किशोर सिंह ठाकुर।पेड़ों पर लाल रंग से लिखे ये गिनती के अंक नहीं है..बल्कि किसी जीव की चमड़ी को कुरेद कर, उसी के खून से उसकी मौत के पैगाम की तामिली की गई है…कि जल्द ही इस अंक के आधार पर तय की गई तारीख में उसके धड़ से सिर अलग करके उनकी बलि दे दी जाएगी और एक-एक करके उसके अंगों को तब तक काटा जाएगा, जब तक की उसकी अंतिम सांसे न थम जाए। मैं बात कर रहा हूं..बिलासपुर से कोटा रोड़ में 30 किलोमीटर सड़क के किनारे सीना ताने खड़े पेड़ों की।जिन पर पखवाड़े भर पहले उनकी चमड़ी की एक परत कुरेद का लाल रंग से अंक लिख दिया गया है। हरे भरे पड़ों को इस बात की तामिली की गई है कि उनकी बलि दिया जाना तय हो गया है। पेड़ों के मौत की तामिली की जानकारी मुझे इसलिए है कि मैं बीते लगभग 5 साल से प्रतिदिन कोटा डॉ.सी.वी.रामन् विश्वविद्यालय आना-जाना करता हूं। मैंने काफी करीब से हर मौसम में इनके खूबसूरत रंगों को देखा व महसूस किया है, और कभी सोचा भी नहीं था कि कोई ऐसा दिन भी आएगा, कि पेड़ों की मौत का पैगाम उनके खून से लिखा दिखाई देगा।
30 किलोमीटर दूर तक लगे पेड़ों की आयु 25-30 साल की समझ आ रही है। बात साफ है कि इतने सालों तक इस राह से गुजरने वाले राहगीरों को इन पेड़ों ने तपती गर्मी में छावं और बारिश में कुछ देर के लिए ही सही कुदरती छतरी दी होगी। इसके साथ पूरे क्षेत्र को प्रदूपण से मुक्त भी रखा है, ताकि लोग स्वच्छ हवा में सांस ले सकें। अब शासन ने सड़क चौड़ीकरण के लिए इनकी बलि का फरमान जारी किया है। इस बात में कोई दो मत नहीं है सड़क चौड़ी होने से यातायात सुगम होगा और आम जनता को सुविधा होगी। मैं विकास का विरोधी नहीं हुं और न ही जीवन को सुगम और सरल बनाने की सोच से इंकार करता हूं, पर क्या यह तय किया जाना जरूरी नहीं है कि इन पेड़ों की बलि के पहले यहां पेड़ लगाने के लिए क्या योजना तय की गई है यह भी सुनिष्चित किया जाए…? इस बात का कितना प्रयास किया गया कि नई तकनीक का उपयोग करके पेड़ों को शिफ्ट किया जा सके…? यहां की हरियाली और शुद्ध वातावरण को बनाए रखने के लिए कितने कारगर कदम उठाए गए..? इन पेड़ों की बलि की भरपाई की स्थिति में हम सार्थक रूप में कहां पर खड़े हैं…? व्यवस्था के जिम्मेदार लोग उन लोगों को क्या जबाव दे पाएंगे जिन लोगों ने 25-30 साल पहले इन पेड़ों को लगाया था
जिनके कर्ज तले हम आज भी दबे हुए हैं। क्या किसी के पास नैतिक रूप से इस बात का जबाव है…? पूर्वजों के अच्छे कर्म का सुख तो हमने भोग लिया और विकास के नाम पर उनके कर्मों के फल को बर्बाद कर दिया। अब क्या हम ऐसा कर्म कर रहे हैं, जिससे भावी पीढ़ी को हम मुंह दिखाने के काबिल रह सकें, शायद नहीं….। पेड़ लगाने के नाम कागजी दावों पर इठलाने और नई परंपरा के अनुसार राप्ट्रीय व अंतराप्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार लेने की जमीनी हकीकत कितनी है यह किसी से छिपा नहीं है। आज की पीढ़ी तक बात यहां तक आ पहुंची है कि मानव का प्रकृति के विरूद्व किए जाने वाले अत्याचार का विरोध मानव ही कर रहें हैं..लेकिन भय तो इस बात का है कि कहीं प्रकृति ने अपने विरुद्ध होने वाले अत्याचार का विरोध और बदला अपने तरीके से लिया तो क्या यह सृप्टि और मानव जीवित रहा पाएंगें। यह तो सोचना ही होगा।मौत के पैगाम की तामिली पर आगे की खबर देता रहूंगा।