Watch PHOTOS:यहां पानी की तलाश में नहीं,नमक चाटने आते हैं वन्यजीव

Shri Mi
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सत्यप्रकाश पाण्डेय।पिछले दिनों अचानकमार टाइगर रिजर्व के कोर जोन जल्दा की एक तस्वीर कुछ वन्य प्रेमियों ने सोशल मीडिया के जरियों सामने रखी, उस तस्वीर के माध्यम से ये बताया गया की अचानकमार टाइगर रिजर्व में पानी के संकट से वन्यजीवों में हाहाकार मचा हुआ है। पानी ना मिलने की वजह से वन्य प्राणी यहां-वहां भटक रहे हैं। मैं उस तस्वीर की हकीकत से रु-ब-रु हूँ लेकिन कुछ सच्चाई को बताये बिना सिर्फ ये कह देना की हालात भयानक हो चलें हैं यक़ीनन उचित नहीं है। मिटटी में मुंह धंसाकर वन्य जीव को पानी की तलाश करने का जिक्र जिस भी उद्देश्य से किया गया हो उसमें ये नहीं बताया गया कि उस कुएं से महज सौ मीटर की दुरी पर दो तालाब हैं जिनमें फिलहाल पर्याप्त पानी है। इतना ही नहीं जल्दा में विभाग का एंटी पोचिंग पेट्रोलिंग कैम्प है, जहां कुछ कर्मचारी और उनके सहयोगी रहते हैं। उनकी बातों पर यकीं करें तो कुछ वन्यजीव कुएं के पास नियमित आतें हैं, वजह उस जगह पर विभाग नमक डालता है। चूँकि आस-पास की मिटटी नमकीन है इस लिहाज से वन्यजीव उस इलाके में मिटटी चाटते या फिर मिटटी खाते अक्सर दिखाई पड़ते हैं। 

ये तस्वीर उसी कुएं के पास की है जहां की एक तस्वीर ने अचानकमार में भयानक जल संकट की सनसनी फैलाई, जबकि ये पहली दफा नहीं होगा की एटीआर के भीतर पानी को लेकर चर्चा हुई हो। पिछले एक दशक से पानी के समुचित प्रबंधन की कोशिशे हुईं लेकिन परिणाम उतने सार्थक नहीं दिखे। वजह विभागीय अमले की कमी और अन्य संसाधन। इस मामले में एक और महत्वपूर्ण बात अचानकमार टाइगर रिजर्व में पानी के जितने भी प्राकृतिक जल स्त्रोत हैं वो वर्षा पर निर्भर हैं लिहाजा कम बारिश के चलते अक्सर वो प्राकृतिक जल स्त्रोत फ़रवरी-मार्च तक सूख जाते हैं।

जल्दा, छपरवा, साटापानी और अचानकमार में कुछ ऐसे तालाब हैं जहां फिलहाल वन्यजीवों के लिए पानी है, हाँ समय पर समुचित इंतज़ाम नहीं होने पर इन तालाबों का पानी मई तक सूख जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। देखने वाली बात ये है की पिछले एक दशक में पानी के गहराते संकट से कितने वन्यजीवों की मौत हुई है । हाँ ये कइयों दफा जरूर हुआ है की पानी की कमी के चलते वन्यजीव एटीआर में बसी आबादी की ओर चले जाते हैं और ग्रामीण उन्हें अपना शिकार बनाने की जुगत में लग जाते हैं। ये सर्वदा उचित नहीं। विभागीय प्रबंधन की बातों पर यकीन करें तो वन्यजीवों को पानी के संकट से उबारने के प्रयास किये जा रहें हैं। 

इधर अचानकमार टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों की संख्या का आंकलन करने वालों की कमी भी नहीं है। अक्सर पर्यटक और कुछ वन्यजीव प्रेमी सफारी के दौरान मिलने वाले जीवों की संख्या से ही सारा अनुमान लगा लेते हैं जबकि भौगोलिक दृष्टिकोण से देखें तो बांधवावगढ़, कान्हा जैसे राष्ट्रीय उद्यान से ज्यादा क्षेत्र में फैले अचानकमार जंगल की अपनी अलग तासीर है। दूसरे वन क्षेत्रों की तुलना में यहां का परिदृश्य भी एकदम अलग दिखाई पड़ता है ऐसे में वन्यजीव प्रेमी बनकर कुछ भी कह देना, लिख देना व्यक्तिगत स्वतंत्रता जरूर हो सकती है मगर जंगल और जंगली जानवरों के हित में वो बात नहीं हो सकती।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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