नारायणपुर-नारायणपुर की अंशु नाग अबूझमाड़ इलाके में गत सात सालों से बतौर नर्स अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनकी मां भी नर्स थी और अब रिटायर हो चुकी हैं। मां को लगन से सबकी सेवा करते देख और लोगों से मिले सम्मान और प्यार को देखकर उन्होने भी इसी पेशे को अपनाया। यहां के स्थानीय आदिवासियों का इलाज सही तरीके से करने एवं उनसे संवाद के लिए गोंडी बोली भी सीखी। जब उनकी मां शीला, शासकीय सेवा में थी तब नारायणपुर शहर में अधिकांश प्रसव (डिलीवरी) उन्ही के हाथों हुआ करते थे। लोगों में इतना विश्वास होता था कि अमीर-गरीब सभी परिवार प्रसव के लिए इनके पास ही आते थे।अब उनकी बेटी कुतुल, कोहकामेटा समेत दर्जनों गांव के ग्रामीणों को जागरूक करने के साथ ही कोविड वैक्सीन भी लगाती हैं।
अंशु ने तीन बार मौत को सामने देखा, उनके सामने ही तीन बार आई ई डी बम फटा और जवान भी शहीद हुए लेकिन निडरता के साथ वे सेवा करती रहीं। वे कीचड़ से सने रास्तों के बीच, कमर से ऊपर तक भरे नदी-नालों को पार कर माड़ के गांवों में पहुँचकर स्वास्थ्य सेवा दे रही हैं। कोरोना वायरस से जब वह संक्रमित हुई तो होम आइसोलेशन में रहकर अपनी रिटायर्ड नर्स मां की देखरेख में स्वस्थ होकर फिर से अबूझमाड़ के लोगों का दर्द साझा करने में जुट गई है। अंशु ने बताया कि पिछड़ेपन की वजह से ग्रामीणों में जागरूकता की कमी है। जिसकी वजह से अंदरूनी इलाकों में महिलाओं और बच्चों को विशेष देखरेख की आवश्यकता है। अंशु का मानना है कि जीवन में जितना हो सके अच्छा काम करना है और वे उसी सेवा भाव से जुटी रहती हैं।
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