़्स की सरेराह पिटाई की ऐसी तस्वीरें नज़र आ रहीं थीं जो किसी को भी विचलित कर सकती हैं । इस तस्वीर में पत्नी और जवान बेटी के सामने ही एक शख़्स की बेरहमी से पिटाई साफ़ नज़र आ रही है। वीआईपी दौरे के समय भी हमले की घटनाएं सुर्ख़ियों में रहीं है। इस बीच ऑनलाइन चाकू ख़रीदी और दुकानों में बिक्री करने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी पुलिस ने की है। रिकॉर्ड में देखा जा सकता है कि पिछले कुछ दिनों में कितने मामले दर्ज़ हुए हैं और कितने लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है।
चाकूबाज़ी और जुर्म-ज़रायम में बढ़ोतरी को लेकर सियासत भी हुई । हाल की घटनाओं को सामने रखकर यह बताने का भी मौक़ा मिला कि पिछली और मौज़ूदा सरकार में फ़र्क़ कैसा है…। अमन-चैन पसंद इस शहर में अपराधियों के हौसले क्यों बुलंद हो रहे हैं…? जो लोग लम्बे समय से दुब़के हुए थे … वे फ़िर कहां से आ गए ….? सिस्टम का वह इक़ब़ाल क्यों नज़र नहीं आ रहा है…जिस देखकर अपराधियों के हौसले पस्त होते हैं…? इन बातों में वज़न भी है और रोज़-रोज़ इस तरह की ख़बरें भी शहर को लोगों के सामने से गुज़र रही हैं।
लेकिन पुलिस सूत्र मानते हैं कि वारदातों में बहुत अधिक बढ़ोतरी नहीं हुई है। क्राइम का ग्राफ बढ़ने के पीछे कई वज़ह होती है। आबादी बढ़ रही है… लोग शहर की तरफ़ आ रहे हैं…. समाज में हो रहे बदलाव का भी असर पड़ रहा है। पुलिस प्रतिबंधात्मक कार्रवाई लगातार कर रही है। चाक़ूबाज़ी के मामलों में भी पुलिस ने तुरत एक्शन लिया है। फ़िर भी अगर इस तरह के अपराध चर्चा में हैं, इसका मतलब है कि जड़ को पकड़ने के लिए भी चौतरफा उपाय करने की ज़रूरत है। मसलन शहर के किशोर और नौज़वानों के बीच ड्रग्स और नशाखोरी को भी एक वड़ी वज़ह के रूप में देखा जा सकता है। कफ़ सीरप के साथ ही पेनक़िलर और एंटीडिप्रेशन दवाइयां – इंजेक्शन की ज़हरीली ख़ुराक लेकर नई उम्र के लड़के जुर्म की दुनिया की ओर मुड़ रहे हैं। कई बार पकड़- धकड़ तो होती है। लेकिन ज़ड़ कहीं ना कहीं बची रह जाती है। जो ख़ुली आब़ोहवा मिलने पर फ़िर से फलने-फूलने लगती है। इस पर चोट करने के लिए दरअसल चौतरफा एक्शन की दरक़ार है। इस सवाल का भी जवाव तलाशने की ज़रूरत है कि जिस नई पीढ़ी से सुनहरे कल की उम्मीदें हैं, वही नई पीढ़ी हाथ में चाकू क्यों उठा रही है… ? प्रताप चौक पर चाकू लहराते नौज़वान की तस्वीर के पीछे लहरा रहे इन सवालों पर भी गौर नहीं करेंगे तो शायद आने वाले समय में भी ऐसी तस्वीरें बस देखते ही रह जाएंगे….।