क्या छत्तीसगढ़ के लिए भी टर्निंग प्वाइंट साबित होगी लखीमपुर में कांग्रेस की रणनीति.?

Shri Mi
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बिलासपुर।एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी इलाका इन दिनों मीडिया में सुर्खियां बटोर रहा है। इसके साथ ही कांग्रेसी और प्रियंका राहुल गांधी को भी मीडिया में स्पेस मिल रहा है। लोग मान रहे हैं कि इस घटना को लेकर कांग्रेस ने जो रणनीति अपनाई है, उससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अपनी खोई हुई जमीन वापस तलाशने का रास्ता मिल सकता है। इस दौरान मीडिया में छत्तीसगढ़ को भी जगह मिली है। लखीमपुर खीरी जाते समय जिस तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को अपने साथ लिया। उसकी भी चर्चा हुई है ।

मीडिया में इस मुद्दे पर चल रहे डिबेट के दौरान कई राजनीतिक प्रेक्षकों ने इस बात पर भी जोर दिया कि इसका असर उत्तर प्रदेश के सियासी समीकरण पर पड़ सकता है। मसलन दलित समाज से आने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को साथ रखकर राहुल गांधी ने जहां यूपी में दलित समाज को भरोसे में लेने की कोशिश की है । वहीं ओबीसी तबके से आने वाले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जाना भी यूपी में पिछड़े वर्ग के लोगों के बीच असरदार हो सकता है ।

नेशनल लेवल पर मीडिया में बन रही इन सुर्ख़ियों के साथ नज़र आ रहे बदलाव के संकेतों को छत्तीसगढ़ की सियासत को जोड़कर देखें तो लगता है कि छत्तीसगढ़ से कोसों दूर यूपी के लखीमपुर खीरी में हुई इस घटना का छत्तीसगढ़ की सियासत पर भी असर पर पड़ सकता है । मुमकिन है कि जिस तरह लखीमपुर खीरी की घटना से कांग्रेस को यूपी में अपनी खोई हुई जमीन वापस तलाशने का रास्ता मिल रहा है। वैसे ही पिछले कुछ महीने से छत्तीसगढ़ में बने हालात बदलने का भी रास्ता निकल सकता है….।और लख़ीमपुर ख़ीरी के रास्ते सीएम भूपेश बघेल की मजबूती फिर लौट सकती है।

हालांकि लखीमपुर की घटना के बाद कांग्रेस कितने फ़ायदे में रहेगी, यह जिस तरह कहा नहीं जा सकता … करीब उसी तरह छत्तीसगढ़ में यही स्थिति कब तक बरकरार रहेगी यह जानने के लिए आने वाले वक्त का इंतजार करना पड़ेगा। मीडिया में इन दिनों लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर चल रहे डिबेट सुनेंगे तो उसमें किसान आंदोलन के साथ ही कांग्रेस की सियासत और खासकर प्रियंका गांधी की लोकप्रियता से जुड़े सवाल पर गरमागरम बहस सुनाई देगी। इस तरह की बहस में अक्सर राहुल गांधी के लखीमपुर दौरे को लेकर बुधवार को हुए घटनाक्रम का भी जिक्र आता है । जिसमें पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम का भी लोग ज़रूर लेते हैं।

भूपेश बघेल लखीमपुर की घटना के मुखर विरोध में सामने आए । उन्होंने पहले ही वहां जाने की तैयारी कर ली थी । लेकिन उनके हवाई जहाज को उतरने की इजाजत नहीं मिल सकी । लिहाजा वे दिल्ली गए और दिल्ली से राहुल गांधी के साथ लखनऊ पहुंचे। लखनऊ एयरपोर्ट पर पहले राहुल गांधी को रोका गया, उस दौरान चरणजीत सिंह चन्नी और भूपेश बघेल पूरे समय उनके साथ रहे। इस समय की वह तस्वीर भी वायरल होती रही, ज़िसमें राहुल गाँधी के साथ भूपेश बघेल भी एक चबूतरे में बैठे हुए हैं। इसके बाद वह दोनों मुख्यमंत्री राहुल गांधी के साथ सीतापुर लखीमपुर गए।

इस मामले में सियासी हलकों में इस बात का जिक्र लगातार हो रहा है कि राहुल गांधी ने ओबीसी तबके के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पूरे घटनाक्रम में हाईलाइट कर यूपी में ओबीसी की आबादी को यह संदेश देने की कोशिश की है कि इस तबके को कांग्रेस ने हमेशा आगे बढ़ाया है। इस दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लखीमपुर की घटना में मारे गए लोगों के परिवारों को 50 – 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का ऐलान भी किया। हालांकी उनके इस ऐलान को लेकर छत्तीसगढ़ में तीखी प्रतिक्रिया भी हुई। और लोग यह सवाल भी उठाने लगे कि छत्तीसगढ़ में हुई सिल्गेर जैसी घटना में मारे गए लोगों को इतना मुआवजा क्यों नहीं दिया गया था…?

बहरहाल लखीमपुर खीरी की के इस घटनाक्रम के बाद से भूपेश बघेल नए अंदाज में सुर्खियों में रहे हैं। लोग इस बात को भी गौर कर रहे हैं कि पिछले कुछ कई दिनों से जिस तरह विधायकों के दिल्ली कूच करने और छत्तीसगढ़ में नेतृत्व परिवर्तन को लेकर कयासों के साथ खबरें सुर्खियों में रही हैं। उनक़ी ज़गह दूसरी ख़बरों ने ले ली है।विधायकों की दिल्ली आवाज़ाही और बयानब़ाज़ी से ज़ुड़ी खबरें पिछले कुछ दिनों से सुर्खियां नहीं बन पा रही हैं और छत्तीसगढ़ में यतास्थिति क़ायम रख़ने का माहौल बनने लगा है।। सियासी हलकों में माना तो यह भी जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में 90 में से 70 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं और जबरदस्त बहुमत के बाद भी अगर प्रदेश में अस्थिरता की चर्चा है तो इसका असर भी छत्तीसगढ़ पर हो रहा है।हाईकमान की ओर से दो टूक फ़ैसला नहीं आने से कन्फ़्यूज़न का माहौल है।

प्रदेश में वैसे भी कोविड की वज़ह से पिछले कोई डेढ़ सेल से कामकाज़ प्रभावित हैं। उस पर पिछले कुछ महीने से बदलाव की बहस के बीच सब कुछ थम सा गया है। कांग्रेस संगठन के कार्यकर्ता भी दुविधा में है। और जाहिर सी बात है कि ऐसे माहौल में सरकारी मशीनरी भी हालात़ स्टेबल होने का इंतजार करने लगती है। इसकी झलक पूरे सिस्टम पर देखी जा सकती है। राजनीतिक प्रेक्षक यह भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ का मामला पंजाब से अलग नज़र आता है । चूंकी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री चयन के समय किए गए एक कमिटमेंट की वजह से बदलाव की बात हो रही है। यहां विधायक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ हैं।

सीएम भूपेश बघेल ने अपना पद संभालने के बाद जिस तरह किसानों के बीच अपनी पैठ बनाई और छत्तीसगढ़िया पहचान के साथ वे आम लोगों से अपना जुड़ाव बढ़ाते रहें हैं…. उसके मद्देनजर लोग मान रहे हैं कि कमिटमेंट ही सही….. अगर किसी वजह से हाईकमान को नेतृत्व परिवर्तन का फैसला करना पड़ रहा है तो उसके पहले इस बात पर भी गहराई से विचार मंथन होना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदले जाने पर नफा – नुकसान का गणित क्या कहता है…. ? हालांकि इस बीच फेरबदल के नाम पर कई तारीखें सोशल मीडिया में सामने आती रहीं और कभी पितृपक्ष कभी नवरात्रि का भी जिक्र आता रहा। लेकिन इस बीच अचानक हुई लखीमपुर खीरी की घटना से समीकरण बदलने के संकेत मिल रहे हैं।इन दिनों राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया की बहसों में इस बात का ज़िक्र हो रहा है कि भूपेश बघेल को ओबीसी सीएम के रूप में पेश कर कांग्रेस यूपी में ओबीसी मतदाताओं के बीच मैसेज भेजने की कोशिश में है। अगर यह भी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है फिर छत्तीसगढ़ में एक ओबीसी मुख्यमंत्री को बदलने का फैसला कैसे किया जा सकता है….?

अब राजनीतिक हलकों में यह सवाल भी तैरने लगा है। वैसे यूपी का यह घटनाक्रम छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित होगा या नहीं आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन यूपी से रिटर्न होने के बाद चंदखुरी के कार्यक्रम में शामिल हुए भूपेश बघेल के बॉडी लैंग्वेज को देखकर यही माना जा रहा है कि उनकी वापसी मजबूती के साथ हुई है। यदि ऐसा है तो छत्तीसगढ़ की राजनीति में पिछले कुछ महीनों से चल रही हैडलाइन आने वाले दिनों में बदल सकती है।।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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