बिलासपुर। इन दिनों दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी जितनी पेचीदा है और इसे समझ पाना ज़ितना मुश्किल है। कुछ वैसी ही पेचीदगी छत्तीसगढ़ के 18 प्लस टीकाकरण अभियान में भी नजर आती है और इसका सिस्टम भी समझ से परे है। जिसका फायदा जरूरतमंद लोगों को मिल पा रहा है या नहीं यह समझ पाना भी कठिन हो रहा है। जिस तरह बिलासपुर शहर के आसपास इलाकों में छोटे-छोटे गांव में बने टीकाकरण केंद्रों में शहर के लोगों की भीड़ पहुंच रही है, उससे लग रहा है कि टीकाकरण अभियान की पेचीदगी का पूरा लाभ उठाते हुए शहर के लोग गांव के लोगों का हक मारकर उनका वैक्सीन भी लूट रहे हैं। आंकड़ों के दम पर लोगों के सामने भ्रम जाल बनाने की कोशिश में लगे सिस्टम के लोगों को भले ही समझ में ना आए । लेकिन गांव के लोगों की फिक्र करने वालों को यह बात समझ में आ रही है कि वैक्सीनेशन में एक बार फिर गांव के लोग अपने हक से वंचित हो रहे हैं।
कोरोना की दूसरी लहर का कहर शुरू होने के बाद शहरी इलाकों में जिस तरह की स्थिति है, उससे लेकर बहुत ही खबरें आती रही हैं। टेस्टिंग से लेकर अस्पतालों में बेड के लिए मरीज- परिजन का भटकना, अस्पतालों की बदहाली का शिकार होना,एंबुलेंस व शव वाहन के लिए भटकाव और अब वैक्सीनेशन को लेकर चल रही मारामारी की खबरें भी लगातार आ रही हैं। लेकिन दूसरी तरफ गांव की हालत पर भी अब मीडिया में बड़ी चर्चा होने लगी है। खबर यहां तक है कि गांव में ढाई सौ से तीन सौ प्रतिशत तक कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है। लेकिन गांव में जरूरत के हिसाब से टेस्टिंग नहीं हो पा रही है। गांव के लोगों के साथ बड़ी दिक्कत यह है कि वहां जागरूकता की भी कमी है और स्वास्थ्य सुविधाएं भी काफी कम है। जिससे लोग महामारी के शिकार हो रहे हैं। झोलाछाप डॉक्टरों के शिकार होने वाले लोगों की खबरें भी आती रही हैं। मीडिया में लगातार छप रही इन खबरों के हिसाब से अब तक किसी ठोस पहल या इंतजाम की जानकारी नहीं मिली है।
लेकिन अब वैक्सीनेशन के दौरान गांव में मची अफरा-तफरी की खबरें सामने आने लगी हैं। बिल्हा इलाके के धमनी गांव में रहने वाले पत्रकार साथी अजय शर्मा ने आसपास के टीकाकरण केंद्रों के माहौल को देखकर जो जानकारी दी है, वह चौंकाने वाली है। जिसके मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में बने शहर से लगे ग्रामीण क्षेत्रों में बने टीकाकरण केंद्रों में गांव के लोगों की बजाए शहरी लोगों की भीड़ अधिक दिखाई दे रही है। वैसे भी छत्तीसगढ़ सरकार कि टीकाकरण नीति के हिसाब से तीन वर्गों में बांटकर वैक्सीनेशन किया जा रहा है। इसके लिए अलग-अलग सेंटर बनाए गए हैं। बिल्हा ब्लॉक के कड़ार गांव में बने टीकाकरण केंद्र का हाल बताते हुए उन्होंने जानकारी दी है कि वैक्सीनेशन सेंटर के सामने देखा जा सकता है कि आसपास शहर के लोग पहुंच रहे हैं और टीके लगवा कर वापस लौट रहे हैं। वैक्सीनेशन सेंटर के सामने खड़ी चमचमाती -महंगी कारों को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जिसकी तस्वीरें भी अजय शर्मा ने हमें मुहैया कराई हैं। दरअसल शहर के टीका केंद्रों में भीड़ अधिक उमड़ रही है और खासकर नौजवानों में उत्साह अधिक दिखाई दे रहा है। लेकिन जरूरत के हिसाब से वैक्सीन न मिलने के कारण नौजवानों को वैक्सीनेशन सेंटर से निराश लौटना पड़ता है।शहर में वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने की वज़ह से टीकाकरण स्थगित किए जाने की ख़बरें भी आ रहीं हैं। लगता है शहरी लोगों ने इसका एक अच्छा विकल्प खोज लिया है और वह अपनी गाड़ियों में शहर के किनारे के गांव में बने वैक्सीनेशन सेंटर तक पहुंचते हैं । जहां से जहां उन्हें आसानी से टीका उपलब्ध हो जाता है। गौर करने की बात यह है कि भुगतान करने की क्षमता रखने वाले सक्षम लोग आसानी से टीका लगवा सकें ,इसके लिए प्राइवेट अस्पतालों में भी शुल्क सहित टीकाकरण की बात कही गई है। लेकिन यही सक्षम लोग शहर के आस-पास के गांव में जाकर वहां रहने वाले ग्रामीणों का हक मारेंगे और उनके हिस्से का टीका खुद लगाएंगे तो इससे दिक्कत बढ़ेगी ऐसा लगता है।
जानकारी यह भी मिली है कि रायपुर रोड में बिलासपुर शहर से लगे अमसेना जैसे कई वैक्सीनेशन सेंटर में भी शहर के लोग जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं। जानकार मानते हैं कि वैक्सीन लगाने के मामले में कोई दायरा तय नहीं किया गया है और आधार कार्ड जैसी जानकारी पेश कर कोई भी कहीं से टीका लगवा सकता है। ऐसे में शहर के आस-पास के गांव में टीका लगवाने वालों का रजिस्ट्रेशन देख कर सही स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। टीकाकरण के मामले में दूसरी बड़ी परेशानी यह है कि जानकारों के हिसाब से कोरोना संक्रमण होने की स्थिति में टीका लगवाना सही नहीं माना जा रहा है। लेकिन टीका लगाने से पहले कोरोना की जांच का कोई सिस्टम नहीं है। इससे खासकर गांव के इलाकों में दिक्कतें बढ़ सकती हैं। इस पर भी गौर किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है ।
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