अनुकम्पा नियुक्ति घोटाला में नया मोड़..अपात्र को बचाने विभाग ने झोंकी ताकत..दस्तावेजों से हुआ खिलवाड़..लोगों ने जांच कमेटी पर उठायी उंगलियां

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—- जिला शिक्षा विभाग में अनुकम्पा नियुक्ति में भर्ती किए गए अपात्र को बचाने अधिकारियों ने पूरी ताकत झोंक दी है। लोगों को बताया जा रहा है कि शिक्षाकर्मी शासकीय सेवक की श्रेणी में नही आते हैं। इसलिए श्वेता सिंह की नियुक्ति वैध है। जबकि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है। खुद जांच कमेटी के सदस्यों ने बताया कि शिक्षाकर्मी सरकारी सेवक हैं।बहरहाल विभाग के अधिकारी श्वेता सिंह को बचाने कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं। यह जानते हुए भी श्वेता सिंह की तरफ से पेश किए गए सभी दस्तावेज फर्जी हैं।

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                   जानकारी देते चलें कि कोरोना काल के बाद शासन के विशेष निर्देश पर 10 प्रतिशत कोटा के आधार पर अनुकम्पा नियुक्ति का आदेश दिया गया। बिलासपुर में भी दर्जनों लोगों की नियुक्ति हुई। सीजीवाल के पास पुख्ता प्रमाण है कि इस दौरान 6 अपात्र लोगों को अनुकम्पा नियुक्ति का आदेश दिया गया है। इसमें एक नाम श्वेता सिंह है। जिसकी एक टीम जांच कर रही है। मामले को शिक्षामंत्री के सामने भी उठाया गया था। और कलेक्टर ने मामले में दो बार जांच का आदेश दिया था।

                आदेश के बाद सिर्फ श्वेता सिंह मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय टीम का गठन किया गया। टीम ने जांच पूरी कर ली है। टीम के अध्यक्ष तखतपुर बीईओ आरके अंचल है। जबकि अन्य दो सदस्यों का नाम मल्टीपरपज स्कूल के प्राचार्य राघवेन्द्र गौरहा और प्राचार्य मृदुला त्रिपाठी शामिल है।

कमेटी पर उठने लगे सवाल

           शिक्षा विभाग के ही सूत्र ने बताया कि मौजूदा जांच कमेटी को कोई अधिकार नहीं है कि मामले में जांच करे। क्योंकि श्वेता सिंह की नियुक्ति डीईओ के आदेश से हुआ है। तत्कालीन समय प्रभारी डीईओ दासरथी थे। जांच में मातहत कर्मचारी है। इसलिए उसे जांच का कोई अधिकार नहीं है। मामले में कलेक्टर के आदेश पर उच्च अधिकारियों की टीम बनाकर जांच किया जाना उचित होगा।

 क्या है मामला                

        श्वेता सिंह सूरजपुर जिला स्थित भैयाधान के बीईओ मनमोहन सिंह पवार की छोटी बहू हैं। मनमोहन सिंह की आकस्मिक मौत 16 दिसम्बर 2018 में हो गयी। शासन के आदेश के बाद अनुकम्पा नियुक्ति अभियान चलाया गया। तीन महीने पहले सभी के साथ श्वेता सिंह को भी अनुकम्पा नियुक्त दिया गया। आरोप है कि श्वेता ने गलत दस्तावेजों के साथ नौकरी हासिल किया है।

क्या है नियम          

            शासन के नियमानुसार अनुकम्पा नियुक्ति की तमाम शर्तों के बीच लाभान्वित होने वाले परिवार का किसी भी सदस्य को सरकारी कर्मचारी नहीं होना चाहिए। लेकिन श्वेता सिंह मा्मले में ऐसा कुछ भी नहीं है।

                  मनमोहन सिंह पवार के दो पुत्रों में दोनो ही शिक्षा विभाग में शिक्षक हैं। बड़ी बहू भी शिक्षिका है। बावजूद इसके श्वेता सिंह को फर्जी दस्तावेज के आधार पर नियुक्ति पत्र थमा दिया गया।

पायी गयी थी कमियां

               जानकारी के अनुसार अनुकम्पा नियुक्ति छानबीन समिति ने सूची जारी करने के साथ प्रत्येक अनुकम्पा नियुक्ति पात्र को कुछ कमियों को पूरा करने का निर्देश दिया। इसमें श्वेता सिंह के कालम में बताया कि उन्होने परिवार  में किसी शासकीय सेवक के होने का शपथ पत्र नहीं दिया। परिवार सूची की जानकारी नहीं दी है। मृतक का मृत्यु प्रमाण पत्र भी मांगा गया।

बचाने को लेकर चला गया दांव पेंच     

           इस बीच सूत्र ने बताया कि श्वेता सिंह ने 7 जनवरी 2019 को को शपथ पत्र दिया है कि उनके परिवार में कोई भी सदस्य सरकारी सेवक नहीं है। जबकि शपथ पत्र पूरी तरह से गलत है। मनमोहन सिंह पवार की मौत 16 दिसम्बर 2018 को हुआ। उनका बड़ा पुत्र अखिलेन्द्र प्रताप सिंह,वसंत प्रताप सिंह शिक्षाकर्मी थे। अखिलेन्द्र प्रताप सिंह का संविलियन 1 जुलाई 2018 को हुआ है। एक तो वह शिक्षाकर्मी थे..दूसरा उनका संविलियन मौत से पहले हो चुका है। बावजूद इसके शिक्षा विभाग की टीम अपात्र को पात्र ठहराने में कोई कोर कसर छोड़ने को तैयार नहीं है। 

                   जानकारी देते चलें कि जब श्वेता सिंह ने 7 जनवरी 2019 को शपथ पत्र दिया था।  फिर भी छानबीन समिति ने सरकारी सेवक होने का शपथ क्यों मांगा। और श्वेता ने क्यों नहीं बताया कि अखिलेन्द्र सिंह सरकारी सेवक है। जबकि उनका पति भी शिक्षाकर्मी है। 

                              सूत्र की माने तो मनमोहन सिंह पवार में श्वेता का नाम नहीं है। लेकिन अपात्र को पात्र बनाने के लिए दस्तावेज में इस दौरान नाम जोड़ दिया गया। यदि सही तरीके से छानबीन होती है तो मामला गंभीर होने से कोई इंकार नहीं कर सकता है। 

 अपात्र को बचाने दिया जा रहा तर्क            

                  बहरहाल शिक्षा विभाग के कुछ लोग अपात्र को पात्र बनाने शिद्दत के साथ काम कर रहे हैं। पहले तो यह बताया जा रहा है कि शिक्षाकर्मी सरकारी सेवक है। लेकिन परिवार में सरकारी सेवक है..इस बात को गंभीरता के साथ छिपाया जा रहा है। इसके लिए दस्तावेजों के साथ जमकर खिलवाड़ भी किया जा रहा है। जांच कमेटी पर भी दबाव बनाकर अपात्र को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।   

हमें दस्तावेज जांचने का अधिकार

             तत्कालीन समय प्रभारी डीईओ पी.दासरथी ने बताया कि कौन फर्जी दस्तावेज जमा किया और किसने असली दस्तावेज। कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच इसकी जानकारी हमें नहीं होती है। हम पेश किए गए दस्तावेज की जांच करते हैं। सही पाए जाने पर मुहर लगाते हैं। शिकायत के बाद जांच होती है। मामले मैं जांच टीम अपना काम कर रही है। रिपोर्ट भी जल्द सामने आ जाएगा।

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