छत्तीसगढ़ की स्वर्णिम संस्कृति का गुणगान है, भोजली

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             बिलासपुर   ( प्रकाश निर्मलकर )  । छत्तीसगढ़ त्योहारों का प्रदेश है। जहां हर एक त्योहार पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ तो है लेकिन कई त्योहार ऐसे है जो पौराणिक कथाओं से न जुड़कर आम लोगों से जुड़े है। चाहे हो हरेली हो या छेरछेरा या पोला ये सभी त्योहार मनाये जाते है छत्तीसगढ़ के साथ देश की संपन्नता, खुशहाली और समृद्धि के लिए……। भोजली विसर्जन भी छत्तीसगढ़ की माटी की सौंधी खुशबु लिए और छत्तीसगढि़या की सरल और सहज व्यवहार का त्योहार है। संभवतः यह देश के साथ विश्व का पहला त्योहार है जो अपने अंतिम दिन यानि विसर्जन के दिन के लिए प्रसिद्ध है।

वैसे इसकी शुरूवात तो हरेली त्योहार केदिन अर्थात सावन के दूसरे पक्ष के शुरूवात के दिन से होती है। जिस दिन लोग भोजली की बुआई करते हैं। भोजली गेंहू का पौधा होता है कई जगह जौं का भी उपयोग किया जाता है। नये छोटे छोटे टोकरी में मिट्टी और उर्वरा शक्ति के लिए कम्पोस्ट को भरा जाता है और उसमें गेहूं छिड़कर किसी अंधेरे स्थान पर रख दिया जाता है। पूरे पंद्रह दिनों बाद रक्षाबंधन के दूसरे दिन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ इसे निकाला जाता है, जिसे भोजली कहते हैं। आम तौर पर कोई भी पौधा हरा होता है लेकिन भोजली का रंग सुनहरा होता है। ऐसा जैसे ये छत्तीसगढ़ की स्वर्णिम सांस्कृतिक विरासत का गुणगान करता हो। बड़े -बड़े लहराती स्वर्णिम और घने पौधे मानों छत्तीसगढ़ की समृद्धि का बखान करते है।
भोजली मित्रता का प्रतीक – भोजली मित्रता, आदर और विश्वास का प्रतीक है। जिस तरह युवा पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण करते हुए फ्रेन्डशिप डे मनाते है और एक दूसरे के कलाई में फ्रेंडशिप बेल्ट बांधकर मित्रता का इजहार करते हैं। उसी तरह प्राचीन काल से छत्तीसगढ़ में भोजली देकर मित्रता को प्रगाढ़  करने की परंपरा है। भोजली देकर मित्रता बढ़ाने की परंपरा फ्रेन्डशिप डे से भी पहले से चली आ रही है। छत्तीसगढ़ में इस दिन का विशेष महत्व है। लोग बड़ी संख्या में भोजली का विसर्जन करने पहुंचते हैं और भोजली देकर मित्रता को प्रगाढ़ करते है और आशीर्वाद लेते हैं। भोजली को अगर हाथ में दिया जाता है तो इसका आशय है पिछली जितने भी सिकवे, शिकायतें है उसे दूर करने का आमंत्रण हैं। अगर बड़ों को भोजली हाथ में देकर उनके पैर छुआ जाए तो आशीर्वाद लिया जाता है और उसे किसी व्यक्ति के कान में लटकाया अर्थात खोंचा जाए तो ऐसा मित्र बनाना होता है जो उसका प्रतिरूप हो अर्थात छत्तीसगढ़ी में मितान कहा जाता है। अगर युवतियां या महिलाएं हो तो उन्हें गुंइया कहा जाता है। इस दिन का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है और भोजली को साक्षी मानकार मित्र के हर सुख दुख में कदम से कदम मिलाकर चलने का वादा किया जाता है।

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प्रचलित है लोकगीत – भोजली विसर्जन के दौरान महिलाएं सामूहिक रूप से गीत गाती है जिसे भोजली गीत कहते हैं। जो काफी लोकप्रिय और कर्णप्रिय लोकगीत है, जो छत्तीसगढ़ की पहचान भी कही जा सकती है।
देवी गंगा देवी गंगा
लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा
हमरो भोजली देवी के
भीगे आठों अंगा
ओ हो देवी गंगा……

युवतियां बांधती है राखी – एक तरफ भोजली मित्रता का प्रतीक है तो दूसरी तरफ आत्मिय भावना का भी प्रतीक। भोजली को युवतियां रक्षासूत्र भी बांधती है इस लिए नहीं कि उनका का कोई भाई नहीं होता बल्कि इसलिए की भोजली मैया उनके भाई की रक्षा करें और उन्हें हर विपत्ति से बचाएं।
गेंडी का महत्व – हरेली के दिन से बनाई गई गेंडी भोजली  के साथ विसर्जित हो जाती है। गेंडी बांस का बना होता है जिसमें बच्चे और युवा चढ़ते हैं। ग्रामीण युवक गेंडी को सजाते है और उसकी सवारी करते हैं। भोजली विसर्जन के लिए लिए निकली रैली में गेंडी चढ़ने वाले युवक, बच्चे भोजली विसर्जन के लिए जा रहीं कन्याओं के पीछे पीछे रक्षक के रूप में जाते हैं और उनके साथ गेंडी का भी विजर्सन कर देते हैं।
आयुर्वेदिक महत्व – वैसे तो वैद्याचार्यों की माने तो भोजली का आर्युेदिक महत्व भी है। चूंकि यह अंधेरे में बिना सूर्य के रोशनी के तैयार होता है। इसलिए यह कैंसर के उपचार में भी उपयोगी हो सकता है ऐसा मानना है पुराने वैद्याचार्यों का….। लेकिन इसका अब तक कोई वैज्ञानिक आधार सामने नहीं आया है।
अन्नपूर्णा – भोजली की पूजा देवी के रूप में की जाती है। भोजली की पूजा मुख्यतः अन्नपूर्णा देवी के रूप में की जाती है। अन्नपूर्णा अर्थात अन्न अर्थात धन धान्य की पूर्ति करने वाली देवी।

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