VIDEO-जुड़वा बच्चे पैदा हुए,वह खुश थी और परेशान भी,पर वो 70 घण्टे का सफ़र,बच गयी दो मासूम जान,ओरछा के स्वास्थ्य साथी का हौसला लाया रंग

Shri Mi
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नारायणपुर। जुड़वा बच्चे पैदा हुए थे। वह खुश थी और परेशान भी, क्योंकि बच्चों के हिसाब से मुझे अपनी दिनचर्या को सेट करना पड़ा। सुबह 9 बजे पहले नंबर के बच्चे को दूध पिलाने का सही समय था और उसके बाद दूसरे नंबर के बच्चे को। इसी प्रकार एक बजे पहले नंबर के बच्चे को दूध पिलाने का समय था और उसके बाद दूसरे नंबर के बच्चे का। उसकी मदद के लिए सास थी, जिसको अपनी नींद पूरी करने के लिए दस घंटे की जरूरत होती थी । इसलिए वह बरामदे में सोती थी। हां, जब बच्चे सो रहे होते, तो वे कम परेशान करते थे। बीच-बीच में दूध पिलाने के लिए उन्हें तकलीफ देकर जगाना पड़ता था।

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कुदरत के इन तोहफों को पाकर मैं वाकई बहुत खुश थी। पर ग़रीबी और अनपढ़ की मार कहें या समुचित पोषण आहार की कमी जिससे बच्चे का बजन नही बढ़ रहा था । वह हेरान-परेशान थी । यह बात सोनाय पति सन्नूराम की है । जिसने माह फ़रवरी के बीच में घर पर जुड़वा बच्चों आरोही -आदित्त को जन्म दिया । माँ-बाप ने यही मॉडर्न नाम दिया ।

यह हक़ीक़त भरी कहानी छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित ज़िला नारायणपुर के ओरछा ब्लॉक के धुर नक्सल हिंसाग्रस्त गाँव मूसेर की है । जहाँ जाने के लिए बड़ा हौसला और जिगर चाहिए होता है । मुसेर गाँव की अबादी बमुश्किल 70 होगी । यहाँ सबसे नज़दीक पंचायत कच्चपाल है । यहाँ तक बारिश से पहले तक अनुभवी वाहन चालक के ज़रिए जैसेतैसे छोटी गाड़ी से पहुँचा जा सकता है । असली कहानी यही से शुरू होती है । कच्चापाल से मुसेर लगभग 35-40 कि.मी.दूर है । ग्राम कच्चापाल के स्वास्थ्य साथी कमलेश नाग और सुकदेव को खबर लगी कि मुसेर के जुड़वा अतिकुपोषित बच्चे है ।

माँ परेशान है ओर बच्चों को लेकर व्याकुल भी । पोषण पुनर्वास केंद्र का सहारा नही मिला तो जीवित नही रहेंगे । दोनो स्वास्थ्य साथी ने बच्चों की जान बचाने की चिंता सताने लगी। मगर मुसेर जाना जोखिम,दर्द भरा और डरावना था । सूरज की तेज तपन का एहसास और परिवार को कौनसलिंग करना जैसे टेढ़ी खीर समान नज़र आ रहा था । आनाजाना लगभग 70 किलोमीटर वह भी जंगल-पहाड़ी रास्ता । पर बच्चों की जान बचना उनके निष्ठाऔर कर्तव्य में शामिल था ।

उन्होंने पोषण पुनर्वास केंद्र की महिला स्वास्थ्यकर्ता श्रीमती निरमणि ठाकुर को राज़ी किया । तीन दिन सफ़र पूरा कर बच्चों और माँ को कुंदला पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया । जहाँ अभी बच्ची की हालत स्थिर है ।नारायणपुर जिले ख़ासकर ओरछा ब्लॉक ( अभूझमाड) का स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला कोरोना के अलावा कुपोषणऔर मलेरिया जैसी जान लेवा बीमारी से लोगों को बचाने का काम कर रहा है । ज़िला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दुर्गम चारों ओर से घने जंगल-पहाड़ों घिरे गाँव मुसेर में 70 दिन के गंभीर कुपोषित जुड़वा बच्चों को तीन दिन 70 घण्टे पैदल चलकर माँ-बच्चों को कुंदला लाकर पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआर.सी) में रखा गया ।

जहां बच्चों की बेहतर देखभाल हो रही है । जुड़वा बच्चों में एक लड़काऔर एक लड़की है । लड़की का बजन काफ़ी क़म है । वह काफ़ी गम्भीर कुपोषण की शिकार है । केंद्र नही लाते उसका बचना मुश्किल था । अब माँ और बच्चों की हालत ठीक हो जाएगी ।
राज्य सरकार बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने पोषण आहार से लेकर उपचार तक की सेवाएं मुहैया करा रही है। जिले में संचालित एनआरसी (पोषण पुनर्वास केन्द्र) कुपोषित बच्चों के चिकित्सकीय देखभाल के साथ समुचित पोषण आहार प्रदान कर सुपोषित कर तंदुरुस्त कर रहा है। पिछले एक वर्ष में जिले के 400 कुपोषित बच्चे पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती के बाद सुपोषित हुए हैं।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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