कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने खोला मोर्चा…कलेक्टर पर बनाया दबाव…कहा..वापस लेना होगा तुगलकी फरमान

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—रायपुर कलेक्टर ने फरमान जारी कर एक दर्जन से अधिक तहसीलदारों के वेतन बृद्दि पर रोक लगा दिया है। मामले को लेकर तहसीलदार, अतिरिक्त तहसीलदार और नायब तहसीलदारों में आक्रोश है। सभी कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने कलेक्टर पर आदेश को वापस लेने का दबाव बनाया है। तहसीलदारों ने कहा कि दण्ड देने की शक्ति केवल आयुक्त को है। ऐसी सूरत में जिला प्रशासन को अधिकार नहीं है कि वेतन बृद्दि को रोकने का आदेश जारी करें।

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                   माालूम हो कि 31 जनवरी को रायपुर कलेक्टर ने जिले के 14 तहसीलदारों, अतिरिक्त तहसीलदारो और नायब तहसीलदारों का एक वेतन वृद्धि रोकने का फरमान जारी किया है। मामले को लेकर तहसीलदारों मेँ आक्रोश है। आज एक जुट होकर सभी तहसीलदारों ने जिला प्रशासन से आदेश वापस लेने का दबाव बनाया। साथ में अपनी बातों को कलेक्टर प्रशासन तक पहुंचाया है।

                    एकजुट होकर कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा बाटांकन कार्य नियमित प्रक्रिया है। नगरीय क्षेत्रो में कार्य के दौरान तहसील प्रशासन को कई प्रक्रार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शासन ने 29 दिसम्बर 2018 छोटे भूखंडों के पंजीयन करने के आदेश जारी किए हैं। लेकिन बताना जरूरी है कि 5 डिसिमल से छोटे भूखण्डों का नक्शे में बाटांकन संभव नहीं है। बावजूद इसके प्रतिदिन सैकड़ों भूखण्डों का बांटाकन किया जा रहा है। फिर भी लंबित नक्शा बाटांकन की संख्या बढ़ती जा रही है। तहसीलदारों ने बताया कि रायपुर में 40-50 सालों में बी-1 को दुरूस्त करने की परम्परा रही है। लेकिन तात्कालीन अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। ऐसी स्थिति में अत्यंत कम समय में बाटांकन कार्य को खत्म करना किसी भी सूरत में हाल फिलहाल संभव नहीं है।

                          नाराज तहसीलदारों ने कहा कि छोटे रकवे का बांटाकन संभव नहीं है। पटवारियों को बड़े पैमाने पर शासन से नक्शा देने का आश्वासन तो मिला।  लेकिन आज तक उपलब्ध नहीं कराया गया। बावजूद इसके प्रशासन का अव्यवहारिक निर्णय समझ से परे है।

                               पीडित अधिकारियों ने यह भी बताया कि मामले में देरी के लिए आवेदक और पक्षकार भी जिम्मेदार होते हैं। निराकरण को लेकर उनमें दिलचस्पी नहीं देखी जाती है। ना तो आवश्यक दस्तावेज पेश करते हैं। ना ही बांटाकन और निरीक्षण कार्य के समय मौजूद रहते हैं।

           तहसीलदारों ने कहा कि लंबित बाटांकन कार्य के लिए जिम्मेदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। क्योंकि लम्बित बांटाकन कार्य में कोई भी वर्तमान अधिकारी दोषी नहीं है। सालों साल का हजारों हजार बाटांकन कार्य चंद समय में सुलझाना किसी भी सूरत में संभव नहीं है। बावजूद इसके वर्तमान अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाना और जिम्मेदार ठहराना तर्क संगत नहीं है।

अतिरिक्त काम का भी बोझ 

                 तहसीलदार,अतिरिक्त तहसीलदार और नायब तहसीलदारों ने बताया कि हमारे साथ राजस्व कार्यों के अलावा अन्य जिम्मेदारियां भी हैं। कुछ कानूनी हैं तो कुछ थोपी गयी जिम्मेदारियां भी है। मजिस्ट्रेट सबंधी  कार्य, मर्ग पंचनामा प्रोटोकाल, कानून व्यवस्था, मतदाता सूची पुनरीक्षण, लोक सेवा गारंटी अधिनियम जैसे काम भी करने पड़ते हैं। इसके अलावा अन्य मौखिक आदेशों का भी पालन करना पड़ता है। प्रतिदिन नए नए काम बेगारी में थोप दिए जाते हैं। ऐसी स्थिति में राजस्व सबंधी कार्यों में प्रगति किस तरह संभव है।

                          कई तहसीलदारों ने यह भी कहा कि बाटांकन और सीमांकन का कार्य राजस्व निरीक्षकों की जिम्मेदारी में आता है। चूंकि कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को राजस्व के अलावा अन्य काम भी करने पड़ते हैं। ऐसी सूरत में वेतन वृद्धि पर रोक तुगलकी फरमान की तरफ इशारा करता है। यदि आदेश को वापस नहीं लिया गया तो जल्द ही कनिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी एक जुट होकर काम काज का बहिष्कार करेंगे। जरूरत पड़ी तो विरोध के अन्य तरीकों पर भी विचार करेंगे।

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