TS सिंहदेव ने क्यों दिया इस्तीफा.?पढ़िए -CM भूपेश बघेल को 4 पेज की चिट्ठी में लिख दिया सब कुछ…चिट्ठी का मूल पाठ इस प्रकार है

Shri Mi
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अम्बिकापुर। छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंह देव ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से अपना इस्तीफा भेजा है। इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को 4 पेज की चिट्ठी लिखी है। यह चिट्ठी सार्वजनिक हो गई है। जिसमें उन्होंने विस्तार से लिखा है कि मंत्री रहते हुए उन्हें कहां किस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा है। इस चिट्ठी के शब्दों से पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से टी एस सिंहदेव के इस्तीफे की वजह को काफी हद तक समझा जा सकता है।टी एस सिंहदेव की ओर से लिखी गई चिट्ठी का मूल पाठ इस प्रकार है:-

             
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पिछले विगत 3 वर्षों से अधिक मैं पंचायत एवं ग्रामीण विकास के भार साधक मंत्री के रूप में कार्य कर रहा हूं।इस दौरान कुछ ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई है। जिससे आपको अवगत कराना चाहता हूं।प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत प्रदेश के आवास विहीन लोगों को आवास बना कर दिया जाना था।जिसके लिए मैंने कई बार आपसे चर्चा कर राशि आवंटन का अनुरोध किया था। किंतु इस योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी। फलस्वरुप प्रदेश के लगभग आठ लाख लोगों के लिए आवाज नहीं बनाया जा सके। इसके अतिरिक्त आठ लाख घर बनाने में से करीब 10 हजार करोड़ प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सहायक होते। हमारे जन घोषणापत्र में छत्तीसगढ़ के 36 लक्ष्य अंतर्गत ग्रामीण आवास का अधिकार प्रमुख रूप से उल्लेखित है।

विचारणीय है कि प्रदेश में वर्तमान सरकार के कार्यकाल में बेघर लोगों के लिए एक भी आवाज नहीं बनाया जा सका और योजना की प्रगति निरंक रही है। मुझे दुख है कि इस योजना का प्रदेश के आवास विहीन लोगों को नहीं मिल सका।किसी भी विभाग के अधीन Discretionary योजनाओं के अंतर्गत कार्यों की स्वीकृति का अनुमोदन उस विभाग के भार साधक मंत्री का निर्धारित अधिकार है। किंतु मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के अंतर्गत कार्यों की अंतिम स्वीकृति हेतु रूल्स आफ बिजनेस के विपरीत मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सचिवों की एक समिति गठित की गई। कार्यों की स्वीकृति हेतु मंत्री के अनुमोदन उपरांत अंतिम निर्णय मुख्य सचिव की समिति द्वारा लिए जाने की प्रक्रिया बनाई गई जो प्रोटोकॉल के विपरीत और सर्वथा अनुचित है जिस पर मेरे द्वारा समय-समय पर लिखित रूप से आपत्ति दर्ज कराई गई।

किंतु आज पर्यंत इस व्यवस्था को सुधारा नहीं जा सका है ।फलस्वरूप 500 करोड़ से ज्यादा की राशि का उपयोग मंत्री/विधायक/जनप्रतिनिधि के सुझावों के अनुसार विकास कार्यों में नहीं किया जा सका। वर्तमान में पंचायतों में अनेक विकास कार्य प्रारंभ ही नहीं हो पाए।

पेसा अधिनियम आदिवासी भाई बहनों की अधिकारों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. इसे प्रदेश में लागू करने के संबंध में जन घोषणा पत्र में भी वादा किया था तथा काफी मेहनत से नियम बनाए गए थे। ताकि उसे सफलतापूर्वक प्रदेश में लागू किया जा सके। दिनांक 13 जून 2020 से प्रदेश के आदिवासी इलाकों में जाकर वहां के स्थानीय लोगों स्थानीय जनप्रतिनिधियों इत्यादि से निरंतर 2 वर्षों से संवाद स्थापित कर इस का प्रारूप तैयार किया गया। किंतु विभाग द्वारा जो प्रारूप कैबिनेट कमेटी को भेजा गया था। जिसके अनुसार चर्चा हुई उसमें जल जंगल जमीन से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं को बदलकर कैबिनेट की प्रेसिका में शायद पहली बार बदल दिया गया।

भार साधक मंत्री को विश्वास में नहीं लिया गया जो कि अस्वस्थ परंपरा को स्थापित करेगा। इस विषय पर पृथक से मैंने व्यक्तिगत पत्र भी आपको लिखा है।

घोषणा पत्र में किए गए वादों में पंचायत प्रतिनिधियों के अधिकारों को पूर्ण रुप से लागू करना भी है।इसके लिए मैंने आपसे कई बार चर्चा तथा विभागीय तौर पर पहल की किंतु मुझे यह निराश मन से कहना पड़ रहा है कि इस पर आज पर्यंत कोई भी सहमति सकारात्मक पहल नहीं हो पाई। महात्मा गांधी नरेगा योजना का सफल क्रियान्वयन इस प्रदेश में हुआ है। उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस जरूरतमंदों को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी। छत्तीसगढ़ इस योजना के क्रियान्वयन में संपूर्ण भारत में अग्रणी रहा। 20,000 से अधिक कोविड-19 का सफलतापूर्वक संचालन पंचायतों द्वारा किया गया। प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में योजना के माध्यम से हम ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देने में सफल रहे। जिसकी प्रशंसा देश के किसी सभी हिस्सों में हुई।

मनरेगा का कार्य करने वाले रोजगार सहायकों के मेहनत को देखते हुए उनके वेतन वृद्धि का प्रस्ताव पंचायत विभाग द्वारा वित्त विभाग को प्रेषित किया गया। जो कि वित्त विभाग की सहमति न मिलने के कारण आज पर्यंत लंबित है। इस विषय पर व्यक्तिगत तौर पर आपसे कई बार चर्चा हुई।

एक साजिश के तहत रोजगार सहायकों से हड़ताल करवाकर मनरेगा के कार्यों को प्रभावित किया गया।जिसमें सहायक परियोजना अधिकारियों संविदा की भूमिका स्पष्ट रूप से निकलकर आई। स्वयं आपके द्वारा हड़ताल रहत कर्मचारियों की मांगों को पूरा करने के लिए एक कमेटी गठित की गई। इसके बाद भी हड़ताल वापस नहीं ली गई। हड़ताल के कारण लगभग 1250 करोड़ का मजदूरी भुगतान प्रभावित हुआ तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नहीं पहुंच सका। समन्वय के माध्यम से आप से अनुमोदन लेकर सहायक परियोजना अधिकारियों (संविदा) के स्थान पर रेगुलर सहायक परियोजना अधिकारियों की पदस्थापना भी कर दी गई थी. ताकि मनरेगा का कार्य सुचारु रुप से चल सके और रोजगार की तलाश कर रहे नागरिकों को रोजगार से वंचित ना होना पड़े।

जब हमारे प्रदेश को रोजगार की सबसे ज्यादा जरूरत थी तो सहायक परियोजना अधिकारियों के द्वारा कार्य को प्रभावित रखा गया जबकि रोजगार सहायक अपने काम पर वापस आना चाह रहे थे। जब मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि हटाए गए सहायक परियोजना अधिकारी संविदा की पुनः नियुक्ति की कार्यवाही चलने लगी तब दूरभाष पर मैंने आप से चर्चा कर अपना मत दिया था कि उन्हें उसी पद पर पुनः नियुक्त ना दिया जाए और अगर रखना ही है तो समकक्ष वेतन के आधार पर विभाग के अन्य पद पर रखा जा सकता है।

उसी पद पर पुनः रखना सर्वथा अनुचित रहेगा तथा भविष्य में आंदोलन की प्रवित्ति बलवती होगी तथा अच्छा संदेश नहीं जाएगा। ऐसी परिस्थिति में ऐसे कर्मचारियों जो कि जनहित तथा राज्य हित के विपरीत कार्य कर रहे थे उनकी पुनः नियुक्ति अनुचित है। लेकिन इन सबके बावजूद कल इसकी पुनः पदस्थापना मेरे बगैर अनुमोदन के कर दी गई जो कि मुझे स्वीकार्य नहीं है।

अतः जन घोषणा पत्र के विचारधारा के अनुरूप उपरोक्त महत्वपूर्ण विषयों को दृष्टिगत रखते हुए मेरा यह मत है कि विभाग के सभी लक्षणों को समर्पण भाव से पूर्ण करने में वर्तमान परिस्थितियों में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूं। एवं पंचायत एवं ग्रामीण विकास के बाहर से मैं अपने आप को पृथक कर रहा हूं। आपने मुझे शेष जिन विभागों की जिम्मेदारी भी उन्हें अपनी पूर्ण क्षमता और निष्ठा से निभाता रहूंगा

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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