पढ़िए…वो कौन थे…जिनके नाम पर बनी सेन्ट्रल लाइब्रेरी,उनकी यादों को ज़िंदा रखने बिलासपुर नगर पालिका नें 50 साल पहले पारित किया था प्रस्ताव

Shri Mi
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(गिरिज़ेय) नूतन चौक में बनाई गई सेंट्रल लाइब्रेरी अब बिलासपुर की नई पहचान बनेगी। साथ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बिलासपुर के पहले विधायक डॉ. शिव दुलारे मिश्र की भी पहचान चिरस्थाई हो गई है । जिनके नाम पर सेंट्रल लाइब्रेरी का नामकरण छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया है। बिलासपुर शहर को मिली सेंट्रल लाइब्रेरी की यह सौगात आज की पीढ़ी को पढ़ने -लिखने और किताबों के नजदीक आने की प्रेरणा भी देगी। इसके साथ ही आज की पीढ़ी और आने वाले कल के लोगों को यह मालूम चल सकेगा कि पं. डॉ. शिव दुलारे मिश्र जैसी हस्तियां भी बिलासपुर में रही हैं । जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में आगे बढ़कर अपनी हिस्सेदारी निभाई ।

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फिर आजादी के बाद नगर पालिका और विधानसभा में शहर के लोगों की नुमाइंदगी करते हुए शहर की तरक्की में अपने हिस्से का काम पूरा किया।इस नामकरण से सेन्ट्रल लाइब्रेरी बिलासपुर शहर के सांस्कृतिक – साहित्यिक मिजाज और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अनूठे संगम के रूप में स्थापित हुई है। डॉ. शिव दुलारे मिश्र के बारे में जानने की दिलचस्प बात यह भी है कि उनके निधन के बाद 1970 में तब की नगर पालिका परिषद ने उनकी समाज सेवा और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी को यादगार बनाए रखने के लिए एक स्मारक बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था। जो पूरे 50 साल बाद पूरा हो सका है और शहर में बनी नई सेंट्रल लाइब्रेरी का नामकरण डॉ. शिव दुलारे मिश्र के नाम पर किया गया है।

बिलासपुर शहर की जिस पीढ़ी ने ब्रितानी हुकूमत के दिन देखे हैं। जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बिलासपुर की हिस्सेदारी को देखा है और आजादी के बाद के दौर में शहर को बनते देखा है । उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि डॉ. शिव दुलारे मिश्र की इसमें कैसी और कितनी हिस्सेदारी रही है। लेकिन आज के दौर के लोगों के लिए यह जानने की बात है कि शहर में ऐसी भी हस्तियां रही है , जिन्होंने उस राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी निभाई और अपना नाम अमर कर गए। पंडित शिव दुलारे मिश्र का नाम भी उन हस्तियों में शुमार है। उनका जन्म 18 80 में हुआ था। उन्होंने बिलासपुर के गवर्नमेंट मल्टीपरपज स्कूल से हाई स्कूल की पढ़ाई की थी। वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पूर्व गवर्नर ई. राघवेंद्र राव के सहपाठी थे। परिवार से यह जानकारी मिली कि उन दिनों में बिलासपुर में हाई स्कूल बोर्ड परीक्षा का सेंटर नहीं हुआ करता था। लोग परीक्षा दिलाने कोलकाता जाया करते थे। शिव दुलारे मिश्र और राघवेंद्र राव भी कोलकाता जाकर परीक्षा दी। उसके बाद शिव दुलारे मिश्र कोलकाता में ही नेशनल मेडिकल कॉलेज मे मेडिकल की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। जहां से उन्होंने डिग्री हासिल की। नेशनल मेडिकल कॉलेज़ में ऐसे लोग भी उनके सहपाठी थे, ज़िन्होने बाद में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहच़ान बनाई ।

फिर बिलासपुर आ कर उन्होंने एक चिकित्सक के रूप में अपनी सेवाएं दीं। डॉ शिव दुलारे मिश्र बिलासपुर शहर ही नहीं आसपास इलाके के काफी लोकप्रिय चिकित्सक थे । बीमारी को पकड़ने और डायग्नोसिस के साथ ही इलाज को लेकर उनकी महारत हासिल थी । जिससे दूर-दूर के लोग भी बिलासपुर आकर उनसे इलाज कराते थे। जिन दिनों शिव दुलारे मिश्र बिलासपुर में एक चिकित्सक की के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे ,उस समय देश की आजादी को लेकर संघर्ष चल रहा था। डॉ. शिव दुलारे मिश्रा राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत होकर इस लड़ाई में शामिल हो गए। वह बिलासपुर में रहकर स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग करते रहे। उस दौरान राष्ट्रीयता की भावनाओं को के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता और ज्यादतियों को जन जन तक पहुंचाने के लिए वे साइक्लोस्टाइल के जरिए अपने स्तर पर यह काम पूरा करते रहे। उनका संपर्क राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से था। उनके बारे में यह भी बताया गया कि उत्तर प्रदेश मैं सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी क्रांति कुमार भारती को बिलासपुर लाने में उनका प्रमुख योगदान था। तब के प्रमुख लोगों के साथ मिलकर उन्होंने राष्ट्रीयता आंदोलन के लिए कई अहम कार्य किए।

किताबों में भी इस बात का जिक्र है कि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने कर्मवीर अखबार के जरिए छात्रों को स्कूल कॉलेज के बहिष्कार की प्रेरणा दी थी। जिस से प्रभावित होकर बिलासपुर के त्रिभुवन लाल .मोहनलाल .मुरलीधर मिश्र. लक्ष्मण प्रसाद .पंचम सिंह आदि ने ब्रितानी हुकूमत के स्कूल छोड़ दिए। इन छात्रों के अध्ययन की को लगातार आगे भी जारी रखने के लिए बिलासपुर में राष्ट्रीय विद्यालय खोला गया। बिलासपुर का राष्ट्रीय विद्यालय बद्रीनाथ साहू के मकान में खोला गया था। इस राष्ट्रीय विद्यालय का संचालन डॉ. शिव दुलारे मिश्र करते थे। इस स्कूल में बाबू यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव पढ़ाया करते थे। इतिहास की किताबों में इस बात का भी जिक्र है कि आजादी की लड़ाई के दौरान सविनय अवज्ञा आंदोलन दो चरणों में पूरा हुआ था। पहला चरण मार्च 1930 से मार्च 1931 तक और दूसरा चरण 1932 से 1934 तक हुआ। इसी समय प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क्रांति कुमार भारती बिलासपुर आए थे । 17 मई 1930 को ठाकुर छेदीलाल की अध्यक्षता में जिला राजनीतिक परिषद का सम्मेलन हुआ था । इधर बिलासपुर नगर पालिका समिति की बैठक हुई। जिसमें एक प्रमुख सदस्य डॉ शिव दुलारे मिश्र ने लिखित प्रस्ताव रखा कि कुछ शासकीय भावनों पर विशेष अवसरों पर झंडा फहराया जाए। डॉ. मिश्र के इस विचार इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए 27 जनवरी 1930 को नगर पालिका समिति की बैठक बुलाई गई और बहुमत से यह प्रस्ताव पारित भी कर दिया गया। 4 अगस्त 1930 को क्रांति कुमार भारती की अगुवाई में बिलासपुर के टाउन हाल में झंडा फहराने के लिए एक जुलूस निकला। कंपनी गार्डन के पास जुलूस को रोकने के लिए तब के डीएसपी कॉलिन्स और डिप्टी कमिश्नर दल बल के साथ मौजूद थे। फिर भी सत्याग्रहियों ने टाउन हॉल तक पहुंचकर झंडा फहराया। क्रांति कुमार भारती को 16 अगस्त 1930 को 6 महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। ( इतिहास के लेखक डॉ. रामगोपाल शर्मा की किताब छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्वतंत्रता संग्राम आँदोलन में इसका ज़िक्र है.)

डॉ. शिव दुलारे मिश्र ,महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे और जब महात्मा गांधी का रायपुर दौरा कार्यक्रम बना तो वह उन्हें बिलासपुर भी लाना चाहते थे। बताया गया कि बिलासपुर में महात्मा गांधी का दौरा कार्यक्रम बनाने के लिए वे बिलासपुर के अपने कुछ साथियों के साथ रायपुर गए। जहां उन्होंने पुरजोर तरीके से अपनी बात रखते हुए महात्मा गांधी के बिलासपुर दौरे का कार्यक्रम बनाने की वक़ालत की । जिससे कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा सका। डॉ. शिव दुलारे मिश्र के पोते और कांग्रेसी नेता शिवा मिश्रा बताते हैं कि उस समय खुली जीप में महात्मा गांधी बिलासपुर की प्रमुख सड़कों पर से निकले थे। उन्हें खुली गाड़ी में जिस कुर्सी पर बिठाया गया था ,वह कुर्सी आज भी उनके घर पर सुरक्षित है। साथ ही जिस ब्लड प्रेशर मशीन से महात्मा गांधी का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, वह भी आज तक उनके पास मौजूद है।

आजादी की लड़ाई के दौरान डॉ. शिव दुलारे मिश्र लगातार सक्रिय रहे और स्वतंत्रता सेनानियों को मदद करते रहे । साथ ही जनता के बीच सेवा देते हुए लोकप्रियता हासिल की। उस समय लोग उन्हें सम्मान के साथ “दादा” कहा करते थे। आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में 1952 में डॉ शिव दुलारे मिश्र बिलासपुर के पहले विधायक चुने गए और 1962 तक विधानसभा में बिलासपुर का प्रतिनिधित्व किया।बिलासपुर के प्रति लगाव और यहां के लोगों के साथ सतत संपर्क बनाए रखने की उनकी ललक की एक मिसाल यह भी है कि उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल ने डॉ. शिव दुलारे मिश्र को मंत्रिमंडल में शामिल करने की पेशकश की थी। लेकिन अपने शहर को अधिक समय देने की लालसा के साथ उन्होंने कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया था। शिवदुलारे दुलारे मिश्रा 1906 से स्वतंत्र आंदोलन में सक्रिय रहे । आजादी के पहले कई साल तक डिस्टिक काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे। बिलासपुर नगर पालिका में 22 वर्षों तक पार्षद रहते हुए उन्होंने आम लोगों के बीच रहकर उनका प्रतिनिधित्व किया। वे कई साल तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे।

1970 में डॉ. शिव दुलारे मिश्र का निधन हुआ। उनके निधन के बाद तब की नगर पालिका में 30 जनवरी 1970 को एक पार्षदों की बैठक बुलाई गई । जिसमें शोक प्रस्ताव पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में लिखा गया है कि “ नगर पालिका बिलासपुर की यह सभा बिलासपुर जिले के ऋषि तुल्य पितामह सुप्रसिद्ध समाजसेवी और स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी श्रद्धेय डॉ. शिव दुलारी जी मिश्र के निधन पर शोक व्यक्त करती है। डॉक्टर साहब महान देशभक्त और सुप्रसिद्ध समाजसेवी थे। जिले के प्रत्येक नागरिक के जनमानस में आपके प्रति अद्भुत श्रद्धा थी । आप शहर के दादा के रूप में सुप्रसिद्ध रहे। डॉक्टर साहब 22 वर्षों तक नगर पालिका के सदस्य एवं अनेक वर्षों तक उपाध्यक्ष पद पर रहकर जनता की सेवा में तल्लीन रहे एवं सन 1952 से 1962 तक आप विधानसभा के जागरूक सदस्य रहकर जनता की आवाज विधानसभा में बुलंद करते रहे। मध्य प्रदेश में सर्वप्रथम डॉक्टर साहब के कार्यकाल में ही अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का प्रादुर्भाव हुआ। एक राजनीतिक कार्यकर्ता चाहे वह किसी भी पार्टी का हो बगैर आपके मार्गदर्शन से आगे नहीं बढ़ता था। उनमें यह खासियत थी कि पद को महत्व न देकर व्यक्तित्व एवं आदर्श को विशेष महत्व देते रहे । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह था किआपने स्वर्गीय रवि शंकर जी शुक्ल तत्कालीन मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश के आग्रह पर भी मंत्रिमंडल के पद को तिलांजलि देकर बिलासपुर जिले के जनता जनार्दन की सेवा करना ही उचित समझा । ऐसे उच्च व्यक्तित्व के खो जाने से पूरा शहर शोकाकुल होकर अश्रु बहा रहा है । जिसकी पूर्ति होना अब निकट भविष्य में संभव प्रतीत नहीं होता। यह परिषद डॉक्टर साहब के शोकाकुल परिवार को संवेदना प्रकट करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करती है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें एवं उनके शोकाकुल परिवार को इस गहन दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। इसके उपरांत आज की समस्त कार्रवाई आगामी बैठक के लिए स्थगित कर दी गई।

30 जनवरी 1970 को रात के 7 बजे नगर पालिका परिषद कार्यालय देवी प्रसाद वर्मा सभा भवन में नगर पालिका परिषद बिलासपुर की विशेष बैठक रखी गई थी। जिसमें विषय क्रमांक छह के तहत प्रस्ताव पारित किया गया कि बिलासपुर के ऋषि तुल्य पितामह सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी श्रद्धेय डॉक्टर शिव दुलारे जी मिश्र का एक स्मारक नगर में स्थापित करने और टाउन हॉल तथा राघवेंद्र राव सभा भवन में तैल चित्र लगाने पर विचार करते हुए सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव में यह भी लिखा गया था कि डॉक्टर साहब की सेवाओं को देखते हुए नगर पालिका परिषद इसका व्यय स्वयं प्रतिष्ठा अनुकूल वाहन करेगी। नगर पालिका परिषद की बैठक में उपाध्यक्ष मुन्नू लाल शुक्ल , सहित पार्षद सदस्य सूरज बली यादव ,गणपतराव शेष ,आनंदराम ,भागबली ,झाडूराम, तुकाराम, मिर्जा बेग, स्नेही लाल अग्रवाल , के जी अंसारी ,सूरज प्रसाद शुक्ल , रूद्र नारायण ,रामदास, शिवनारायण गोले, गोपाल प्रसाद यादव, बसंत मूल कलवार ,रमाशंकर तिवारी ,वेदराम ,कन्हैया लाल, काशीराम, राम दुलारे दुबे, कृष्ण कुमार तिवारी, जाली राम, शमशेर अली ,रामचरण साहू ,कन्हैयालाल रामदेव, रेलू मल और श्रीमती नलिनी दीक्षित की उपस्थिति थी। इस प्रस्ताव के पारित होने के करीब 50 साल बाद डॉ शिव दुलारे मिश्र के नाम को चिरस्थाई बनाने की दिशा में एक बड़ा काम पूरा हो सका है। शहर के मौजूदा विधायक शैलेश पांडे ने नवनिर्मित सेंट्रल लाइब्रेरी का नामकरण डॉ शिव दुलारे मिश्र के नाम पर करने की मांग रखी। जिस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंच से घोषणा की । उन्होंने इस दिन ही सेंट्रल लाइब्रेरी का लोकार्पण भी किया। यह सेंट्रल लाइब्रेरी संस्कारधानी – न्यायधानी बिलासपुर की मौजूदा और आने वाली पीढ़ी के लिए सूचना ,ज्ञान और पठन-पाठन में काफी सहायक सिद्ध होगी उन विराम। इसी उम्मीद के साथ शहर के पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने सेंट्रल लाइब्रेरी की स्थापना का काम शुरू किया था । बिलासपुर शहर के लिए यह गौरव की बात भी है। शहर के बीचो बीच बने ई राघवेंद्र राव सभा भवन में एक लाइब्रेरी काफी पहले से ही संचालित होती रही है। जिसमें काफी बहुमूल्य किताबे रही हैं और लोगों को इसका लाभ मिलता रहा है। अब सेंट्रल लाइब्रेरी से जुड़कर लोग पठन-पाठन का लाभ उठा सकेंगे। जिससे शहर को एक और पहचान मिल सकेगी। और शहर में पढ़ने – लिख़ने की एक पुरानी परंपरा को फिर से जीवित करने का प्रयास सार्थक हो सकेगा। इसी तरह नामकरण के साथ ही मौजूदा और आने वाली पीढ़ी डॉ. शिव दुलारे मिश्र जैसी हस्ती के योगदान को भी याद करती रहेगी। डॉ. शिवदुलारे मिश्र का नाम जुड़ने से नवनिर्मित सेन्ट्रल लाइब्रेरी के साथ बिलासपुर की सांस्कृतिक- साहित्यिक – पठन-पाठन की परंपरा के साथ ही आज़ादी के आँदोलन की ऐतिहासिक पहचान भी जुड़ गई है। जिसे आने वाला समय भी याद करेगा।

डॉ. शिवदुलारे मिश्र का परिवार आगे भी उनकी परंपराओं को बढ़ाने की दिशा में सतत प्रयासरत रहा। उनके पुत्र डॉ. श्रीधर मिश्र ( चतरू बाबू )भी नगर पालिका के पार्षद और अध्यक्ष रहे। उन्होने विधानसभा में भी बिलासपुर का प्रतिनिधित्व किया और अविभाज़ित णध्यप्रदेश में मंत्री भी रहे। बिलासपुर शहर के विकास में उनका बड़ा योगदान रहा। डॉ. श्रीधर मिश्र भी बहुआयामी प्रतिभा के धनी और विकास को लेकर दूर की सोच रखने वाले जनप्रतिनिधि थे। अपने कार्यकाल में उन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश में पहला सर्व सुविधा युक्त ,अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्विमिंग पुल का निर्माण बिलासपुर में कराया। अरपा नदी पर नए पुल का निर्माण उनके समय में शुरू हो गया था। अरपा पर चेक डैम बनाने के लिए भी उन्होंने पहल की थी। शहर में बिलासपुर में बस स्टैंड का निर्माण भी उनकी कल्पना का एक बेहतरीन नमूना था। जिसे उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश में बेहतर बस अड्डे के रूप में देखा जाता था। डॉ. शिव दुलारे मिश्र के पुत्र शिवा मिश्र भी राजनीति में सक्रिय हैं और कांग्रेस संगठन के पदों पर रहकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे हैं।।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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