CG NEWS:कोरबा में आत्मानंद स्कूलों की मरम्मत का टेंडर सवालों के घेरे में… CM की घोषणा से जुड़े निर्माण कार्य में नियमों की अनदेखी …. ?

Chief Editor
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CG NEWS: कोरबा। कोरबा जिले के स्वामी आत्मानंद स्कूलों में मरम्मत और नए कमरे बनाने के लिए आदिवासी विकास विभाग की ओर से बुलाया गया चालीस करोड़ रुपये से अधिक का टेंडर सवालों के दायरे में नजर आ रहा है। जिसमें कई नियमों को ताक पर रखकर निविदा आमंत्रित की गई है। इन स्कूलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्माण कार्य की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने भेंट – मुलाकात कार्यक्रम के दौरान की थी। सीएम की घोषणा को पूरा करने के लिए कराए जा रहे काम में जिस तरह नियमों को नजरअंदाज़ किया जा रहा है, उससे पूरे सिस्टम पर सवाल उठने लगे हैं।
मिली ज़ानक़ारी के मुताब़िक कोरबा जिले के 40 से अधिक स्कूलों में मरम्मत और अतिरिक्त कमरों का निर्माण कराया जा रहा है। कुछ समय पहले जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने भेंट – मुलाकात कार्यक्रम के दौरान जिले के दौरे पर आए थे ,तब उन्होंने इसका ऐलान किया था। जानकारी मिली है कि इसके बाद ग्रामीण यांत्रिकी सेवा ( आर ई एस ) की ओर से 40 से अधिक स्कूलों की मरम्मत और निर्माण कार्य के लिए करीब चालीस करोड़ रुपये से अधिक का आर्किटेक्चर एस्टीमेट तैयार कराया गया था। एस्टीमेट तैयार होने के बाद निर्माण की जिम्मेदारी आरईएस से वापस लेकर आदिवासी विकास विभाग को दे दी गई। आदिवासी विकास विभाग ने शॉर्ट नोटिस पर पिछले 23 फरवरी को ई टेंडर नोटिस जारी कर दिया। जिसमें 28 मार्च तक की आखिरी तारीख दी गई है। यह जानकारी पब्लिक डोमेन में है कि 42 स्कूलों का यह टेंडर पांच ग्रुप में विकासखंड वार निकाला गया है। जानकारों की माने तो इस टेंडर में कई खामियां हैं और यह सवालों के दायरे में है ।सबसे अहम सवाल यह है कि आर ई एस की बजाए आदिवासी विकास विभाग को काम की जिम्मेदारी क्यों दी गई और इस विभाग ने टेंडर क्यों जारी किया …? जबकि आदिवासी विकास विभाग के पास करोड़ों के निर्माण के लिए पर्याप्त और सक्षम टेक्निकल टीम नहीं होती है। करीब 44 करोड से अधिक का यह टेंडर नियम के अनुसार शासन के स्तर पर निकाला जाना चाहिए। इस संबंध में पहले जारी किए गए गाइडलाइन के मुताबिक ऐसे निर्माण कार्यों में कलेक्टर 50 लाख रुपए और परियोजना प्रशासक 25 लाख रुपए तक की प्रशासनिक स्वीकृति दे सकते हैं।
जानकार यह भी बताते हैं कि निविदा आमंत्रित करने के लिए शासन की ओर से निर्धारित समय अवधि को भी दरकिनार किया गया है। नियम के मुताबिक प्रथम निविदा आमंत्रण के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है। लेकिन इस टेंडर में 1 महीने से अधिक का समय दिया गया है। इस निविदा में शासन की ओर से जारी वित्तीय अधिकार पुस्तिका में दिए गए निर्देशों के तहत निर्धारित सीमा से अधिक की लागत का टेंडर जारी किया गया है। शासन स्तर पर तकनीकी विभाग से शेड्यूल और एनआईटी अनुमोदन लिए बिना भी निविदा आमंत्रित की गई है ।सीधा और सरल गणित है कि यदि ऐसा किया गया है तो इससे कुछ ख़ास ठेकोदारों को ही फ़ायदा पहुंचाने का मक़सद हो सकता है। ज़ाहिर सी बात है कि इससे छोटे ठेकोदारों को मौक़ा नहीं मिल सकेगा। यह भी अज़ब़ इत्तफ़ाक है कि 23 फरवरी को यह टेंडर जारी हुआ और 27 फरवरी को आदिवासी विकास विभाग के उपायुक्त का तबादला हो गया। जो पहले पदस्थ रहे कलेक्टर के कार्यकाल के दौरान भी चर्चा में रहे हैं । यह विभाग कुछ समय पहले ईडी की ओर से की गई छानबीन को लेकर भी चर्चा में रहा है। अब नियमों को ताक पर रखकर टेंडर जारी करने के बाद एक बार फिर यह विभाग चर्चा में आ गया है।ख़बर तो यह भी है कि मुख्यमंत्री की घोषणा से जुड़े निर्माण कार्य में चल रहे इस पूरे खेल की जानकारी कोरबा के जन प्रतिनिधियों तक भी पहुंच गई है औऱ ज़िले के ज़िम्मेदार अफ़सरों को भी इस बारे में बताया गया है। फ़िर भी इस पर कोई रोक नहीं लग रही है तो लोग नीचे से ऊपर तक को तार ज़ोड़कर देखने लगे हैं ।

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