बिलासपुर(प्राण चड्ढा)।छतीसगढ़ में धान उत्पादकों के लिये ‘बोनस तिहार’ के बाद अब सूखाग्रस्त रकबे में धान उत्पादन पर रोक लगा दी है। तर्क है, इस बार बारिश कम हुई,और धान के लिए पंप भूगर्भ का पानी खींच लेगें जिससे पेयजल समस्या उबर जायेगी। जिधर पानी कम रहा,वहां अकाल के बाद गर्मी का धान कम रकबे में किसान का सहारा बनता पर पहले उनको भगवान ने और अब सरकार की मार पड़ने वाली है।छतीसगढ़ का असंगठित किसान गरीब की भौजी है के समान है, जिससे मज़ाक हर कोई करता है,और कोई उसकी सुनता नहीं वो ये जानता है इसलिए सब्र किया है। विपक्ष उसके साथ रहता है,क्योकि मामला,थोक वोटों का है। ये रोक पानी लेने वाले उद्योगों पर नहीं। कमजोर किसान पर है। गन्ना उत्पादकों पर भी नहीं जो धान से अधिक पानी पंपों से सालभर लेते हैं।सरकार का तर्क है, किसान गर्मी में धान के बजाय,दलहन-तिलहन लगा लें,ना तो धान लगाने वालों को दाल और तेल के लिए खेती करने का सलीका पता है ना अच्छे बीज उनके पास। फसल चक्र की बात जोगी सरकार ने की पर उसके बाद कृषि विभाग ने कोई जोर नहीं दिया।जलप्रबन्ध पर सरकार काम करती होती तो जितनी वर्षा हुई वो भी गर्मी के धान और पेयजल के लिए काफी थी।
पर पानी नदियों से बहता गया। बह रहा है। हमारा विकास,सड़क,भवन उद्योग बन गया, ग्रामीण इलाके और कृषि दोयम स्थान पर उपेक्षित बन गए। हज़ारों लाखों पेड़ विकास के नाम पर काट डाले, पर जो लगे वो बढ़े, नहीं या कागजों में लगे। पेड़ लगाया तो गिलहरी, बादल, और चिड़िया भी लौट आती है, यह बाल कथा कैसे भूल गए।अब भी वक्त है बहते पानी को जहां है वहां रोकें और गर्मी के लिए पशुधन को पानी मिले। छतीसगढ़ में विकास की परिभाषा और प्रथमिकता तय हो। हमको समझना होगा सभी कारखाने केवल रूपान्तरण करते हैं, खेती ही एक बीज से सौ बीज का उत्पादन, उसको प्राथमिकता दी जाएं।