Pongal 2024- विस्तार से जानें कब से शुरू होने वाला है पोंगल और क्या हैं इससे जुड़ी मान्यताएं

Shri Mi

Pongal 2024: पोंगल दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाने वाली एक बेहद ही अहम हिंदू पर्व है. उत्तर भारत में जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है. ठीक उसी प्रकार तमिलनाडु में पोंगल की बड़ी धूम देखने को मिलती है.

Join Our WhatsApp Group Join Now

पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नए साल का शुभारंभ होता है. पोंगल पर्व का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है. तमिलनाडु के अलावा श्रीलंका, कनाडा और अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में रहने वाले तमिल भाषी लोग इस पर्व को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं.Pongal 2024

पोंगल का महत्व/Pongal 2024

पोंगल पर्व का मूल कृषि है. सौर पंचांग के अनुसार, यह त्योहार तमिल माह की पहली तारीख यानी 15 जनवरी को आता है. जनवरी तक तमिलनाडु में गन्ना और धान की फसल पक कर तैयार हो जाती है. प्रकृति की असीम कृपा से खेतों में लहलाती फसलों को देखकर किसान खुश हो जाते हैं और प्रकृति का आभार प्रकट करने के लिए इंद्र, सूर्यदेव और पशु धन यानी गाय, बैल की पूजा करते हैं.

यह त्योहार मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है लेकिन इस पर्व का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व मानव समुदाय के लिए बेहद अहम है. इस त्योहार पर गाय के दूध में उफान या उबाल को महत्व दिया जाता है. मान्यता है कि जिस तरह दूध का उबलना शुभ है, ठीक उसी तरह मनुष्य का मन भी शुद्ध संस्कारों से उज्जवल होना चाहिए.

Pongal 2024/कब से शुरू होगा पोंगल 2024?

इस बार पोंगल 15 जनवरी 2024 से शुरू होगा और 18 जनवरी 2024 को समाप्त होगा. यह उत्सव लगातार 4 दिनों तक चलता है. इस दौरान घरों की सफाई और लिपाई-पुताई शुरू हो जाती है. मान्यता है कि तमिल भाषी लोग पोंगल के अवसर पर बुरी आदतों का त्याग करते हैं. इस परंपरा को ही पोही कहा जाता है.

पोंगल का पहला दिन

पोंगल का पहला दिन देवराज इंद्र को समर्पित होता है इसे भोगी पोंगल कहते हैं. देवराज इंद्र वर्षा के लिए उत्तरदायी होते हैं, इसलिए अच्छी बारिश के लिए उनकी पूजा की जाती है और खेतों में हरियाली व जीवन में समृद्धता की कामनी की जाती है. इस दिन लोग घरों में पुराने हो चुके सामान की होली जलाते हैं. इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अग्नि के चारों ओर लोक गीत पर नृत्य करती हैं. इस परंपरा को भोगी मंटालू कहते हैं.

पोंगल का दूसरा दिन

सूर्य के उत्तरायण होने के बाद दूसरे दिन सूर्य पोंगल मनाया जाता है. इस दिन पोंगल नाम की विशेष खीर बनाई जाती है. इस मौके पर लोग खुले आंगन में हल्दी की गांठ को पीले धागे में पिरोकर पीतल या मिट्टी की हांडी के ऊपर बांधकर उसमें चावल और दाल की खिचड़ी पकाते हैं. खिचड़ी में उबाल आने पर दूध और घी डाला जाता है. खिचड़ी में उबाल या उफान आना सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. पोंगल तैयार होने के बाद सूर्यदेव की पूजा की जाती है. इस मौके पर लोग गाते-बजाते हुए एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.

पोंगल का तीसरा दिन

पोंगल पर्व के तीसरे दिन यानी मात्तु पोंगल पर कृषि पशुओं जैसे गाय, बैल और सांड की पूजा की जाती है. इस मौके पर गाय और बैलों को सजाया जाता है और उनके सींगों को रंगकर उनकी पूजा की जाती है. इस दिन बैलों की रेस यानी जल्ली कट्टू का आयोजन किया जाता है. मात्तु पोंगल को केनु पोंगल के नाम से भी जाना जाता है जिसमें बहनें अपने भाइयों की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं.

पोंगल का चौथा दिन

पोंगल त्योहार के आखिरी दिन कन्या पोंगल मनाया जाता है, इसे तिरुवल्लूर के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन घरों को फूलों से सजाया जाता है. दरवाजे पर आम और नारियल के पत्तों से तोरण बनाकर लगाए जाते हैं. इस मौके पर महिलाएं आंगन में रंगोली बनाती हैं. चूंकि इस दिन पोंगल पर्व का समापन होता है इसलिए लोग एक-दूसरे को बधाई और मिठाई देते हैं.Pongal 2024

पोंगल का इतिहास

पोंगल एक प्राचीन त्योहार है जो संगम काल से चोल वंश के बीच कभी अस्तित्व में आया था. इस उत्सव को द्रविड़ युग के दौरान मनाया जाता है. इतिहासकारों की मानें तो संगम युग में आज के पोंगल को थाई निरादल के रूप में मनाया जाता था. ये उत्सव करीब 2000 साल पुराना है. इस उत्सव का जिक्र पुराणों में भी किया गया है.Pongal 2024

TAGGED:
By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close