TS Singhdeo ने कहा-फिर साजिश..आरोप लगाने से पहले कोर्ट का फैसला,दस्तावेज देख लेते

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर–अम्बिकापुर स्थित सिंहदेव परिवार से जुड़े तालाब का विवाद नए स्वरूप में सामने आया है।  इसके चलते एक बार फिर से प्रदेश की राजनीति गरम हो गयी है। अम्बिकापुर निवासी आलोक दुबे ने कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद भी कलेक्टर से तालाब को लेकर शिकायत की है। 

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         जानकारी देते चलें कि साल 1996 में कलेक्टर के सामने अम्बिकापुर निवासी आलोक दुबे ने सूख चुके तालाब को लेकर शिकायत की थी। शिकायत पर तात्तकालीन कलेक्टर ने सुनवाई के बाद सिंहदेव परिवार के पक्ष में फैसला दिया था। तात्कालीन कलेक्टर के फैसले को आलोक दुबे ने साल 2019 में एनजीटी में चुनौती दी।

 सिंहदेव के पक्ष में फैसला

              एनजीटी ने मा्मले में सुनवाई के बाद आलोक दुबे की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने 7 मार्च 2019 के फैसले में प्रकरण ख़ारिज करते हुए कहा कि कलेक्टर से आए पैसले के करीब 21 साल बाद चुनौती दी गयी है। फैसाला 5 नवम्बर 1996 में आया। जिसे 2017 में पहली बार एनजीटी में चुनौती दी गयी। 

गुणदोष के आधार पर कलेक्टर का फैसला सही

                   एनजीटी कोर्ट ने कहा कि गुण दोष के आधार पर कलेक्टर ने फैसला सही दिया है। तालाब पहले ही सूख कर 31.62 एकड़ तक सिकुड़ चुका था। खसरा नम्बर 3466, 3467 और 3469 में तालाब का अस्तित्व सिर्फ़ राजस्व रिकार्ड में ही है। इस प्रकार एनजीटी कोर्ट कलेक्टर के आदेश में किसी प्रकार की खा्मी नहीं पाता है। जमीन को पाटा भी नहीं गया है और ना ही सिंहदेव परिवार ने इसे हासिल कर कुल गलत किया है।

पुनर्विचार याचिक खारिज

                   आलोक दुबे ने एनजीटी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए फरवरी 2019 में याचिका पेश किया। कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिका 48 दिनों की देरी से पेश किया गया है। साथ ही कोर्ट ने दुहराया कि कलेक्टर के आदेश में किसी प्रकार की कोई  ख़ामी नहीं है। इसलिए याचिका को पुनर्विचार योग्य नहीं मानते हुए खारिज किया जाता है। क्योंकि इसमें वाद योग्य कुछ  भी नहीं है।

फिर से साजिश..

                वहीं मामले में रायपुर स्थित एअरपोर्ट में एक सवाल के जवाब में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव ने कहा है कि ऐसा वही लोग कर रहे हैं..जिन्होने पिछली बार साजिश किया था। लोकतंत्र है..सभी को कहने का अधिकार है। लेकिन पहले दस्तावेज तो देख लिए होते। कोर्ट ने क्या कुछ फैसला किया है। बाप दादा की सम्पत्ति है। रियायत सैटलमैन्ट के समय क्या कुछ और कितना पत्र  व्यवहार हुआ। इस बात की बिना किसी जानकारी के कुछ कह देना और आरोप लगाना उचित नहीं है। मामला कोर्ट से बाहर आने के बाद भी जानबूझकर भ्रम फैलाया जा रहा है।

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