बिलासपुर—- छत्तीसगढ़ी भाषा को लेकर लम्बी लड़ाई लड़ रहे भाषाविद् नन्दकुमार शुक्ला का मानना है कि देश की तरह ही छत्तीसढ़ को भी आज तक सांस्कृतिक आजादी नहीं मिली है। बेशक देश को 1947 में राजनैतिक आजादी मिल गयी। लेकिन आज तक हम अंग्रेजियत के गुलाम है। ठीक उसी तरह हमें मध्यप्रदेश से राजनैतिक छुटकारा तो मिल गया। लेकिन सांस्कृतिक आजादी की नहीं मिली है। यह आजादी बिना छत्तीसगढ़ी भाषा में पढ़ाई लिखाई के सम्भव नहीं है। शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई हमारा कानूनी अधिकार है। जब तक छत्तीसगढ़ी भाषा में पढ़ाई लिखाई नहीं होगी..तब अन्य प्रदेश की तरह छत्तीसगढ़ की पहचान मुश्किल है।
छत्तीसगढ़ी भाषा के साथ सौतेला व्यवहार किए जाने को लेकर नाराज और दुखी नन्दकुमार शुक्ला ने कहा कि इसके लिए सभी सरकारें जिम्मेदार हैं। कभी भी छत्तीसगढ़ी भाषा में पड़ाई लिखाई की बात को गंभीरता से नहीं लिया गया। बहकाने के लिए कक्षा एक के पाठ्यक्रम में कुछ पाठ छत्तीसगढ़ी के डाल दिए गए हैं। कहा गया है कि इसके माध्यम से हिन्दी को संमझा जाएगा।
नन्दकिशोर शुक्ला ने बताया कि हमारे प्रदेश के मुखिया ना केवल समझदार और ठेठ छत्तीसगढ़ी भी है। उन्हें अपने छत्तीसगढ़ की परम्पराओं में गहरी आस्था है। उन्होने दो बार अलग अलग मंच से एलान किया है कि स्थानीय मात्र भाषा में ही पढ़ाई होगी। लेकिन आज तक कोई ठोस पहल नहीं किया गया है। फिर भी विश्वास है कि मुख्यमंत्री अपने वादे को गंभीरता से लेंगे। हमारे कुछ साथी छत्तीसगढ़ी भाषा को न्याय दिलाने कोर्ट में याचिका भी दायर किए हैं।
जानकारी देते चलें कि भाषाविद् नन्दकुमार शुक्ला पिछले 20 सालों से छत्तीसगढ़ी भाषा को मान सम्मान दिलाने संघर्ष कर रहे है। उन्हे काफी कुछ समफलता भी मिली है। लेकिन उन्होने संकल्प लिया है कि जब तक छत्तीगढ़ की पहचान छत्तीसगढ़ी संस्कृति से नहीं होती है। तब तक अपना संघर्ष जारी रखेंगे।