समाजसेवी राधेश्याम शर्मा ने अपनी बात को खुलकर रखा। उन्होने कहा कि जनसुनवाई पूरी तरह से फर्जी है। जनसुनवाई के नाम् पर भोली भाली जनता के साथ मजाक किया जाता है। आश्चर्य की बात है कि प्रभावित ग्राम पंचायतों में एआईए रिपोर्ट भी नहीं पेश किया गया। जब रिपोर्ट ही नही रखा गया तो लोगो को कैसे जानकारी होगी कि उद्योग के विस्तार से कितना लाभ या नुकसान है।
अपने संबोधन में राधेश्याम ने कहा कि उद्योग से कितना प्रदूषण होगा जब इस बात की जानकारी नही है तो भला ग्रामीण अपनी बात रखेंगे कैसे। समाजसेवी राधेश्याम ने बताया कि जिला प्रशासन और पर्यावरण विभाग ने ग्रामीणों को संवैधानिक अधिकार से दूर रखा है। जनसुनवाई में उपस्थित सभी अधिकारियों के खिलाफ 420 का मामला दर्ज होना चाहिए।
याद नबीं को कल..खामियाजा भुगतना होगा
जनसुनवाई के खिलाफ पिछले कई दिनों से जनता के बीच सक्रिय एक्टिविस्ट दिलीप अग्रवाल ने कहा कि पावर प्लान्ट की स्थापना की बुनियाद ही गलत है। जिस जगह पर उद्योग स्थापित किया गया..दरअसल वह स्थान उद्योग के लिए आरक्षित है ही नहीं। प्लान्ट के विस्तार से खेती की जमीन पुरी तरह से बरबाद हो जाएगी। दर्जन से अधिक गांव के लोग प्रदूषणजन्य बीमारी के शिकार हो जाएंगे। बेशक हम इस समय हम बरबादी की कल्पना करने में असहाय है। लेकिन इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ेगा।
बताएं कब दिया मुआवजा
दिलीप ने कहा कि हम विस्तार का विरोध करते हैं। किसान नेता सुरेंद्र कश्यप ने कहा की सत्या पावर प्लान्ट को स्थापित हुए एक दशक से अधिक हो चुका है। प्लांट के ठीक पीछे उनकी जमीन है। हर साल फसल खराब होता है। इसकी मुख्य वजह प्लांट का निकलने वाली राख है। फसल नुकसान होने पर आज मुआवजा दिए जाने समेत बड़ी बड़ी बातें कहीं जा रही है। प्लान्ट बताए कि कंपनी ने फसल खराब होने पर कब मुआवजा दिया है। जबकि उन्होने अपनी पीड़ा को लेकर हर दरवाजे पर नाक रगड़ा है। बेहतर होता कि विस्तार करने की वजाय प्लान्ट को औद्योगिक क्षेत्र में शिफ्ट कर दिया जाए।
विधायक की अनुपस्थिति दुखद
प्लान्ट विस्तार को जिला पंचायत सभापति अंकित गौरहा ने कहा कि प्लान्ट विस्तार की महत्वपूर्ण जनसुनवाई हो रही है। आश्चर्य की बात है कि जनसुनवाई में ना तो स्थानीय विधायक हैं और ना ही उनका कोई प्रतिनिधि ही मौजूद है। जब सभी महत्वपूर्ण लोग अनुपस्थित है तो उनकी उपस्थिति का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। ऐसी सूरत में जब स्थानीय विधायक गंभीर नहीं है तो उनका विरोध करने का सवाल ही नहीं उठता है।
जाएंगे कोर्ट..करेंगे विऱोध
समाज सेवी राधेश्याम ने बताया कि जनसुनवाई के दौरान किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया। जब नियमों को ताक पर ही रखकर जनसुनवाई करना है तो इस आयोजन को भी नहीं कराना चाहिए। दरअसल अधिकारी उद्योगपति के साथ हैं। जनसुनवाई में जनता दो दूर..किसी गांव का सरपंच ही मौजूद नहीं है। समझना आसान है कि ऐसा क्यों है। हम सत्या पॉवर प्लान्ट के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे।
कोई कारण नहीं कि करें विरोध
बेलतरा क्षेत्र के कांग्रेस नेता त्रिलोक श्रीवास ने कहा कि यदि प्लान्ट नियमों और निर्देशों का पालन करता है तो हमारा समर्थन है। लेकिन प्लान्ट को बताना होगा कि पिछले एक दशक से उन्होने कितना मुआवजा दिया। सीएसआर मद कितना खर्च किया। यदि विस्तार के साथ नियमों का पालन किया जाता है तो कोई कारण नहीं होगा कि हम प्लान्ट विस्तार का विरोध करें।
शांति पूर्ण हुई जनसुनवाई
प्लान्ट प्रबंधन प्रमुख शिखर अग्रवाल ने कहा कि पानी बरसने के कारण उम्मीद से बहुत कम लोग जनसुनवाई में शामिल हुए। सभी को सूचित किया गया था। उपस्थित सभी लोगों ने अपनी बातों को गंभीरता से रखा है। सभी निर्देशों को हम गंभीरता से लेंगे
सबकी सहमती में हमारी सहमति
जनसुनवाई में मौजूद कांग्रेस नेता और बेलतरा के छाया विधायक राजेन्द्र साहू ने कहा कि गांव,किसान और सरपंचों की सहमति में ही हमारी सहमति है। ज्यादातर लोग नहीं यानि प्लान्ट को लेकर उनकी सहमति है। यदि निर्देशों का सही पालन होता है..किसानों को मुआवजा और युवाओं को रोजगार मिलता है तो किसी को आपत्ती नहीं है। हमारी यह भी मांग है कि सीएसआर मद का सही उपयोग किया जाए।
इस दौरान जनसुनवाई में मौजूद कमोबेश सभी लोगों ने अलग अलग कारणों का हवाला देकर प्लान्ट विस्तार का विरोध किया। हां लोगों के विरोध में जोश कम और उत्साह ज्यादा देखने को मिला। यानि समाजसेवी राधेश्याम के अलावा किसी ने कोई खास चुनोती नहीं दिया। दिलीप अग्रवाल इस दौरान काफी कुछ बोले। जहां अंकित गौरहा ने विधायक की अनुपस्थिति को काफी गंभीरता से लिया। तो स्थानीय नेता त्रिलोक श्रीवास ने किसान हित में शर्तों का हवाला देकर अपनी बातों को ऱखा। कुल मिलाकर उपस्थित सभी लोगोंं ने प्लान्ट प्रबंधन को जिम्मेदारियों का पाठ पढाते हुए सीधे तौर पर प्लान्ट का विरोध नहीं किया।