क्या है – सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी का फार्मूला….?

Shri Mi
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(रुद्र अवस्थी)छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार के कार्यकाल के 2 साल पूरे होने के बाद बीजेपी ने भी चुनावी तैयारी करीब-करीब शुरू कर दी है। लगता है बीजेपी ने 2018 के चुनाव के पहले के माहौल को ज़ेहन में रखते हुए अपनी रणनीति बनाई है। और कुछ इस तरह से अपनी मुहिम शुरू कर रही है जैसे भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए विपक्ष की राजनीति की। उन्होंने किसानों, शिक्षाकर्मियों ,बेरोजगारों ,महिलाओं के मुद्दों को लेकर सड़क पर लड़ाई लड़ी और कामयाबी हासिल की। कुछ इसी अंदाज में बीजेपी भी दो साल बाद सड़क पर आकर अपनी लड़ाई शुरू कर रही है। कुछ दिन पहले पार्टी ने किसानों के मुद्दे को लेकर प्रदर्शन किया। हाल ही में नगर निगम के मसलों को लेकर धरना दिया गया। साथ ही महिलाओं से जुड़े मामलों पर महिला मोर्चा ने भी प्रदर्शन किया है। कोशिश यह भी नजर आ रही है कि पार्टी के तमाम लोग पूरी एकजुटता के साथ सड़क की इस लड़ाई में एक साथ  दिखाई दें। बीजेपी के पास सधा हुआ संगठन है। जिसमें हर समय मीटिंग से लेकर प्रशिक्षण तक हर तरह की सक्रियता नजर आती है। पार्टी के लोगों को उम्मीद है कि सड़क की लड़ाई के जरिए पार्टी राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही स्थानीय  मसलों पर भी छत्तीसगढ़ की जनता का भरोसा फिर से जीत सकती है। सत्ता में वापसी का यह फार्मूला बीजेपी के लिए कितना फायदेमंद होगा , इसका आकलन करने के लिए अभी काफ़ी वक्त है। लेकिन पार्टी सड़क पर तो उतर ही गई है।।

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कांग्रेस की जम्बो टीम में असली खिलाड़ियों की पहचान कठिन

सियासी दलों के संगठन में जब भी कोई नियुक्ति होती है तो लोग सबसे पहले यह हिसाब लगाते हैं कि किसकी चली और किसकी नहीं चली। कांग्रेस की ओर से हाल ही में जिला ग्रामीण और शहरी संगठन के पदाधिकारियों की नामदज़दगी के बाद भी यही सवाल चर्चा में रहा। संगठन के ओहदेदारों के नाम सामने आने के लिए लोगों को इंतजार करना पड़ा था। इस वजह से भी इस लिस्ट को लेकर लोगों की दिलचस्पी थी। अहम बात यह भी है कि कांग्रेस की जो कमेटी बनाई गई है, उस पर ही आने वाले चुनाव का दारोमदार रहेगा। लोग मान रहे हैं कि भले ही जिला अध्यक्ष के चेहरे बदल जाएं । लेकिन जिला कांग्रेस की यही टीम अगले चुनाव में काम करेगी। तब तक संगठन में किसी तरह के फेरबदल की गुंजाइश नजर नहीं आती। लिहाजा नई कार्यकारिणी पर बड़ी जिम्मेदारी मानी जा रही है। जिला कांग्रेस कमेटी की सूची के हिसाब से लगता है कि इसमें सभी नेताओं और खेमों को खुश करने की पूरी कोशिश की गई है। हालांकि जिला ग्रामीण की कार्यकारिणी में ग्रामीण इलाकों के कई कांग्रेसी चेहरे नदारद हैं। साथ ही शहरी इलाके के लोगों को उम्मीद से अधिक मौका मिल गया है। फिर भी माना जा रहा है कि जिला कांग्रेस ने ग्रामीण ने चुनाव के लिहाज से एक अच्छी टीम बना डाली है। शहर जिला कांग्रेस में भी तमाम नेताओं की पसंद का ख्याल रखने और सभी को अहमियत दिए जाने की पूरी कोशिश दिखाई देती है। शायद इसके चलते ही शहर कांग्रेस की जंबो टीम बन गई। पार्टी के अंदर असंतोष को रोकने के मामले में यह कहा कवायद सही कही जा सकती है। लेकिन बड़ी टीम में अच्छा खेलने वाले मैदान के खिलाड़ियों की पहचान करना अधिक कठिन होता है । वैसे भी सत्ता में आने के बाद पार्टी को सक्रिय, संघर्षशील और जुझारू बनाए रखने का काम भी चुनौतीपूर्ण है। जंबो टीम बनाने के बाद अब टीम के कप्तान पर जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है।

ज़मीन के साथ बिकाऊ है….. ज़मीर

किसी के नाम की जमीन को कोई दूसरा कब्जा कर ले ………या सरकारी जमीन पर कोई बेजा कब्जा कर ले। इस तरह की खबरें काफी पहले से ही सुनी जाती रही है। लेकिन अब जमीन एक जगह से उड़कर दूसरी जगह पहुंच जाती है…….। किसी के नाम की जमीन को कोई दूसरा बेच देता है……..। सरकारी नियम – कायदे को ठेंगा दिखाकर किसी भी जमीन पर अवैध प्लाटिंग हो रही है। मनमानी का आलम यह है कि अगर किसी ने जमीन खरीदने के बाद नामांतरण नहीं कराया और मौके पर कोई चहारदीवारी नहीं बनाई तो किसी भी रात उस ज़मीन पर किसी और का कब्जा हो सकता है ।  इन बातों का जिक्र करने के पीछे वजह यही है कि पिछले कुछ समय से जमीन को लेकर इस तरह की खबरें सुर्खियों में है। मीडिया में क़रीब रोजाना जमीन से जुड़ी एक ना एक खबर जरूर नजर आती है। जाहिर सी बात है कि कहीं ना कहीं कुछ सुलग रहा है।  जहां पर से धुआँ उठता हुआ दिखाई दे जाता है। अपना तो मानना यह भी है कि जरूरी नहीं है कि इस तरह की सभी खबरें मीडिया में आ जाएं। अपने- अपने कारणों से कई खबरें मीडिया तक नहीं पहुंच पाती ।  लेकिन जमीन की घपलेबाज़ी को लेकर जितनी खबरें इन दिनों आ रही हैं, उन्हें देखकर लोग सोचने लगे है कि – “क्या ज़मीन के साथ ज़मीर भी बिकाऊ है….. ? ” विभाग के मंत्री भी आते हैं और उनके सामने तक यह बात पहुंचती है। मंत्री जी कार्यवाही के लिए आदेश भी देते हैं। फिर भी टालमटोल का सिलसिला जारी रहता है। ऐसी नजीर को सामने रखकर यही कहा जा सकता है कि ऐसी खबरों और शिकायतों में अगर कहीं ना कहीं कोई सच्चाई है तब तो जमीन के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। देश दुनिया के दूसरे शहरों की तरह बिलासपुर शहर भी तरक्की की ओर आगे बढ़ रहा है। आजकल तरक्की का सबसे बड़ा पैमाना यही है कि शहर में नए रिहायशी इलाके तैयार होते हैं और ईट कंक्रीट का नया ढांचा तैयार होता ज़ाता है। लेकिन यदि तरक्की की इस परिभाषा में घुसकर कुछ लोग दूसरों के पैरों तले की जमीन खिसका कर अपनी जमीन तैयार करने में लगे हैं तो यह प्रदेश की मौजूदा सरकार और प्रशासन के सामने भी एक अहम् सवाल है कि क्या यह सिलसिला कभी थमेगा और इसके पीछे लगे लोग कभी एक्सपोज हो पाएंगे…. ? अगर यह सिलसिला बदस्तूर ज़ारी रहा तो यह शहर तरक्की करे या न करे…….. ज़मीन के गोरख़धंधे में लगे तमाम गोलखनाथों के ख़ाते में तरक्की ज़रूर दर्ज़ होती चली जाएगी । शासन -प्रशासन को इस सवाल का भी जवाब देना चाहिए कि जब पूरा रिकॉर्ड सरकारी फाइलों में दर्ज है और जमीनों की देखरेख ,नाप – जोख़ के लिए पूरा अमला तैनात है । तब जमीनी सौदागरों को कहां से बुलकने की पोल मिल रही है।….? 

चाय की चुस्कीयों में घुली मिठास का असर

इन दिनों कांग्रेस नगर निगम से लेकर प्रदेश तक सरकार चला रही है। वहीं बीजेपी विपक्ष की भूमिका में है। लेकिन कांग्रेस – भाजपा के बीच दोस्ताना रिश्तों की झलक भी कभी-कभी मिल जाती है। कुछ ऐसा ही नजारा हाल ही में देखने को मिला, जब नगर निगम की बदहाली के खिलाफ बीजेपी ने नेहरू चौक पर धरना दिया। धरना खत्म होने के बाद अमर अग्रवाल सहित कई और बीज़ेपी नेता  धरना स्थल के ठीक सामने नगर निगम के हेड क्वार्टर में महापौर रामशरण यादव के चेंबर में चाय पीने पहुंचे। गपशप – हंसी ठिठोली हुई और चाय पर चर्चा को लेकर लोगों के बीच भी चर्चा चलती रही। लेकिन इसके पीछे सियासी दांव को झांकने की कोशिश कर रहे लोगों का भी अपना एक नज़रिया है। जिन्हें समझ में आया कि महापौर के साथ चाय की चुस्कियां लेकर बीजेपी के दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस के भीतर की खेमेबंदी में हल्की सी गरमाहट पैदा करने और वक़्त आने पर उसकी मिठास का स्वाद लेने की गरज़ से भी यह मेहमाननवाज़ी की है। एक खेमे के साथ चाय पीकर पूर्व मंत्री ने अपने प्रतिद्वंदी को शायद यह मैसेज दे दिया है कि कांग्रेस के दूसरे खेमे के साथ उनके कैसे रिश्ते  हैं। शहर में कांग्रेस की राजनीति मैं एक दूसरे को हराने की कहानी बहुत पुरानी है। इस कहानी में पात्र बदलकर पूर्व मंत्री ने झलक दिखला दी है कि आने वाले समय में यदि जरूरत पड़ी तो किस ब्रांड की चायपत्ती और किस दुकान की शक्कर से चाय तैयार होगी……? वैसे भी शहर में खासकर निगम की राजनीति को लेकर अमर अग्रवाल का रुख नरम ही दिखाई देता रहा है। जिस तरह से बीजेपी के तीस से अधिक पार्षद होते हुए भी महापौर के चुनाव में बीजेपी ने वाकओवर दे दिया था और महापौर का चुनाव निर्विरोध होने दिया था। उससे भी नए समीकरण के संकेत मिलने लगे थे। अब साथ – साथ चाय पीने की इच्छा पहले किसने जाहिर की …….. इसका पता लोग लगा रहे हैं। लेकिन यह पता लगाने की जरूरत नहीं है कि चाय की चुस्कियों के साथ सत्ता और विपक्ष की जुबान पर घुल गई मिठास का असर आने वाले कितने दिनों तक रहेगा।

रामबाबू सोंथालिया की याद

बिलासपुर का व्यापार बिहार रोड  अब रामबाबू सोंथालिया के नाम से जाना ज़ाएगा । रामबाबू संथालिया की पहचान नगर शिल्पी के रूप में रही है। वह शहर विकास के बेस्ट प्लानर रहे। 80 90 के दशक में उस समय के शहर विधायक और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रहे बीआर यादव के साथ मिलकर उन्होंने शहर की तरक्की की को लेकर एक नई इबारत लिखी थी। रामबाबू सोंथालिया बिलासपुर विकास प्राधिकरण के पहले अध्यक्ष रहे। उनके कार्यकाल के दौरान ही शहर के विकास की कई योजनाएं बनी और रिहायशी – कमर्शियल जरूरतों के हिसाब से नए शहर के साथ नए हिस्से जुड़ते चले गए ।  आधुनिकता – नयापन, समय से पहले आने वाले समय को भांप लेने का हुनर और दूर की सोच की वज़ह से रामबाबू सोंथालिया  की शख्सियत की पहचान अलग से बनी थी। उनका मानना था कि वर्षों से शहर एक तरफ अरपा नदी और दूसरी तरफ रेल लाइन के बीज तरक्की करता रहा है। वे शहर के फैलाव को इस दायरे से बाहर निकालना चाहते थे ।  यही वजह है कि उन्होंने अरपा के पार राजकिशोर नगर की बुनियाद रखी और रेल लाइन के उस पार यदुनंदन नगर को नई बसाहट के रूप में एक नया आक़ार दिया । शहर में शहर के चारों ओर नई  रिंग रोड भी उनकी कल्पना का साकार रूप है। शहर के पर्यावरण के विकास को लेकर हमेशा चिंतित रहने वाले रामबाबू सोंथालिया ने ही राजकिशोर नगर से लगकर स्मृति वन की बुनियाद रख़ी थी ।पुराने बिलासपुर संभाग के सबसे बड़े थोक बाजार माल धक्का को रेलवे इलाके से बाहर लाकर व्यापार बिहार के रूप में विकसित करने की योजना भी रामबाबू सोंथालिया ने ही बनाई थी। नागपुर और दूसरे स्थानों में इस तरह के व्यवस्थित बाजार को बिलासपुर में भी उतारने और संवारने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ लगाया। जिससे बिलासपुर का कारोबार भी आगे बढ़ सके और कारोबार करने वालों को बेहतर सहूलियत मिल सके। बरसों से पुराना मालधक्का में कारोबार कर रहे व्यापारियों को नई ज़गह पर आने के लिए तैयार करने का काम काफ़ी चुनौतीपूर्ण था । जिसे आख़िर उन्होने कर दिख़ाया और आज व्यापार विहार इस अँचल कए सबसे बड़े थोक बाज़ार के रूप में गुलज़ार हो गया है। व्यापार विहार में त्रिवेणी भवन का निर्माण भी उन्होंने इस कल्पना के साथ किया था कि आने वाले समय में यहां बड़े-बड़े बड़े कार्यक्रम सभाएं और सेमिनार गोष्ठी जैसे आयोजन हो सकेंगे। व्यापार मेला के आयोजन के दौरान इस भवन की उपयोगिता लोगों ने देखी है। जिस खाली जमीन पर आज एक सुव्यवस्थित बाजार चल रहा है ,वह रामबाबू सोंथालिया के सपनों का ही साकार रूप कहा जा सकता है। इस लिहाज से व्यापार विहार रोड का नामकरण रामबाबू सोंथालिया के नाम पर कर नगर निगम ने उनके योगदान और शहर की तरक्की में हिस्सेदारी को चिरस्थाई बना दिया है।

राष्ट्रीय स्तर के स्कूल के लिए अच्छी पहल

और अब आखिर में एक अच्छी खबर की चर्चा करते हैं। खबर यह है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के विद्यार्थियों के लिए एक बड़ा फैसला लेते हुए नवा रायपुर में राष्ट्रीय स्तर के उच्च स्तरीय स्कूल की स्थापना करने की बात कही है। उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के 20 साल बाद भी प्रदेश में ऐसा कोई भी सरकारी या प्राइवेट स्कूल नहीं है, जिसकी गिनती देश के नामी स्कूलों में हो। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने हिदायत दी है कि राज्य के विद्यार्थियों को उच्च स्तरीय शिक्षा का अवसर प्रदान करने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर राज्य की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए ऐसे स्कूल की स्थापना जरूरी है। जिसमें गुणवत्ता युक्त शिक्षा के साथ ही विद्यार्थियों को सर्वांगीण विकास के अवसर भी मिल सके। मुख्यमंत्री ने यह भी ऐलान किया है कि इस स्कूल के लिए 10 एकड़ की जमीन नवा रायपुर में निशुल्क दी जाएगी । उन्होंने प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी को संबंधित विभागों से राय मशविरा कर जल्दी ही इस तरह का प्रस्ताव कैबिनेट में पेश करने के लिए कहा है यकीनन यह छत्तीसगढ़ सरकार की अच्छी पहल कही जा सकती है । सरकार ने अपनी योजना के अनुरूप ऐसे स्कूल की स्थापना में कामयाबी हासिल कर ली तो स्कूल शिक्षा के मामले में छत्तीसगढ़ की भी अपनी एक अलग पहचान बन सकेगी।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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