अपनी हाईट जैसी लम्बी लक़ीर खींचने विजय पाण्डे को मौक़ा…..! क्यों “ न्यूट्रल मोड ” में हैं कांग्रेस के दोनों खेमे…?

Chief Editor
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( गिरिज़ेय ) वैसे तो सियासत में हर एक फैसला किसी को खुश और किसी को नाखुश कर जाता है…। लेकिन कभी-कभी कुछ ऐसे फैसले भी हो जाते हैं, जिन्हें सामने रखकर कोई न तो  खुश हो पाता है और ना अपनी नाखुशी का इज़हार कर पाता है । कांग्रेस संगठन और खासकर बिलासपुर में शहर कांग्रेस अध्यक्ष के ओहदे पर विजय पांडे की ताजपोशी को कुछ इस तरह का ही फैसला कहा जा सकता है। आपसी झगड़े में डूबी हुई बिलासपुर की कांग्रेस के अलग-अलग ख़ेमें इस फैसले पर कुछ इसी तरह के न्यूट्रल मोड में दिख़ाई दे रहे  हैं । इसकी वजह पर आगे बात करेंगे। लेकिन एक दूसरे के खिलाफ डटे हुए कांग्रेसी खेमों कि इस स्थिति के बरक्स कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता विजय पांडे को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने  के बाद उम्मीद कर रहे हैं कि अब शायद शहर में कांग्रेस की एक ऐसी  लाइन खड़ी होगी। जिसमें खेमेबाज़ी को अलग क़र पार्टी को बेहतर कल की ओर ले जाने की ठोस पहल हो सकती है। क्योंकि विजय पांडे एक ऐसे बिलासपुरिया कांग्रेसी हैं ….जो स्टूडेंट पॉलिटिक्स के समय से सक्रिय रहे हैं। वे पहले भी शहर  कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। बिलासपुर नगर निगम में पार्षद भी रहे और पूर्व मंत्री स्वर्गीय बीआर यादव के नजदीकी सहयोगी के रुप में लंबे समय तक काम करते हुए बिलासपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी रह  चुक़े हैं। उम्मीद की जा रही है कि वे शहर कांग्रेस को बीआर यादव के दौर में फिर से ले जा सकते हैं। विजय पांडे छत्तीसगढ़ी ब्राह्मण समाज से आते हैं और इस नाते वे आने वाले समय में बिलासपुर की अगुवाई के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में भी देखे जा रहे हैं।

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कांग्रेस में हाल के दिनों में हुए फेरबदल पर नजर डालें तो कई चीजें एक साथ नजर आती हैं। जिसमें अहम् यह भी है कि कांग्रेस संगठन में अब तक जिम्मेदारी संभाल रहे सीएम भूपेश बघेल के नजदीकी समर्थकों को पद से हटाया गया है। छत्तीसगढ़ के स्तर पर इनमें गिरीश देवांगन , अटल श्रीवास्तव , शैलेश नितिन त्रिवेदी जैसे नाम गिनाए जा रहे हैं। हालांकि एक व्यक्ति एक पद  जैसे फार्मूले की दलील सामने रखकर यह भी कहा जा रहा है कि क्योंकि इन पदाधिकारियों के पास निगम- मंडल -बोर्ड के भी पद हैं , लिहाज़ा उन्हें एक जिम्मेदारी से मुक्त किया गया है। लेकिन इस फेरबदल को सामने रखकर अब बिलासपुर शहर की ओर चलते हैं तो यह  साफ़ नजर आएगा कि इस फ़ेरबदल ने बहुत बड़ा उलटफ़ेर कर दिया है।  इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और……. बिलासपुर में लंबे समय से बिना थके  एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोले हुए दो खेमों की लड़ाई जब क्लाइमेक्स में पहुंचने वाली थी ……ठीक उसी समय यह फैसला सामने आया है। जिसमें शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद पर प्रमोद नायक की जगह विजय पांडे की नामजदगी की गई है। हाल के दिनों में जिस तरह सिम्स की घटना को लेकर कोतवाली का घेराव हुआ और उसके ठीक दूसरे दिन शहर के विधायक शैलेश पांडे को 6 साल के लिए निष्कासित करने की सिफारिश वाला प्रस्ताव पारित किया गया। उसके बाद लड़ाई निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी थी। और लोग भी इस लड़ाई के नत़ीज़े पर टक़टक़ी लगाए हुए थे । मगर जिनकी अध्यक्षता में निष्कासन की सिफ़ारिश का प्रस्ताव पास किया गया था , उन्हे ही हटा दिया गया । अब इस प्रस्ताव का क्या होगा किसी को नहीं मालूम…..।  मुमकिन है कि एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले की वजह से शहर कांग्रेस में फेरबदल की तैयारी पहले से ही हो रही हो….. और विजय पांडे को शहर कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की ज़मीन भी पहले से तैयार हो चुकी हो। मगर  शहर कांग्रेस में बड़े बदलाव का यह फैसला जिस समय आया है उस समय लोग अपने हिसाब से इसका विश्लेषण कर रहे हैं। जिसमें यह भी देखा जा रहा है कि इस बड़े बदलाव से शहर कांग्रेस में आखिर किस ख़ेमें की जीत हुई है।

आइए… अब जीत हार के इस गणित को समझने की कोशिश करते हैं। इस नजरिए से देखें तो प्रमोद नायक का हटाया जाना अटल श्रीवास्तव खेमे को एक बड़ा झटका माना जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही शहर  कांग्रेस की राजनीति में इस खेमे का दबदबा रहा है। इस दौरान कांग्रेस ने विपक्ष में रहते हुए सड़क पर संघर्ष भी किया। इसी खेमे के अटल श्रीवास्तव ने कांग्रेस भवन के अहाते में अपने सर पर पुलिस की लाठियां भी खाई। और फिर छत्तीसगढ़ में पार्टी की सरकार बनने के बाद भी यह खेमा कांग्रेस का संगठन चलाता रहा। लेकिन पहली बार पार्टी ने इस खेमे से संगठन की कमान छीन ली है। बताते चलें कि शहर कांग्रेस में फेरबदल की सुगबुगाहट के बीच इस खेमे ने महेश दुबे का नाम आगे किया था। लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी। फिर भी  यह ख़ेमा कांग्रेस संगठन के फैसले से नाखुश नजर नहीं आ रहा है। इसकी वजह शायद यही है कि भले ही  इस खेमे की ओर से पेश किए गए  महेश दुबे के नाम पर मुहर नहीं लग सकी । लेकिन  उन्हें इस बात का भी सुकून है कि विधायक शैलेश पांडे की ओर से पेश किए गए नाम को भी किनारे कर दिया गया। संगठन में फेरबदल की चर्चाओं के बीच यह बात भी सामने आई थी कि शैलेश पांडे ने शहर कांग्रेस अध्यक्ष के लिए शैलेंद्र जयसवाल का नाम आगे बढ़ाया था। लेकिन यह नाम भी फाइनल नहीं हुआ। ऐसे में दोनों खेमे एक दूसरे की हार देखकर खुश भी हो रहे हैं और अपनी ओर से पेश किए गए  नाम को शहर कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में न देखकर नाखुश भी हैं। सियासत में अक्सर कहा जाता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। कुछ इसी फार्मूले के हिसाब से शहर में कांग्रेस के दोनों ही खेमे विजय पांडे  के नाम के साथ दोस्ताना रिश्ता जोड़ रहे हैं। इस तरह के संकेत को बेहतर मानकर ही राजनीतिक प्रेक्षकों को उम्मीद है कि विजय पांडे के शहर अध्यक्ष बनने के बाद शहर में कांग्रेस की राजनीति के दोनों धड़ों को बैलेंस करने में मदद मिल सकती है।

आइए अब इस फैसले से जुड़े और दूसरे एंगल पर भी बात कर लेते हैं। आज के दौर में सियासत के हर फैसले के बाद सामाजिक और स्थानीयता के मुद्दों पर भी गौर किया जाता है। इस नजरिए से देखा जाए तो कांग्रेस ने विजय पांडे के रूप में  छत्तीसगढ़ी  ब्राह्मण समाज के पुराने कांग्रेसी को सामने लाकर संकेत दिया है कि उनकी भूमिका सिर्फ शहर कांग्रेस अध्यक्ष के दायरे में नहीं रहेगी। अलबत्ता आने वाले समय में और भी बड़ी जिम्मेदारियों के लिए उन्हें आजमाया जा सकता है । स्थानीय ब्राह्मण नेता को आगे करने की यह रणनीति आने वाले समय में अपना असर डाल सकती है। और विजय पांडे आने वाले समय में विकल्प के तौर पर सामने लाए जा सकते हैं। बिलासपुर शहर में खासकर पिछले विधानसभा चुनाव के समय सामाजिक समीकरण कुछ इसी तरह बने थे। इसके बाद से शहर में ब्राह्मण समाज को अहमियत दिए जाने की बात समय समय पर होती ही रही है। इस लिहाज़ से विजय पाण्डेय की ताज़पोशी से नए समीकरण के भी संकेत मिल रहे हैं। चुनाव के पहले बचे हुए समय में कांग्रेस इस नरेटिव को भी ज़मीनी स्तर तक पहुंचा सकती है कि बी.आर.यादव के बाद शहर को बिलासपुरिया लोकल एमएलए नहीं मिल सका । विज़य पाण्डेय सभी कोण से इस कमी को पूरा सकते हैं।

हालांकि बिलासपुर जिले को अजीत जोगी का गढ़ माना जाता रहा है। जहां उन्होंने सामाजिक समीकरण के लिहाज से अनुसूचित जाति और पिछड़े तबके के लोगों को हमेशा आगे लाने की राज़नीति  की। इसके बाद कांग्रेस में भी एक तरह से  सामाजिक संतुलन की राजनीति चलती रही है। अभी हाल के दिनों तक सामान्य- पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति का संतुलन जिला ग्रामीण और शहर कांग्रेस में देखा जाता रहा है। इस नजरिए से देखा जाए तो ओबीसी तबके के प्रमोद नायक को हटाकर सामान्य वर्ग से अध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में जिला कांग्रेस ग्रामीण की कमान भी अब किसी ओबीसी या अनुसूचित जाति के कांग्रेसी नेता को सौंपी जा सकती है। वैसे भी अनुसूचित जाति के प्रभाव वाले इस जिले में इस समय एक ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष भी अनुसूचित जाति समाज से नहीं है। इसे बैलेंस में लाने के लिए आने वाले समय में जिला कांग्रेस में और भी फेरबदल हो तो हैरत की बात नहीं होगी। क्योंकि इस फ़ेरबदल के बाद जिला कांग्रेस ग्रामीण और शहर कांग्रेस दोनों की कमान सामान्य वर्ग के हाथ में आ गई है। लिहाजा सामाजिक समीकरण – संतुलन कायम करने के लिए आने वाले समय में फिर कोई फैसला हो सकता है।इस तरह का गुणा – भाग लगाने वालों की एक दलील यह भी है कि जब कोरबा ज़िले में विधायक जिला कांग्रेस अध्यक्ष मोहित केरकेट्टा को बदला जा सकता है , तो बिलासपुर जिला कांग्रेस ग्रामीण में फ़ेरबदल नामुमक़िन नहीं है….।

जहां तक बिलासपुर शहर के नए कांग्रेस अध्यक्ष विजय पांडे के तजुर्बे और उनके कामकाज के तौर-तरीके का सवाल है । उनकी पहचान एक मँज़े हुए नेता के रूप में रही है। आज़ के दौर में राज़नीति कर रहे नए लोगों को शायद यह नहीं पता होगा कि  लंबे कद के विजय पांडे का सियासी सफर भी लंबा है। उन्होंने इसकी शुरुआत 1978 -79 से की थी ,जब वे गवर्नमेंट साइंस कॉलेज के में छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए थे।  छात्र साथियों के बीच लोकप्रियता, मिलने जुलने का अंदाज और हर समय उनकी मदद के लिए तैयार रहने वाले विजय पांडे लगातार आगे बढ़ते रहे। उन्होंने 1980- 81 में संभाग के सबसे बड़े सीएमडी कालेज में छात्रसंघ का चुनाव जीता। उस दौर में  बृजमोहन अग्रवाल , मोहम्मद अकबर और चंद्रशेखर शुक्ला छात्र राजनीति में सक्रिय थे और अपने कालेज में छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। विजय पांडे 1983 में पार्षद चुने गए थे। उस समय भी मोहल्ले में लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता काफी थी और लोग हर समय अपने सुख- दुख में उन्हें अपने साथ पाते थे। बिलासपुर शहर की राजनीति के सिरमौर रहे पूर्व मंत्री स्वर्गीय बी.  आर. यादव ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें जिम्मेदारियां भी सौंपी। उन्हें बिलासपुर विकास प्राधिकरण  (बीडीए ) में उपाध्यक्ष बनाया गया। जहां उन्होंने बीडीए अध्यक्ष शेख गफ्फार के साथ मिलकर शहर की तरक्की के लिए कई काम किए। विजय पांडे को पहले भी शहर कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और वे इस पद पर 7 साल तक रहे। इस दौरान ही नगर निगम का वह चुनाव भी आया , जिसमें लंबे अरसे तक हार के बाद कांग्रेस ने जीत दर्ज की और श्रीमती वाणी राव को बिलासपुर शहर का महापौर चुना गया। वह ऐसा चुनाव था जिसमें बिलासपुर शहर की राजनीति में कांग्रेस की हार का सिलसिला टूटा था। लंबे समय से राजनीति करते हुए विजय पांडे देश और प्रदेश के बड़े नेताओं के भी नजदीकी रहे हैं। उन्होंने राजा रघुराज सिंह स्टेडियम में हुई राजीव गांधी की आम सभा का भी संचालन किया था और साइंस कॉलेज के बगल में श्रीमती सोनिया गांधी की आम सभा में संचालन करने का मौका भी उन्हें मिला था। अनुभव के लिहाज से वे शहर में कांग्रेस की राजनीति को नई दिशा देने का माद्दा रखते हैं। लेकिन मौजूदा समय में  शहर में कांग्रेस के झगड़े और आपसी खींचतान के बीच उनके सामने नई टीम खड़ी करने की भी चुनौती नजर आती है।

हाल के दिनों में शहर कांग्रेस में हुए घटनाक्रम को लेकर उन्होंने सीजीवाल से कहा कि जो भी व्यक्ति किसी की मदद के लिए अस्पताल जाता है और उसके समर्थन में जो लोग जाते हैं, उन पर कार्यवाही करना गलत है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के संविधान के मुताबिक शहर कांग्रेस को चाहिए था कि वे शहर के विधायक शैलेश पांडे को पहले नोटिस देते । इसके बाद आगे की कार्यवाही की जा सकती थी। इस मामले में प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया है। फिर भी शहर कांग्रेस की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय प्रदेश कांग्रेस को लेना है। हालांकि कोतवाली के घेराव और सार्वजनिक रूप से  खुद को किसी का आदमी बताए जाने वाले बयान के बारे में पूछा गया तो विजय पांडे कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति पहले कांग्रेस का है और उसे कांग्रेस के प्रति उत्तरदायित्व होना चाहिए। कोई कितना भी बड़ा या छोटा कार्यकर्ता हो वह किसी भी नेता के साथ हो सकता है । लेकिन इस बारे में अपनी राय व्यक्तिगत या सार्वजनिक रूप से जाहिर करना उनका निजी मामला है। जिम्मेदारी कांग्रेस के प्रति होनी चाहिए। इस तरह से विजय पांडे ने शहर कांग्रेस में चल रहे पर अपना रुख साफ कर दिया है । जिससे लगता है कि कांग्रेस में चल रही गला काट लड़ाई पर ब्रेक लगाने में उनकी नामजदगी मददगार साबित हो सकती है । औऱ विज़य पाण्डे अपने लम्बे कद की तरह बिलासपुर कांग्रेस की सियासत में एक लम्बी लक़ीर भी ख़ींच सकते हैं…। लेकिन कांग्रेस की राजनीति में कल क्या होगा यह जानने के लिए आने वाली वक्त का इंतजार करना ही बेहतर होगा ।।

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