बिलासपुर—शिक्षाकर्मी संंगठन के मोर्चा संचालक संजय शर्मा ने नेता,न्यायालय और मीडिया से सवाल किया है। सवाल चुनाव आयोग और जनसामान्य से भी किया है। संजय शर्मा ने कहा है कि टीवी पर चीख चीख कर बयान दिए जा रहे हैं कि शिक्षाकर्मियों को स्टाम्प में लिखना होगा कि फिर कभी हड़ताल पर नहीं करेंगे। ऐसे लोगों से बताना चाहूंगा कि वादा कर मुकरना भी अपराध है। क्या कभी वादाखिलाफी करने वालों पर भी कार्रवाई होगी।शिक्षाकर्मी संगठन के नेता संजय शर्मा ने न्यायालय,नेता और मीडिया से सवाल किए हैं। उन्होने कहा है कि शिक्षाकर्मी भर्ती में 10 रुपए के स्टाम्प में हलफनामा भरवाया जा रहा है। हलफनामा संवैधानिक होकर भी असंवैधानिक है। क्योंकि मामला जनहित से जुड़ा हुआ है। जो आज शिक्षाकर्मी बन रहे है, कलतक स्टूडेंट थे। हलफनामा भरवाकर क्या भविष्य से खिलवाड़ नही किया जा रहा है।
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संजय शर्मा ने कहा कि सरकार केवल पढ़नेवाले बच्चो के भविष्य की चिंता कर रही है। ऐसी चिंता नौकरी मांगने वाले बच्चों के लिए क्यों नही करती। क्या नौकरी मांगने वाला बच्चा नही होता…। यदि बच्चा है तो फिर असंवैधानिक हलफनामा क्यो भरवाया जा रहा है। पार्टियां जनता से झूठे वादे कर सरकार बना लेती है। लेकिन वादा पूरा नही करती…जैसा कि शिक्षाकर्मियों के साथ हुआ है। न्यायालय,मीडिया और नेताओं को बताना होगा कि वादाखिलाफी किस जुर्म में आता है। क्या ऐसे लोगों के लिए भी कोई सजा है। यदि है तो अब तक किसी सजा क्यों नहीं मिली।
संजय ने सवाल करते हुए कहा कि क्या पार्टियां चुनाव जीतने से पहले 50 रु के स्टाम्प में जनता को लिखकर देगी कि जो भी वादा किया है सरकार बनते ही पूरा किया जाएगा। यदि ऐसा नहीं किया तो पद के लायक नही होंगे जब तक जनता उनके ऊपर वादाखिलाफी के विरुद्ध FIR या मुकदमा दायर करती है। यदि वादा पूरा नहीं किया तो सजा भुगतने के लिए तैयार हैं।संजय ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि कर्मचारियों को सरकार वेतन देती है। उसे गैर सरकारी माना जाए…क्योंकि शिक्षाकर्मियों को भी सरकार वेतन देती है लेकिन गैर सरकारी कर्मचारी माना जाता है। जब गैर सरकारी कर्मचारी के हाथों चुनाव सम्पन्न करना संवैधानिक है। तो चुने गए प्रतिनिधि संवैधानिक कैसे हो सकते हैं।
शिक्षाकर्मी नेता ने बताया कि देश मे चुनाव, जनगणना जैसे कार्य कराने वाले कर्मचारी गैर सरकारी होते हैं। यदि ऐसे लोग गैर सरकारी कर्मचारी नही है तो इनको सरकारी कर्मचारी घोषित करने में संवैधानिक अड़चन क्यो है। देश मे ऐसा कौन सा कानून है जो एक कर्मचारी को दो विभाग में काम करने को मजबूर करता है। फिर भी दोनों विभाग उसे अपना कर्मचारी नही मानते है…।
संजय ने बताया कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव से पहले असंवैधानिक घोषणा करती है। चुनाव आयोग उनको चुनाव लड़ने की अनुमति किस कानून के तहत देता है। न्यायपालिका से सवाल है कि राजनीतिक पार्टियां झूठे वादे कर सरकार बनाती हैं। समय समय पर विभागों में भर्तियां भी करती है। क्या कर्मचारियों से स्टाम्प पेपर में हड़ताल नही करने का हलफनामा भरवाया जाता है। यदि नहीं तो शिक्षाकर्मियों से हलफनामा क्यों भरवाया जा रहा है।
क्या नेता लोग भी स्टाम्प में लिख के देंगे कि वो भी अपना वेतन नही बढ़ाएंगे। आउट कभी हड़ताल नही करेंगे।
मैं पूरी तरह सहमत हूँ……संजय शर्मा जी का हर एक सवाल सही है , नेता जी लोग भी एक शपथ पत्र लिखें की जिस वेतन भत्ते पर चुने जाते है पूरे पंचवर्षी उसी पर सेवा देंगे , 62 वर्ष की आयु के बाद कोई सेवा नहीं, कोई पेंशन नहीं !…….