क्या सही में बदले जाएंगे अरुण साव…? एक ख़बर से छत्तीसगढ़ BJP की सियासत में नई हलचल ..!

Shri Mi
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(गिरिजेय)बीजेपी छत्तीसगढ़ में सरकार बदलने की तैयारी कर रही है….. या बीजेपी खुद बदल रही है…. या बदलाव के लिए बीजेपी ने छत्तीसगढ़ को भी एक प्रयोगशाला बना लिया है, जिससे बीजेपी में चुनाव से पहले – पहले और कई बदलाव देखने को मिलेंगे…. या पार्टी में चल रहे बदलाव के लिए ऐसे नेता राजी नहीं है जो बरसों से पार्टी में काबिज़ रहे हैं…. ? इस तरह के सवाल किसी के भी मन में उठ सकते हैं, जब यह खबर आती है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बदले जा सकते हैं….। इस तरह के सवालों के बीच जो तस्वीर उभर कर आती है उसमें साफ दिखाई देता है कि बीजेपी ने कुछ महीने पहले ही छत्तीसगढ़ में बड़े बदलाव किए हैं। पार्टी ने सांसद अरुण साव के रूप में छत्तीसगढ़ को नया प्रदेश अध्यक्ष दिया, नारायण चंदेल के रूप में नया नेता प्रतिपक्ष दिया और ओम माथुर के रूप में नया प्रदेश प्रभारी दिया।

             
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बीजेपी को इस बदलाव की जरूरत क्यों थी…? इस सवाल का जवाब भी इस बदलाव में ही छिपा हुआ है ज़ो साफ इशारा करता है कि बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव…. उससे पहले और उसके बाद अपने जिन नेताओं पर भरोसा किया वे भरोसेमंद साबित नहीं हो सके। उन्हें जो टास्क दिया गया वे पूरा नहीं कर सके । लिहाजा नीचे से ऊपर तक बदलाव की जरूरत पड़ी। इस बदलाव का असर भी तुरंत ही नजर आया। पार्टी ने रायपुर में युवा मोर्चा और बिलासपुर में महिला मोर्चा का आयोजन कर इसे साबित भी किया।

लेकिन अब़ इस तरह की खबरें आने लगी है कि बीजेपी 2023 के चुनाव से पहले फिर से बदलाव करना करने की तैयारी में है और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष बदले जा सकते हैं। इस खबर को लेकर सियासी हलकों में हलचल हुई है और खासकर छत्तीसगढ़ मैं बीजेपी नेताओं कार्यकर्ताओं के बीच नई चर्चा शुरू हो गई है। बीजेपी में ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि भाजपा में ऐसा रिवाज नहीं रहा है की थोड़े दिनों के भीतर संगठन में बदलाव किया जाए।

पार्टी ने जब उम्मीद कर हाल ही में नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है तो नई टीम को काम करने का वक्त भी मिलेगा। इसके पहले छत्तीसगढ़ में ताराचंद साहू कम समय के लिए अध्यक्ष बने थे और उनकी जगह डॉ रमन सिंह को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई थी ।यह बात 2002 के आसपास की है। हालांकि उस समय डॉ रमन सिंह की अगुवाई में पार्टी ने 2003 के विधानसभा चुनाव में जोरदार प्रदर्शन किया और छत्तीसगढ़ की सत्ता हासिल करने में कामयाब रहे। इसके बाद 15 साल तक सरकार में रही।

लेकिन अब हालात बदल गए हैं । लगातार पन्द्रह साल सरकार चलाते हुए बीजेपी के जो चेहरे सामने नज़र आते रहे , उन पर भरोसा कम हुआ है। 2018 के विधानसभा चुनाव में इसका नतीज़ा सामने आया । 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद भी बीजेपी की यह टीम अपने आप को मज़बूत – सक्रिय विपक्ष के रूप में पेश नहीं कर सकी । कम से कम पिछले कोई चार साल से छत्तीसगढ़ के आम लोगों के सामने बीजेपी की ऐसी ही पहचान बनी है। लोग ऐसा भी मानते हैं कि जब़ सूब़े के आम लोग ऐसा महसूस कर रहे हैं, तो पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व तक भी यह ब़ात पहुंची होगी।
जाहिर सी बात है कि 2023 के चुनाव में बीजेपी छत्तीसगढ़ में भी सत्ता में वापसी करना चाह रही है और इस गरज़ से ही कुछ महीने पहले पार्टी ने छ्त्तीसगढ़ में बड़े बदलाव किए हैं। लोगों का अनुमान है कि गुजरात- हिमाचल प्रदेश के चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में भी पार्टी अपने अंदाज में चुनाव की तैयारी शुरू करेगी। ऐसे में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बदले जाने की खबर ने एक ब़ार फ़िर यह सवाल पैदा कर दिया है कि – आख़िर छत्तीसगढ़ बीजेपी मे क्या हो रहा है..।

और चुनावी मोड पर आने से ठीक पहले इस तरह की चर्चाओं के पीछे का मकसद समझने की कोशिश भी हो रही है । अगर इन ख़ब़रों मे सचाई है, तब तो यही माना जा सकता है कि सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी छत्तीसगढ़ को भी एक लेबोरेटरी बनाकर प्रयोग पर प्रयोग कर रही है । और अपने तरकश के हर एक तीर को आज़माकर देखना चाह रही है। ऐसे में मुमक़िन है कि आने वाले दिनों मे और भी बदलाव देखने को मिले।

लेकिन अगर प्रदेश अध्यक्ष बदलने की ख़बरों में सचाई नहीं है तो इस हवावाज़ी में बीजेपी की अँदरूनी ख़ेमेबाज़ी की झलक़ ही देखी जा सकती है । ऐसा मानने वालों की दलील है कि लंबे समय से पार्टी की कमान संभाल रहे पुराने नेता अऱुण साव और नारायण चंदेल की नई टीम के साथ पार्टी में हे रहे बदलाव को सहज़ता से मंज़ूर करने के लिए राज़ी नहीं हो पा रहे हैं। लंब़े समय तक़ यश मैन के साथ चल रही पार्टी में इस तरह के बदलाव को गले में उतारना आसान भी नहीं है। ऐसे में अपनी नाक़ामियों को छिपाने और नई टीम का हौसला पस्त करने की गरज़ से इस तरह की हवा फैलाने की रणनीति पर काम चल रहा हो तो हैरत की बात नहीं होगी ।

जिसकी वज़ह से बीजेपी की अंदरुनी लड़ाई सतह पर नज़र आने लगी है। पार्टी का भला चाहने वालों को लग रहा है कि इस तरह की हवाबाज़ी से छत्तीसगढ़ में बीजेपी को ही नुक़सान उठाना पड़ सकता है। एक तो बीजेपी की अदरूनी लड़ाई सतह पर आने से सीधा नुक़सान तो होगा ही। इसके साथ ही 2023 के विधानसभा चुनाव के लिहाज़ से प्रदेश के ओब़ीसी और खासकर साहू समाज के बीच यह मैसेज़ भी जाएगा कि हारी हुई टीम की अगुवाई करने वाले पुराने नेता नए नेतृत्व को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं ।

छत्तीसगढ़ के ओब़ीसी तबक़े को केवल वोट बैंक के नज़रिए से ही देख रहे और उनके हाथ में पॉवर नहीं देना चाह रहे हैं। ओबीसी नेताओं को केवल मुख़ौटे की तरह इस्तेमाल करने की समझ बनेगी तो आने वाले समय में बीज़ेपी को नुक़सान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस भी इस तरह के मौक़े का फ़ायदा उठाने से नहीं चूक़ेगी । ऐसी सूरत में फेरबदल की चर्चाओं के बीच पार्टी को समय रहते यह साफ़ करना पड़ेगा कि इस मामले में सही तस्वीर क्या है.. .? इस मामले में लोग पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व के रुख़ पर भी नज़रें लगाए हैं। जिससे यह साफ़ हो सके कि क्या छत्तीसगढ़ बीज़ेपी में अभी और बदलाव होंगे …. या हाल के बदलावों को नही पचा पा रहे लोगों को वार्निंग मिलेगी … ?

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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