कही-सुनी : भूपेश बघेल ने पलटी बाजी

Shri Mi
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(रवि भोई)छत्तीसगढ़ में करीब साढ़े चार साल तक सरकार और संगठन के भीतर चल रहे अंतर्द्वंद्व के बाद इस हफ्ते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एकदम से बाजी पलट दी। आदिवासी नेता मोहन मरकाम को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी से उतारकर मंत्रिमंडल में शामिल कर अपने अधीन कर लिया। लोगों को कई मौकों पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के बीच तलवार खिंची नजर आई। मोहन मरकाम कई बार मजबूत भी लगे। महामंत्रियों के काम के बंटवारे को लेकर प्रभारी महासचिव सैलजा की चिट्ठी पर समीक्षा की बात कर मोहन मरकाम ने प्रदेश की राजनीति को नई दिशा दे दी, पर यही बात उनके गले की फ़ांस बन गई और अध्यक्ष पद से उनकी विदाई हो गई। भूपेश बघेल अध्यक्ष पद पर अपने पसंद के नेता दीपक बैज को बैठाने में सफल रहे। अब विधानसभा चुनाव के वक्त प्रत्याशी चयन से लेकर रणनीति तक में भूपेश बघेल का सिक्का चलने की बात कही जा रही है। कहते हैं भूपेश बघेल ने प्रभारी महासचिव सैलजा को भी अपने पक्ष में कर लिया है। शुरूआती दिनों में मुख्यमंत्री निवास से अपने को दूर बनाए रखी सैलजा का परहेज अब खत्म दिखाई पड़ रहा है। माना जा रहा है कि उपमुख्यमंत्री का तमगा और ऊर्जा विभाग मिलने से टी एस सिंहदेव ने भी तलवार म्यान में रख लिया है। कहा जा रहा है कि टी एस सिंहदेव अब अंबिकापुर से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और सरगुजा से अधिक से अधिक सीटों में कांग्रेस की जीत के लिए काम भी करेंगे। वहीं उनके परिवार से किसी के भाजपा में जाने की हवा का बहना भी बंद हो जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने करीब-करीब एक पखवाड़े में अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की हवा निकालकर कुशल और चतुर राजनीतिक खिलाड़ी होने की मिसाल पेश कर दी।

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रविंद्र चौबे से कृषि विभाग क्यों हटा ?
भूपेश बघेल सरकार में शुरू से रविंद्र चौबे कृषि और जल संसाधन मंत्री थे। अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नए सिरे से विभागों के बंटवारे में रविंद्र चौबे से कृषि और किसान किसान कल्याण विभाग हटाकर मंत्री ताम्रध्वज साहू को दे दिया है। गौर करने वाली बात है कि मुख्यमंत्री ने रविंद्र चौबे से कृषि विभाग ले लिया, पर उससे जुड़े मछली पालन और पशुपालन वे यथावत देखते रहेंगे। वैसे मुख्यमंत्री ने रविंद्र चौबे को स्कूल शिक्षा जैसा बड़ा विभाग दिया है साथ में सहकारिता की भी जिम्मेदारी दी है। पंचायत और ग्रामीण विकास के साथ जलसंसाधन एवं संसदीय कार्य तो रहेगा ही। कृषि का हटना लोगों को खटक रहा है। चर्चा है कि कृषि विभाग से जुड़े कुछ अफसरों की मर्जी रविंद्र चौबे के सामने चल नहीं पा रही थी।

रेणु पिल्ले का मन बदला
कहते हैं 1991 बैच की आईएएस रेणु पिल्ले अब भारत सरकार में जाने की इच्छुक नहीं हैं। बताते हैं वे अब छत्तीसगढ़ में ही रहना चाहती है। खबर है कि उन्होंने मुख्य सचिव के माध्यम से सरकार को छत्तीसगढ़ में ही सेवा देने के लिए आवेदन किया है। रेणु पिल्ले मुख्य सचिव के बाद राज्य की सबसे सीनियर अफसर हैं और वे फरवरी 2028 तक सेवा में रहेंगी। रेणु पिल्ले फिलहाल स्वास्थ्य विभाग में एसीएस हैं। केंद्र सरकार की अपॉइंटमेंट कमेटी ने उन्हें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में सचिव के पद पर नामित किया है। कहा जा रहा है कि रेणु पिल्ले को एक अगस्त को नया पदभार ग्रहण करना है, क्योंकि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सचिव उपमा श्रीवास्तव 31 जुलाई को रिटायर हो रही हैं। अब देखते हैं छत्तीसगढ़ सरकार रेणु पिल्ले को भारत सरकार के लिए रिलीव करती है या राज्य में ही रखती है।

आखिर प्रेमसाय सिंह ही क्यों शिकार बने ?
मोहन मरकाम को मंत्री बनाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रेमसाय सिंह टेकाम का इस्तीफा क्यों लिया ? दिग्विजय सिंह और अजीत जोगी के कैबिनेट में रहे प्रेमसाय सिंह टेकाम को टी एस सिंहदेव का करीबी माना जाता है। कहते हैं सिंहदेव की सिफारिश पर ही 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रेमसाय को टिकट मिली थी और उनके कोटे से मंत्री बने थे। कहते हैं मोहन मरकाम का झुकाव भी सिंहदेव की तरफ था। अब सिंहदेव उपमुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं। कहा जा रहा है कि सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजे जाने से किसी को शिकार होना था। ऐसे में प्रेमसाय सिंह शिकार हो गए। वैसे भी सरगुजा संभाग से तीन मंत्री थे और बस्तर संभाग से एक मंत्री था। संतुलन के लिए सरगुजा से एक का जाना तय था और प्रेमसाय को ड्राप करने की अफवाह तो पिछले कुछ सालों से चल रही थी। वह मोहन मरकाम की इंट्री से सही हो गई। प्रेमसाय सिंह का मन रखने के लिए उन्हें राज्य योजना आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। इस पद के कारण गाड़ी बंगला बचा रहेगा। लेकिन लोगों को उनके विधानसभा टिकट पर खतरा नजर आने लगा है।

चुनाव दफ्तर में एडिशनल सीईओ की पोस्टिंग पेंडिंग
कहते हैं छत्तीसगढ़ के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय में एक अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की पोस्टिंग का मामला पेंडिंग है। कुछ महीने पहले एडिशनल सीईओ के पद पर पोस्टिंग के लिए 2007 बैच के तीन अफसरों का पैनल मुख्यमंत्री को भेजा गया था। खबर है कि एडिशनल सीईओ की पोस्टिंग का मामला मुख्यमंत्री से भारत निर्वाचन आयोग तक पहुँचने की जगह बीच में ही अटक गया। अब चर्चा है कि एडिशनल सीईओ की जगह ज्वाइंट सीईओ से 2023 के विधानसभा चुनाव का कार्य संपन्न कराया जाएगा। ज्वाइंट सीईओ के लिए 2011 बैच के आईएएस अफसरों का पैनल बनाया जा रहा है। अब देखते हैं सरकार क्या फैसला करती है ? वैसे उप मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पद पर पदस्थ अफसरों को तत्काल कार्यभार ग्रहण करने को कहा जा रहा है। सरकार ने ऐसे कुछ अफसरों को दो दिन पहले एकतरफा रिलीव भी करने का आदेश जारी भी कर दिया। माना जा रहा है 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए यह जरुरी भी था।

सत्र के बाद बदलेंगे कुछ कलेक्टर
कहते हैं विधानसभा सत्र के बाद चार-पांच जिलों के कलेक्टर इधर से उधर हो सकते हैं। चर्चा है कि इस फेरबदल में बिलासपुर, दुर्ग और रायपुर संभाग का एक-एक जिला और बस्तर संभाग के दो कलेक्टर प्रभावित हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि एक-दो कलेक्टरों को चुनावी दृष्टि से तो एक-दो को एक जगह पर काफी दिनों से पोस्टिंग के कारण बदला जा सकता है। चुनाव की दृष्टि से कुछ जिलों के एसपी भी बदले जाने की चर्चा है। मंत्रिमंडल में कुछ मंत्रियों के विभागों में हेरफेर के बाद मंत्रालय स्तर पर भी कुछ अफसरों के विभाग बदलने की बात चल रही है।

डॉ रमनसिंह और बृजमोहन में रेस
कहते हैं प्रदेश चुनाव समिति और चुनाव प्रबंध समिति का प्रमुख बनने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल दौड़ में शामिल हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए दोनों समितियों की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। अब देखते हैं बाजी कौन जीतता है। वैसे भाजपा हाईकमान ने चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी प्रदेश प्रभारी ओम माथुर और केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया को सौंपी है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक हैं।)

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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