आखिर क्यों नाराज हुए सरकार से आदिवासी..जिद के सामने छालों ने भी मानी हार..3 सौ किलोमीटर की पदयात्रा के बाद 14 को सीएम से बताएंगे पीड़ा

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—कांधे पर धनुष….हाथ में तीर…तलवार…लाठी और बैनर के साथ सीना तने हुए….अनुशासन के धागे में बंधी चलती -फिरती…यह लम्बी कतार…कहीं कोई आक्रोश नहीं..अधिकार को लेकर सजग..आदिवासियों की यह भीड़ बहुत कुछ कहती है। कतार बद्ध रास्ता नापते..सैक़ड़ों लोगों को भीड़ कहना ठीक नहीं होगा..लेकिन हम जानते हैं कि लोग इस मंजर को भीड़ ही कहेंगे..क्योंकि भीड़ में सोच..समझ और आत्मा नहीं होती है। लेकिन इस भीड़ में इस भीड़ वह सब कुछ है..जो किसी भी जागरूक इंसान में होना चाहिए…सभी लोगों के चेहरे पर मासूमियत है..भोलापन है..और भविष्य़ को लेकर चिंता भी है। इनके पैरों में छाले भी हैं..जो करीब 300 किलोमीटर यात्रा के बाद उभर आए है। ताज्जुब की बात हैं कि भीड़ कहने वाली किसी भी आंख को ना तो इनका छाला दिखाई दे रहा है..और ना ही छाले से उभरे दर्द को चेहरों पर पढ़ने का प्रयास ही किया है। एक पत्रकार के लिए किसी खबर की भूमिका के लिए इतना सब कुछ काफी है। लेकिन आगे बढ़ने से पहले इन आदिवासियों के दर्द को समझने के लिए वैभव बेमेतरिहा की इस कविता को सुनना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि लखीमपुर खीरी की घटना से उपजे दर्द को पूरे देश ने सुना..लेकिन भविष्य का कत्ल किस तरह किया जा रहा है..इसे कोई भी ना तो देखने को तैयार है और ना ही किसी की नजर ही जा रही है।
 
लखीमपुर का दर्द देखने वालों
हसदेव की पीड़ा भी देख लीजिए
देख लीजिए पाँव पड़े छालों को
बेहाल अपने घरवालों को

वो जो फतेहपुर से चलकर आ रहे है
वो जो अडानी का सच बता रहे हैं
सुन लीजिए उन्हें, उन चुनने वालों को
बेहाल अपने घरवालों को

सत्ता में आने से पहले सब तो आए थे
भूल गए क्या ? कहाँ दरबार लगाए थे !
अब क्या मुँह दिखाओगे आदिवासी लालों को
बेहाल अपने घरवालों को

देश में दर्द सबका एक जैसा है
कहीं खीरी, कहीं सिलगेर जैसा है
कहीं किसान मारे जा रहे हैं ?
कहीं आदिवासी ?
सरकारें सियासत में उलझी रहती
लोकतंत्र को दे फांसी
छोड़ो…अब क्या कहे, क्या पूछे ?
रहने ही देते है… सारे सवालों को
बेहाल अपने घरवालों को

        भविष्य की जद्दोजहद के लिए सड़क पर उतरे भोलेभाले आदिवासियों को समर्पित वैभव बेमैतरिहा की यह कविता बहुत कुछ बोलती है। अब आईए देखते और सुनते हैं क्या हैं..माजरा…
 
             
       हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति  की ओर से हसदेव बचाओ पदयात्रा निकाली गई है। 4 अक्टूबर को सरगुजा के फतेहपुर से शुरू हुई यह पदयात्रा.. 13 अक्टूबर को रायपुर पहुंचेगी। सरगुजा से रायपुर के लिए निकली दस दि्न की यह पदयात्रा हसदेव नदी, जंगल ,पर्यावरण ,आजीविका,संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए आयोजित की गई है। जिसमें हसदेव अरण्य क्षेत्र की सभी कोयला खनन परियोजनाओं को निरस्त करने के साथ ही कई मांगें शामिल हैं।
 
                   हसदेव अरंड बचाओ संघर्ष समिति की मांग है कि हसदेव अरण्य क्षेत्र की सभी कोयला खनन परियोजनाएं निरस्त की जानी चाहिए। बिना ग्रामसभा सहमति के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत किए गए सभी भूमि अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए। पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से पहले ग्राम सभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू किया जाए। परसा कोल ब्लॉक के लिए फर्जी प्रस्ताव बनाकर हासिल की गई स्वीकृति को तत्काल निरस्त कर ग्राम सभा का फर्जी प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी और कंपनी पर एफ आई आर दर्ज की जाए। इसी तरह घाटबर्रा के निरस्त सामुदायिक वनाधिकार को बहाल करते हुए सभी गांव में सामुदायिक वन संसाधन और व्यक्तिगत अधिकारों को मान्यता दी जाए। संघर्ष समिति पेशा कानून 1996 का पालन करने की मांग भी कर रही है।
 
                          हसदेव बचाओ पदयात्रा 10 दिन तक चलेगी। इसकी शुरुआत 4 अक्टूबर को सरगुजा जिले के फतेहपुर से हुई। जहां से सूरजपुर जिले के तारा, टूटा होते हुए कोरबा जिले के मदनपुर मोरगा से होकर केंदई में पहला दिन समाप्त हुआ। 5 अक्टूबर को केंदई से निकलकर नवापारा, परला, चोटिया ,लमना ,बंजारी डांड, मडई, गुरसिया पहुंची। 6 अक्टूबर को कोनकोना, पोड़ी उपरोड़ा, ताना खार होते हुए कटघोरा पहुंचेगी । यह पदयात्रा कोरबा जिले के कटघोरा पाली से होते हुए 9 अक्टूबर को रतनपुर से गतौरी होते हुए बिलासपुर पहुंची। इस तरह 13 अक्टूबर को यानि दो दिन बाद यह यात्रा रायपुर पहुंचेगी। रायपुर में 14 अक्टूबर को सम्मेलन होगा। संघर्ष समिति के लोग मुख्यमंत्री – राज्यपाल से इस दौरान मुलाकात करेंगे।
 
                            हसदेव अरंड बचाओ संघर्ष समिति सदस्य डॉ. आलोक शुक्ला का कहना है कि कोयला खदानों के लिए जल- जंगल- जमीन -पर्यावरण का विनाश बंद होना चाहिए। यह इलाका संविधान की पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में आता है। बावजूद इसके केंद्र और राज्य सरकार आदिवासियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों की रक्षा करने की बजाय…खनन कंपनियों के साथ मिलकर लोगों को जंगलों और जमीनों से उजाड़ने का काम कर रहे हैं। पूरी दुनिया में मंडरा रहा जलवायु परिवर्तन का संकट… धरती पर हर प्राणी के अस्तित्व का संकट बन गया है। तब भी सरकारें खनन कंपनियों के साथ मिलकर हसदेव अरण्य के समृद्ध और विशाल वन क्षेत्र का विनाश करने के लिए आतुर हैं। हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा और सरगुजा जिले में एक विशाल और समृद्ध वन क्षेत्र है। जैव विविधता से परिपूर्ण हसदेव नदी और उस पर बने मिनीमाता बांगो बांध का कैचमेंट है। यह बांध जांजगीर-चांपा ,कोरबा, बिलासपुर के नागरिकों और खेतों की प्यास बुझाता है। यह हाथी जैसे महत्वपूर्ण वन्य प्राणियों कारावास और उनके आवाजाही के रास्ते का भी वन क्षेत्र है। 
 
                             संघर्ष समिति के महत्वपूर्ण सदस्य सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 2015 में हसदेव क्षेत्र की 20 ग्राम सभाओं ने प्रस्ताव पारित कर…. केंद्र सरकार को भेजा था कि हमारे इलाके में किसी भी कोल ब्लॉक का आवंटन या  नीलामी नही की जाए। यदि ऐसा किया गया तो..पुरजोर विरोध करेंगे और किसी भी कीमत पर अपने जंगल जमीन का विनाश नहीं होने देंगे। अपने जल -जंगल- जमीन- आजीविका और संस्कृति की रक्षा करने का हमारा संवैधानिक अधिकार है। पेशा कानून और वन अधिकार मान्यता कानून…हमें यह अधिकार देता है। बावजूद इसके कारपोरेट परस्त मोदी सरकार ने हमारे क्षेत्र में गैरकानूनी तरीके से 7 कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों की कंपनियों को कर दिया है। इन राज्य सरकारों ने नागरिकों के हितों को ताक में रखकर बाजार मूल्य से भी अधिक दरों पर अडानी समूह से कोयला लेने के अनुबंध किए…जो एक नया कोयला घोटाला है।
 
               सुदीप श्रीवास्तव ने यह भी याद दिलाया है कि 2015 में..तात्कालीन समय कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मदनपुर मैं चौपाल लगाकर आदिवासियों को भरोसा दिलाया था.. कि उनकी पार्टी संघर्ष में आदिवासियों के साथ खड़ी है। लेकिन कांग्रेस पार्टी राज्य में सत्ता में होने के बाद भी अपने वादे से मुकरते हुए मोदी सरकार की सहयोगी बन गयी। अडानी और बिरला कंपनियों के लिए हमसे हमारे जंगल जमीन को छीन रही है। ग्रामीणों ने 2019 में फतेहपुर में 75 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया। लेकिन राज्य सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इस बारे में अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। इसके उलट अदानी कंपनी के मुनाफे के लिए माइनिंग का काम शुरू करवाने के लिए शासन-प्रशासन मदद कर रहा है। ऐसी हालत में हम अपने जल, जंगल, जमीन पर निर्भर हमारी आजीविका ,हमारी संस्कृति और पर्यावरण को बचाने के लिए अहिंसक सत्याग्रह और आंदोलन करने के लिए बाध्य हैं।

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