छत्तीसगढ़ के चांवल मिलर्स ने क्यों लिया कस्टम मिलिंग के बहिष्कार का फैसला….?चांवल उद्योग को बदहाली से उबारने तुरत कदम उठाने की जरूरत….

Chief Editor
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( सुरेश केडिया ) छत्तीसगढ़ में धान की फसल अब तैयार होने को है। धान की खरीदी के लिए तैयारियां शुरू हो गईं हैं। लेकिन धान की मीलिंग करने वाला छत्तीसगढ़ का चांवल उद्योग बदहाली से नहीं उबर पा रहा है और इस उद्योग से जुड़े लोगों के बीच अब भी सवालों का अंबार  है। खासकर प्रदेश की अरवा चांवल मिलों के सामने अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट खड़ा है। जिसे देखते हुए सरकार की ओर से नई नीति का फैसला होने से पहले राइस मिलर्स यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी छोटी – छोटी दिक्कतों को दूर करने सरकार कारगर कदम उठाएगी। जिसमें सबसे अहम् है कि सिस्टम का सरलीकरण किया जाए और चांवल उद्योग को कायम रखने के लिए सरकार की ओर से रियायत दी जाए। लेकिन  इस बारे में कई बार मुख्यमंत्री और खाद्य मंत्री से बातचीत के बाद भी अब तक न समस्याओँ का कोई निराकरण हुआ है और न ही लंबित मिलिंग चार्ज का भुगतान हुआ है।

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अफसरशाही के अड़ियल रव्वैये के चलते सरकार भी कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। जिससे तंग आकर आखिर छत्तीसगढ़ प्रदेश राइस मिलर्स एसोसिएशन ने इस साल कस्टम मिलिंग के बहिष्कार का फैसला किया है। अब इससे जुड़े सभी पक्षों को यह गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि ऐसी स्थिति क्यों आ रही है और राइस मिलों में ताला लगने से पहले  तत्काल क्या कदम उठाए जा सकते हैं…?

छत्तीसगढ़ में धान प्रमुख फसल है। जिस पर यहां का आर्थिकी निर्भर है। यही वज़ह है कि सरकार धान की खरीदी और किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए सार्थक कदम उठाती रही है। इसका लाभ किसानों को निश्चित रूप से मिला है और नतीजा सभी के सामने है। लेकिन इस अर्थतंत्र की गाड़ी का दूसरा पहिया – चांवल उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। जबकि मिलर के साथ – साथ ही लाखों लोगों का रोजगार इस उद्योग से जुड़ा हुआ है।  छत्तीसगढ़ में ज्यादातर अरवा चांवल मिलें हैं। उनकी स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि इन मिलों में साल में करीब छः से आठ महीने कोई काम नहीं होता। कस्टम नीति की शुरूआत केन्द्र सरकार ने करीब वर्ष 1985 में शुरू की थी। तब से ही मिलिंग चार्ज़ दस रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया था। जो करीब पैंतीस साल से यथावत है। समय के अनुसार केन्द्र सरकार को इसमें बढ़ोत्तरी करना चाहिए। इसी तरह झरती का मापदण्ड भी अव्यावहारिक है। केन्द्र सरकार ने प्रति क्विंटल 67 किलो चांवल का पैमाना तय किया है। जबकि छत्तीसगढ़ में प्रति क्विंटल 55 किलों से अधिक झरती नहीं मिलती। जिससे मिलर्स को अपने पास से चांवल की भरपाई करनी पड़ती है। इसे दुरूस्त करने के लिए प्रदेश में धान की अरवा  किस्मों के पैदावार को बढ़ाने की जरूरत है, ,जिससे अधिक चांवल प्राप्त हो सके। लेकिन तात्कालिक आवश्यकता इस बात है कि केन्द्र सरकार झरती के मापदण्ड का पुनर्निर्धारण करे। राइस मिलर्स एसोशिएसन की राज्य सरकार से भी अपेक्षा है कि जिस तरह से उत्तरप्रदेश सरकार ने धान की कुछ किस्मों की झरती में अपनी ओर से तीन प्रतिशत की रियायत दी है, वही नियम छत्तीसगढ़ में भी राज्य सरकार को लागू करना चाहिए। क्योंकि एक तरफ प्रदेश सरकार किसानों को 750 रुपए प्रति क्विंटल बोनस अपने खजाने से दे रही है। इसी तरह यदि चांवल में दो से तीन प्रतिशत झरती की छूट राज्य सरकार देती है तो शासन पर प्रति क्विंटल पचास से पचहत्तर रुपए का ही आर्थिक भार पड़ेगा। इस ओर राज्य शासन को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

प्रदेश में सरकार की ओर से बड़े पैमाने पर धान की खरीदी की जाती है। मिलर्स को संग्रहण केन्द्रों से धान का उठाव करना होता है ।  इसमें भी बहुत सी व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं।  चांवल के उत्पादन के हिसाब से छत्तीसगढ़ में  भंडारण की भारी कमी है। इससे भी दिक्कतों का समाना करना पड़ता है। व्यवस्था को सरल बनाने हेतु उपार्जन केन्द्रों की संख्या बढ़ाकर उपार्जन केन्द्रों को ही संग्रहण केन्द्रों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए । इससे परिवहन भाड़ा और  अतिरिक्त हमाली  के रूप में होने वाला शासन का खर्च बचेगा । साथ ही संग्रहण केन्द्रों में धान की क्वालिटी में हेरफेर पर भी अँकुश लग सकेगा। जानकारी के अनुसार प्रदेश में धान के संग्रहण केन्द्र की संख्या सौ के करीब है। वहीं उपार्जन केन्द्रों की संख्या हजार के आसपास है। शासन को धान के उत्पादन के अनुरूप नए गोदामों का भी निर्माण कर भंडारण क्षमता बढ़ाना चाहिए। व्यावहारिक दिक्कतों को देखते हुए धान के उठाव और चांवल के भंडारण के मामले में समय वृद्धि – पेनाल्टी में छूट का अधिकार जिला स्तर पर अधिकारियों को दिया जाना चाहिए।

छत्तीसगढ़ में चांवल उद्योग को कायम रखने के लिए सरकार की ओर से कदम उठाने की जरूरत है , सिर्फ प्रकिया का सरलीकरण और पारदर्शिता की नीति अपनाकर बड़ी राहत दी जा सकती है। इस संबंध में छत्तीसगढ़ राइस मिलर्स एसोसिएशन ने शासन के सामने कई सुझाव रखें हैं।इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।  जैसे सभी मिलर्स के प्रथम अनुबंध ( अरवा एवं उसना ) में मिलर्स की 2 माह की मिलिंग क्षमता की मात्रा का ही अनुबंध किया जाए। प्रथम मिलिंग की मात्रा का धान प्रत्येक मिलर्स के लिए सुरक्षित रखकर आवश्यक रूप से प्रदान किया जाए। चांवल का झरती का पुनर्निधारण किया जाना चाहिए । साथ ही अरवा और उसना मिलिंग में चांवल की झरती प्रतिशत कम किया जाना चाहिए।  मिलर्स को चांवल स्कंध पास हो जाने के बाद अप्रूवल स्लिप दी जानी चाहिए और अप्रूव्ड होने के बाद सारी जिम्मेदारी उपार्जन एजेंसी की होनी चाहिए। इसी तरह दस दिन के उठाव समय को पन्द्रह दिन किया जाना चाहिए । साथ ही विशेष परिस्थिति में छूट का अधिकार डीएमओ को दिया जाना चाहिए। इसी तरह मिलर्स से पचास प्रतिशत प्रतिभूति और पचास प्रतिशत चेक द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए । बैंक गारंटी की अवधि तक उसे प्रभावशील माना जाना चाहिए ।

अधिकृत धर्मकांटा की जाँच हर पन्द्रह दिन में की जानी चाहिए। समिति,संग्रहण केन्द्र ,नान और एफसीआई गोदामों तक की दूरी प्रत्येक राइस मिलर्स से वास्तविक दूरी का निर्धारण हो। जीपीएस- गूगल मैप से निर्धारित की गई दूरी पर मिलर्स को आपत्ति होने पर जिला विपणऩ अधिकारी के स्तर पर पन्द्रह दिन के अँदर निराकरण किए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए । साथ ही किराया नियमानुसार मिलर्स को विपणन संघ प्रदाय करे और कुल वास्तविक दूरी का किराया मिलर्स को प्राप्त हो। छत्तीसगढ़ की अरवा मिलों की मौजूदा हालत को देखते हुए उन्हे प्रति क्विंटल 40 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए। इसी तरह उसना मिलों को 20 रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि का प्रवधान किया जाना चाहिए। धान खरीदी पर बारदाना का उपयोग नए बारदाने में 55 प्रतिशत और पुराने बारदाने में 45 प्रतिशत उपयोग किये जाने का प्रवधान किया जाए। अनुबंध अवधि में वृद्धि  जिला विपणन अधिकारी के स्तर पर होना चाहिए। पर्याप्त गोदाम नहीं होने की वजह से आने वाली दिक्कतों को देखते हुए इस तरह की व्यवस्था की जानी चाहिए , जिससे अतिरिक्त गोदाम की स्वीकृति तत्काल मिल सके ।

गोदामों में पर्याप्त जगह उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में पेनाल्टी का प्रावधान समाप्त किया जाना चाहिए । डिजिटलाइजेशन और पेपरलेस सिस्टम के इस युग में प्रत्येक ट्रक पर धान की डिलीवरी चालान की प्रति बिल के साथ ज़मा कराए जाने की शर्त समाप्त की जानी चाहिए । एक अहम्  मुद्दा यह भी है कि एफसीआई छत्तीसगढ़ में उपलब्ध सभी गोदामों का चांवल उपार्जन हेतु उपयोग नहीं कर पा रहा है। एफसीआई के दोषपूर्ण डिपो टैंगिंग नीति में बदलाव जरूरी है। जिससे प्रदेश के सभी गोदामों का उपयोग चांवल उपार्जन हेतु सुनिश्चित किया जा सके ।

सरकार किसानों को उचित मूल्य पर धान खरीदी के साथ ही बिजली और अन्य क्षेत्रों में सहूलियत दे रही है, उसी तरह चांवल उद्योग को भी प्रदेश के अर्थतंत्र का एक अहम् हिस्सा मानकर सुविधाएं प्रदान करे। जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मुहैया कराने वाला यह उद्योग भी फल – फूल सके। छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने वादा किया है कि उद्योगों के संवर्धन और हितों के लिए हर संभव कदम उठाए जाएँगे। इसलिए चांवल उद्योग से जुड़े लोगों को भी सरकार से बड़ी आशाएं हैं। छत्तीसगढ़ सरकार चांवल उद्योग को लेकर नई नीति बनाने जा रही है। प्रदेश के राइस मिलर्स को इस बात की चिंता है कि क्या सरकार अपनी नई नीति में अरवा मिलों को प्रोत्साहन राशि बंद करने जा रही है….? यदि राज्य सरकार यह कदम उठाती है तो निश्चित रूप  से प्रदेश के बहुसंख्यक राइस मिलें तालाबंदी के लिए मज़बूर हो सकती हैं। जिससे उन पर आश्रित परिवार और लाखों श्रमिक आर्थिक बदहाली का शिकार बन सकते हैं। मिलर्स शासन से अपेक्षा कर रहे हैं  कि ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए , जिससे बदहाल चांवल उद्योग का संकट और गहरा हो जाए।

इस बीच खबर आई है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश राइस मिलर्स एसोसिएशन ने प्रदेश के खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री अमरजीत भगत को लिखित ज्ञापन भेजकर कस्टम मिलिंग के बहिष्कार की सूचना दी है।  ज्ञापन में कहा गय़ा है कि कस्टम मिलिंग संबंधी भुगतान निराकरण नहीं होने की वज़ह से यह निर्णय लिया जा रहा है। इस मामले में मुख्यमंत्री और खाद्य़ मंत्री की मध्स्थता में कई बार वार्ता हुई। खाद्य मंत्री ने त्वरित निराकण के आदेश भी दिए । फिर भी आज दिनांक तक कोई भी आदेश इस संबंध में नहीं हुए हैं। जिससे सभी मिलर्स में भारी रोष है और निराकरण तक प्रदेश के सभी मिलर्स ने  कस्टम मिलिंग प्रक्रिया – पंजीयन,अनुबंध , अनुमति आदि  को लेकर सहयोग नहीं करने का निर्णय लिया है। एसोसिएशन के इस कदम के बाद स्पष्ट है कि प्रदेश के मिलर्स में पिछले भुगतान को लेकर रोष है। साथ ही सरकारी तंत्र का अड़ियल रवैया भी सामने आ रहा है। जिसके चलते सरकार की मंशा और सहमति के बाद भी निराकरण के आदेश नहीं हो पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में इससे जुड़े  सभी पक्षों को गंभीरता के साथ तात्कालिक कदम उठाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जिससे चावल मिलों में ताला लगने से पहले कोई रास्ता निकल सके ।

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