बिलासपुर— एटीआर मतलब अचानकमार टाइगर रिजर्व ही होता है। मतलब टाइगर के लिए रिजर्व क्षेत्र। क्षेत्र में जानवरों के अलावा दो पदीय प्राणी मतलब इंसान भी रहता है। जाहिर सी बात है कि संघर्ष भी होता है। संघर्ष अच्छी जिन्दगी जीने की। चूंकि सरकार हमेशा कहती है..सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास…। इसलिए मान सकते हैं कि सरकार का सबका साथ..सबका विकास और सबका विश्वास वाला मंत्र आदिवासियों के लिए भी है। लेकिन असर कुछ नहीं है।
आधी शताब्दी से चाहे केन्द्र हो या राज्य सरकार..सभी को आदिवासी समाज की चिंता है। केन्द्र ने तो आज से बीस साल पहले आदिवासी समाज के समग्र विकास को केन्द्र में रखकर आदिवासी मंत्रालय ही खोल दिया। आदिवासियों को इसका कितना फायदा हुआ..बताने की जरूरत नहीं है। हां चिंता करने वालों का जरूर तेजी से विकास हुआ है। आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधाओं को मोहताज है। उसके हिस्से में ना तो शिक्षा है और ना ही स्वास्थय की सुविधा। दरअसल तमाम चिंतकों के बीच आदिवासियों की जिन्दगी आज भी चिंता में डालने वाली है।
पिछले दिनों एक ऐसा ही मामला एटीआर क्षेत्र स्थित लोरमी विधानसभा क्षेत्र के घमेरी गांव से सामने आया है। सर्प दंश की शिकार बैगा महिला भानमति को लोग खटिया पर बैठाकर अस्पताल पहुंचे। खटिया को कांधा देने वालों ने खतरनाक लम्बी चौड़ी बिना पुल की बरसाती नदी को पार किया। चूंकि भानमति बैगा जनजाति होने के कारण राष्ट्रपति की दत्तक पुत्री है। इसलिए उसे एम्बुलेन्स की जगह खटिया की डोली से इलाज के लिए अस्पताल लाया गया।
पुल नहीं होने के कारण परिजनों को हरहराती बरसाती नदी की धार से दो दो हाथ कररना पड़ा। कंधे पर खटिया और खटिया पर सवार मौत और जीवन से संघर्ष करती भानमती ने हार नहीं मानी। डाक्टरों की माने तो मरीज की स्थित काफी नाजुक है। जहर निकालने का प्रयास किया जा रहा है। यदि नदी पर पुल और गांव में स्वास्त्य केन्द्र के साथ एम्बुलेन्स की सुविधा होती तो..शायद भानमति के सामने जीवन और मरण की स्थिति नहीं आती।
स्थानीय आदिवासी समाजसेवी सुभाष परते ने बताया कि देश और राज्य में आदिवासियों के नाम पर चिंता करने वालों का तेजी से विकास हो रहा है। जनसेवकों को आदिवासियों से कहीं ज्यादा जानवरों की है। 50 साल पहले भी आदिवासी क्षेत्र में स्वास्थ्य की सुविधा नहीं थी…और आज भी नहीं है। बैगा जनजाति से होने के कारण भानमति बैगा राष्ट्रपति की दत्तक पुत्री है। सच तो यह है कि आदिवासी समाज राष्ट्रपति का दत्तक नहीं बल्कि सौतेला पुत्र है। आदिवासियों के हितों की बातें करना सरकार की जिम्मेदारी है। साथ ही नेताओं का अपना हित भी है।
सुभाष ने बताया कि एटीआर में स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर केवल मजाक चल रहा है। ऐसे में एम्बुलेन्स सुविधा का सवाल ही नहीं उठता है। देखते हैं सर्प दंश और लिजलिजे सिस्टम की शिकार भानमति बचती है या नहीं…। कुछ घंटों में स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन इतना तो निश्चित है कि घटना के बाद जमकर हंगामा होगा। राष्ट्रपति के दत्तक पुत्रों के लिए गंभीर बातें कहीं जाएंगी। और फिर आदिवासियों के लिए नई योजना का एलान भी कर दिया जाएगा। इसका फायदा आदिवासी समाज को मिले या नहीं मिले। लेकिन सिस्टम के नीलगायों को जरूर मिलेगा।